नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में हुई निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति को रद्द करने से इनकार कर दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि संसद से पारित कानून के तहत यह चयन हुआ है। हम अंतरिम आदेश से कानून पर रोक नहीं लगाएंगे। चुनाव के बीच में निर्वाचन आयोग के काम को प्रभावित करना सही नहीं है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने संसद से पास कानून की वैधता पर विस्तृत सुनवाई की बात कही। जवाब के लिए सरकार को 6 सप्ताह का समय दिया। आज जजों ने इस बात पर सवाल उठाया कि चयन कमेटी की मीटिंग को 15 मार्च से बदल कर 14 मार्च कर दिया गया। साथ ही, विपक्ष के नेता को बैठक से कुछ ही देर पहले नाम दिए गए।
केंद्र सरकार ने निर्वाचन आयुक्तों के चयन में चीफ जस्टिस को शामिल न करने के चलते नियुक्ति रद्द करने की मांग का विरोध किया है। केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा गया है कि यह दलील गलत है कि आयोग तभी स्वतंत्र होगा जब चयन समिति में जज हों। केंद्र सरकार ने कहा है कि चुनाव आयुक्तों की योग्यता पर सवाल नहीं उठाया जा सकता है। याचिका का मकसद केवल राजनीतिक विवाद खड़ा करना है। 15 मार्च को कोर्ट ने निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति पर फिलहाल दखल से इनकार कर दिया था।
जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा है कि हम अंतरिम आदेश में इस तरह से कानून पर रोक नहीं लगाते हैं। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता का आरोप था कि मीटिंग एक दिन पहले बुलाकर नियुक्ति कर दी गई। तब कोर्ट ने कहा था कि आयुक्तों की नियुक्ति पर अपने एतराज को लेकर आप अलग से याचिका दाखिल करें।
एडीआर की ओर से दायर याचिका में चयन समिति में चीफ जस्टिस को भी रखने की मांग की गई है। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले कुछ वकीलों ने भी याचिका दायर कर रखी है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र सरकार की ओर से लाए गए नए कानून को चुनौती देते हुए मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्तियों में देश के चीफ जस्टिस को भी पैनल में शामिल करने की मांग की गई है। याचिका में कहा गया है कि चुनाव में पारदर्शिता लाने के मद्देनजर मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करने वाले पैनल में चीफ जस्टिस को भी शामिल किया जाना जरूरी है।
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने 2 मार्च 2023 में अपने एक फैसले में कहा था कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति करने वाले पैनल में चीफ जस्टिस को भी शामिल किया जाएगा, जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस फैसले पर एक नया कानून बनाकर नियुक्ति प्रक्रिया में चीफ जस्टिस की बजाय सरकार का एक कैबिनेट मंत्री शामिल कर दिया।
SUPREME COURT NEWS
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक के उप मुख्यमंत्री डीके शिवकुमार को बड़ी राहत दी है। जस्टिस अनिरुद्ध बोस की अध्यक्षता वाली बेंच ने डीके शिवकुमार के खिलाफ 2018 में दर्ज मनी लांड्रिंग के मामले को निरस्त कर दिया है।
कोर्ट ने कहा कि जांच एजेंसी डीके शिवकुमार के यहां से बरामद पैसे को मनी लांड्रिंग से जोड़ने में असफल रही है। शिवकुमार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर 2019 में कर्नाटक हाई कोर्ट की ओर से ईडी के समन को निरस्त करने की मांग को खारिज करने के फैसले को चुनौती दी थी। 2017 में आयकर विभाग ने डीके शिवकुमार के कई ठिकानों पर छापेमारी की थी। आयकर विभाग के छापे के बाद ईडी ने जांच शुरू की थी।
ईडी की जांच के बाद सीबीआई ने कर्नाटक सरकार से डीके शिवकुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की अनुमति मांगी थी। तीन सितंबर, 2019 को शिवकुमार को ईडी ने गिरफ्तार किया था। 23 अक्टूबर, 2019 को हाई कोर्ट ने शिवकुमार को जमानत दी थी। हाई कोर्ट की ओर से दिए गए जमानत के खिलाफ ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने ईडी की याचिका खारिज कर दी थी।
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 7 जजों की संविधान बेंच ने एकमत फैसले में कहा है कि अगर सांसद या विधायक रिश्वत लेकर सदन में मतदान या भाषण देते हैं तो वे मुकदमे की कार्रवाई से नहीं बच सकते हैं। आज 7 जजों की संविधान बेंच ने 1998 के नरसिम्हा राव के फैसले को पलटते हुए कहा कि अगर विधायक रिश्वत लेकर राज्यसभा में वोट देते हैं तो उन पर प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट के तहत मुकदमा चल सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 5 अक्टूबर, 2023 को फैसला सुरक्षित रख लिया था। दरअसल, सीता सोरेन 2012 में झारखंड विधानसभा में विधायक थीं। उस समय राज्यसभा चुनाव में मतदान के लिए उन पर एक राज्यसभा उम्मीदवार से उसके पक्ष में वोट डालने के लिए रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था लेकिन इसके बजाय उसने अपना वोट किसी अन्य उम्मीदवार के पक्ष में डाल दिया। सीता सोरेन के ससुर और झामुमो नेता शिबू सोरेन को 1998 की संविधान पीठ के फैसले से बचा लिया गया था। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पैसे लेकर राव सरकार के पक्ष में मतदान करने वाले सांसदों को अभियोजन से छूट दी थी। हालांकि, झामुमो सांसदों को रिश्वत देने वाले अभियोजन से नहीं बचे थे।