लखनऊ। राज्य उपभोक्ता आयोग ने चिकित्सा बीमा योजना की पालिसी लेने वाले को जरूरत पड़ने पर लाभ नहीं देने पर संबंधित इंश्योरेंस कंंपनी पर जुर्माना लगाते हुए ब्याज सहित धनराशि देने का आदेश दिया है। आयोग के जज राजेन्द्र सिंह ने अपने आदेश में कहा है कि निश्चित समयावधि में रकम अदा नहीं करने पर 15 प्रतिशत की दर से ब्याज अदा करना होगा।
आयोग ने परिवाद संख्या-99/2016 के मामले में 29 नवंबर को अपना फैसला सुनाया है। वाद के मुताबिक परिवादी नसीम अहमद खान द्वारा विपक्षी एचडीएफसी एर्गो जनरल इंश्योरेंस कंंपनी लिमिटेड से वर्ष 2014 में 20 लाख रुपये का लोन, होम सुरक्षा प्लस पालिसी के अन्तर्गत लिया गया। पांच की यह पालिसी एक चिकित्सीय बीमा योजना थी। इसकी कुल बीमित धनराशि 20,82,265 रुपये थी। 13 जून 2015 को परिवादी के सीने में दर्द हुआ। उसका डॉक्टरी परीक्षण किया गया। इसके पश्चात उसे कई बार डॉक्टरी परीक्षण कराना पड़ा और उसे दवा लेने की सलाह दी गयी। चिकित्सा होने के उपरान्त उसे जून 2015 में अपने सारे बिल विपक्षी बीमा कम्पनी को दिये। जिसने यह कहा कि इस मामले में भुगतान नहीं हो सकता, क्योंकि उसकी बीमारी प्रश्नगत बीमा पालिसी से परे है। तत्पश्चात परिवादी ने एक परिवाद यूपी के राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ में योजित किया। जिसकी सुनवाई राज्य आयोग के प्रिसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह और सदस्य विकास सक्सेना द्वारा की गई।
आयोग ने दावा निरस्त करनेे को विधि विरुद्ध पाया
प्रिसाइडिंग जज राजेन्द्र सिंह मामले के समस्त तथ्य एवं परिस्थितियों तथा अभिलेखों का अवलोकन किया और यह पाया कि दावा निरस्त करना विधि विरुद्ध है। बीमा शर्तें हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में होनी चाहिए। आयोग ने यह भी लिखा कि बीमा पालिसी के छपे हुए अक्षर अत्यन्त छोटे होते हैं, जो पूर्ण रूप से पढ़ने में नहीं आते।
आयोग ने यह भी कहा कि यदि ऐसा कोई क्लाज होता है, तब उसको बड़े अक्षरों में पालिसी में लाल स्याही से लिखा जाये और बीमा पालिसी के प्रथम पृष्ठ पर उक्त शर्त संख्या का अंकन करते हुए यह लिखा जाये कि बीमाधारक उसका अवलोकन करे। ऐसा न करना सेवा में कमी है और अनावश्यक रूप से दावा निरस्त करना भी सेवा में कमी है।
आयोग ने यह दिया आदेश
राज्य उपभोक्ता आयोग ने इस सम्बन्ध में बीमा कम्पनी को आदेश दिया कि वह परिवादी को 80,000 रुपये और उस पर 13 जून 2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज निर्णय के एक माह के अन्दर अदा करे। इसके अतिरिक्त विपक्षीगण बतौर हर्जाना पांच लाख रूपये परिवादी को ब्याज सहित दे। आयोग ने वाद व्यय के रूप में 50,000 रुपये देने के लिए भी आदेश दिया और यह कहा कि इस पर 13 जून 2015 से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा। यदि भुगतान इस निर्णय के 30 दिन के अन्दर किया जाता है, अन्यथा ब्याज की दर 12 प्रतिशत के स्थान पर 15 प्रतिशत होगी।