लाहौर । पाकिस्तान के लाहौर हाई कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसले में देशद्रोह कानून को खत्म कर दिया। लाहौर हाई कोर्ट के जस्टिस शाहिद करीम ने कल (गुरुवार) द्रेशद्रोह से संबंधित पाकिस्तान दंड संहिता की धारा 124-ए को रद कर दिया। इस कानून के खिलाफ देश के कई नागरिकों ने याचिका दायर की थीं। इन लोगों ने देशद्रोह कानून को इस आधार पर चुनौती दी थी कि हुकूमत ने इसका इस्तेमाल अपने विरोधियों के खिलाफ किया है।
उल्लेखनीय है कि देशद्रोह के कानून को खत्म करने का फैसला देने वाले जस्टिस करीम वही हैं, जिन्होंने 2019 में पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ को दोषी ठहराया था और 2007 में संविधान को पलटने के लिए राजद्रोह के मामले में उन्हें मौत की सजा सुनाई थी।
SEDITION LAW
नई दिल्ली । केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राजद्रोह कानून पर अपना रुख साफ करने के लिए और वक्त दिए जाने की मांग की है। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि संसद के शीतकालीन सत्र में इस पर विचार हो सकता है। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी के दूसरे हफ्ते के लिए टाल दी।
इस दरम्यान इस कानून के अमल पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से लगी रोक बरकरार रहेगी। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून पर केंद्र को कानून की समीक्षा की अनुमति दी थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के तहत फिलहाल नए केस दर्ज करने पर रोक लगा दी थी।कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी पर केस दर्ज हो तो निचली अदालत से राहत की मांग करे। कोर्ट ने लंबित मामलों में कार्रवाई पर रोक लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जेल में बंद लोग निचली अदालत में ज़मानत याचिका दाखिल करें।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि उसने राजद्रोह के मामले में लगने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की फिर से जांच करने और इस पर दोबारा विचार करने का फैसला किया है। केंद्र सरकार ने हलफनामा के जरिये कहा था कि इस प्रावधान के बारे में विभिन्न न्यायविदों, शिक्षाविदों, बुद्धिजीवियों और सामान्य रूप से नागरिकों की ओर से सार्वजनिक रूप से अलग-अलग विचार व्यक्त किए गए हैं।
केंद्र सरकार ने कहा है कि देश को आजाद हुए 75 वर्ष हो चुके हैं, इसलिए प्रधानमंत्री अपने औपनिवेशिक बोध को दूर करने की दिशा में काम करना चाहते हैं। इसी भावना के तहत केंद्र सरकार ने 2014-15 में 1500 से अधिक पुराने कानूनों को खत्म कर दिया है। केंद्र सरकार ने 25 हजार से अधिक अनुपालन बोध को भी समाप्त कर दिया है, जो हमारे देश के लोगों के लिए गैर जरूरी बाधा उत्पन्न कर रहे थे। विभिन्न किस्म के अपराध जो लोगों को बिना सोचे समझे बाधा पहुंचा रहे थे, उन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है।
कोर्ट ने 5 मई को कहा था कि सबसे पहले वो इस बात पर विचार करेगा कि मामला संविधान बेंच को सौंपा जाए या नहीं। 15 जुलाई, 2021 को सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस एनवी रमना ने केंद्र सरकार से पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह जैसे क़ानून की ज़रूरत है। चीफ जस्टिस ने कहा था कि कभी महात्मा गांधी और तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों की आवाज़ को दबाने के लिए ब्रिटिश सत्ता इस क़ानून का इस्तेमाल करती थी। क्या आजादी के 75 साल बाद भी राजद्रोह कानून की जरूरत है।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा था कि राजद्रोह में दोषी साबित होने वालों की संख्या बहुत कम है लेकिन अगर पुलिस या सरकार चाहे तो इसके जरिये किसी को भी फंसा सकती है। इन सब पर विचार करने की जरूरत है। याचिका सेना के रिटायर्ड मेजर जनरल एस जी बोम्बतकरे ने दायर की है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा था कि राजद्रोह कानून वापस नहीं लिया जाना चाहिए। बल्कि कोर्ट चाहे तो नए सख्त दिशानिर्देश जारी कर सकता है ताकि राष्ट्रीय हित में ही इस कानून का इस्तेमाल हो।
उल्लेखनीय है कि 12 जुलाई, 2021 को राजद्रोह के कानून के खिलाफ मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ल की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील तनिमा किशोर ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए संविधान की धारा 19 का उल्लंघन करती है। यह धारा सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कानून की वैधता को बरकरार रखा था लेकिन अब इसके साठ साल बीतने के बाद ये कानून आज संवैधानिक कसौटी पर पास नहीं होता है।
याचिका में कहा गया है कि भारत पूरी लोकतांत्रिक दुनिया में अपने को लोकतंत्र कहता है। ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, नाइजीरिया और युगांडा ने राजद्रोह को अलोकतांत्रिक करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि दोनों याचिकाकर्ता एक मुखर और जिम्मेदार पत्रकार हैं। वे संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हैं। दोनों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कार्टून शेयर करने के लिए धारा 124ए के तहत राजद्रोह की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की गई हैं।