लखनऊ। पार्श्वनाथ डेवलपर्स लिमिटेड को उत्तर प्रदेश राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले से तगड़ा झटका लगा है। पार्श्वनाथ प्लानेट में बुक किये गए फ्लैट का पूरा धन जमा करने के बाद भी कब्ज़ा न मिलने के खिलाफ दायर मुक़दमे में आयोग ने कुल भुगतान पर 12 प्रतिशत तगड़ा जुर्माना लगाया है। और यह भी कहा हैं कि यदि आदेश एक माह के भीतर कब्ज़ा नहीं दिया और भुगतान नहीं किया तो जुर्माना 15 प्रतिशत के हिसाब से लगेग। साथ ही आयोग ने मानसिक कष्ट और किराये के नुकसान की क्षतिपूर्ति के भुगतान का भी आदेश दिया हैं
जानकारी के अनुसर श्रीमती राखी कौशिक ने पार्श्वनाथ डेवलपर्स लि0 के अच्छे प्रचार को देखते हुए ” पार्श्वनाथ प्लानेट ” गोमती नगर, लखनऊ में एक फ्लैट के लिए आवेदन किया था। इस आवेदन पर श्रीमती कौशिक को टी-6-603 का आवंटन किया गया , जिसके लिए उन्होंने पूरी धनराशि 29,28,750 रुपये भी समय पर जमा कर दी। परिवादिनी ने समय-समय पर इसमें मांग के अनुसार अपनी धनराशि जमा करती रही, किन्तु विपक्षीगण पार्श्वनाथ डेवलपर्स समय के अन्दर निर्माण कार्य पूरा नहीं कर पाये, जिससे परिवादिनी को अत्यन्त मानसिक कष्ट व आर्थिक क्षति हुई।
तत्पश्चात् परिवादिनी ने एक परिवाद सं0-156/2014 विपक्षीगण के विरूद्ध उ0प्र0, राज्य उपभोक्ता आयोग लखनऊ में दायर किया, जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के प्रिसाइडिंग जज श्री राजेन्द्र सिंह और सदस्य श्री विकास सक्सेना द्वारा की गई। प्रिसाइडिंग जज श्री राजेन्द्र सिंह मामले के समस्त तथ्य एवं परिस्थितियों तथा साक्ष्यों को देखने के बाद इस मामले में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के उद्देश्यों को बताते हुए लिखा कि इस अधिनियम का उद्देश्य उपभोक्ताओं को राहत पहुँचाना होता है। विपक्षीगण ने अपने करार में यह लिखा था कि फ्लैट का कब्जा वे 36 माह में दे देंगे और 6 महीने का ग्रेस पीरियड भी लेंगे अर्थात् 42 माह में फ्लैट का कब्जा देना था। निर्माण का समय बार-बार बढ़ाया गया। फ्लैट का कब्जा समय के अन्दर परिवादिनी को नहीं दिया गया। इस सम्बन्ध में आकूपेंसी और कम्प्लीशन सर्टिफिकेट के बारे में कुछ भी नहीं किया, जो फ्लैट का कब्जा देते समय आवश्यक अभिलेख होते हैं। इसके अलावा फायर ब्रिगेड, प्रदूषण विभाग, सिविल ऐवियेशन विभाग के प्रमाण पत्र भी जारी होते हैं, जो प्रदान नहीं किये गये। इस सम्बन्ध में मा0 सर्वोच्च न्यायालय एवं मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के विभिन्न निर्णयों का हवाला देते हुए निर्णय घोषित किया गया और विपक्षीगण पार्श्वनाथ डेवलपर्स को आदेश दिया गया कि वे सभी प्रमाण पत्रों की प्रतियों के साथ इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर उक्त फ्लैट का कब्जा परिवादिनी को दें, अन्यथा उन्हें 30 दिन के बाद विलम्ब शुल्क के रूप में एक लाख रुपये का भुगतान दिनांक 01 फरवरी 2011 से करना होगा। इसके अतितरिक्त परिवादिनी द्वारा जमा की गयी धनराशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देने, हर्जाना के रूप में पांच लाख रुपये देने, किराये की क्षति के रूप में दिनांक दिनांक 01 फरवरी 2011 से प्रति माह 15,000/- रू0 देने, वाद व्यय के रूप में 50,000/- रू0 देने और मानसिक प्रताड़ना, अवसाद आदि के मद में 20.00 लाख रू0 देने का आदेश दिया गया, जिस पर दिनांक 01 फरवरी 2011 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा यदि भुगतान इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर किया जाता है, अन्यथा ब्याज की दर 12 प्रतिशत के स्थान पर 15 प्रतिशत होगी, जो दिनांक 01 फरवरी 2011 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक देनी होगी।