प्रयागराज। मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर स्थित शाही ईदगाह परिसर में सर्वे की हिंदू पक्ष की मांग इलाहाबाद हाई कोर्ट ने स्वीकार कर ली है। हिंदू पक्ष ने इसे अपनी बड़ी जीत बताया है।
बीती 16 नवंबर को सुनवाई हुई थी। हिंदू पक्ष की ओर से जस्टिस मयंक कुमार जैन की एकल पीठ के सामने सर्वे के लिए कोर्ट कमिश्नर नियुक्त करने की याचिका दायर की गई थी। पिछली सुनवाई में जज ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
मालूम हो की 16 नवंबर को श्रीकृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति मयंक जैन की कोर्ट संख्या 85 में तीन घंटे सुनवाई चली। जन्मभूमि पक्ष ने परिसर के सर्वे और कोर्ट कमीशन की याचिका पेश की, जिसका ईदगाह पक्ष ने विरोध किया। दोनों पक्षों ने सीपीसी, उपासना अधिनियम और स्मारक अधिनियमों का हवाला देते हुए कोर्ट में अपने-अपने तथ्य पेश किए। कोर्ट ने सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था ।
हाईकोर्ट में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति न्यास सहित 16 वादों पर एक साथ सुनवाई हुई थी । न्यास के अध्यक्ष एडवोकेट महेंद्र प्रताप सिंह ने कोर्ट में एएसआई और कोर्ट कमीशन के सर्वे की याचिका पेश की। उन्होंने कहा कि सभी दस्तावेज जन्मभूमि पक्ष के पास हैं। ईदगाह पक्ष के पास अवैध कब्जे के अलावा कुछ नहीं है। ईदगाह पक्ष, शाही ईदगाह परिसर में मौजूद हिंदू स्थापत्य कला के सबूतों को लगातार मिटाने का काम कर रहा है। विवादित स्थल का सर्वे करना जरूरी है। ताकि सभी तथ्य कोर्ट के सामने आएं। विवादित स्थल के नगर निगम का असेसमेंट, खसरा, खतौनी आदि राजस्व अभिलेख और ऐतिहासिक साक्ष्य ऐसे हैं, जो यह साबित करते हैं कि जिस स्थान पर ईदगाह बनी है, वह भगवान श्रीकृष्ण का मूल गर्भगृह है। ईदगाह पक्ष के अधिवक्ता की ओर से सर्वे संबंधी याचिका का विरोध किया गया। कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के 7 रूल 11 के अनुसार यह वाद पोषणीय नहीं है। इसकी सुनवाई को मंजूरी न दी जाए। विवादित परिसर पर उपासना स्थल अधिनियम 1991 भी लागू होता है। इसके अनुसार भी यह वाद नहीं चलना चाहिए।
इस पर जन्मभूमि पक्ष की ओर से महेंद्र प्रताप सिंह ने दलील रखी कि श्रीराम जन्मभूमि की तरह ही श्रीकृष्ण जन्मभूमि परिसर पर उपासना स्थल अधिनियम प्रभावी नहीं है। इस परिसर पर पहले भी केस चलते रहे हैं। वहीं, स्मारक अधिनियम 1951 के अनुसार भी उपासना स्थल अधिनियम इस परिसर पर प्रभावी नहीं माना जाएगा। स्मारक अधिनियम में उल्लेख है कि कोई संपत्ति 100 वर्ष से अधिक पुरानी है तो वहां भी उपासना स्थल अधिनियम लागू नहीं होगा। कोर्ट ने दोनों ही पक्षों को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत में जन्मभूमि पक्ष से आशुतोष पांडेय, श्यामानंद पंडित, विष्णु जैन, दिनेश शर्मा सहित अन्य वादकारी भी मौजूद रहे।