चेन्नई (तमिलनाडु) । तमिलनाडु के बड़े राजनीतिक दल अन्नाद्रमुक (एआईएडीएमके) के चुनाव चिह्न और पार्टी के झंडे का इस्तेमाल करने के मामले में पार्टी के निष्कासित नेता ओ. पन्नीरसेल्वम को मद्रास हाईकोर्ट से झटका लगा है। हाईकोर्ट की एकल पीठ के आदेश के खिलाफ अपील करने वाले पन्नीरसेल्वम को अदालत ने पहले भी उन्हें आधिकारिक लेटरहेड और ध्वज का उपयोग करने से रोक दिया था। हाईकोर्ट ने उन्हें एआईएडीएमके के चुनाव चिह्न- ‘दो पत्तियों’ के इस्तेमाल की इजाजत भी नहीं दी थी।
मद्रास हाईकोर्ट में गुरुवार को न्यायमूर्ति आर. महादेवन और न्यायमूर्ति मोहम्मद शफीक की खंडपीठ ने पन्नीरसेल्वम की तरफ से दायर तीनों अपील खारिज कर दिए। हालांकि, पीठ ने पन्नीरसेल्वम को एकल पीठ में दोबारा अपील करने की स्वतंत्रता भी दी। पन्नीरसेल्वम ने 7 नवंबर, 2023 को पारित एकल पीठ आदेश के खिलाफ अपील की थी।
हाईकोर्ट की एकल पीठ का आदेश एआईएडीएमके महासचिव और पूर्व मुख्यमंत्री एडप्पादी के. पलानीस्वामी की तरफ से दायर याचिका पर आया था। न्यायमूर्ति एन. सतीशकुमार ने नवंबर, 2023 में अंतरिम आदेश पारित किया था। पनीरसेल्वम ने इस आदेश के खिलाफ दो जजों की पीठ में अपील की थी। इस पर खंडपीठ ने कहा, ‘हम अपीलकर्ता पन्नीरसेल्वम के साथ-साथ प्रतिवादी (पलानीस्वामी) के तर्कों के गुण-दोष पर टिप्पणी नहीं करेंगे। एकल पीठ के न्यायाधीश ने 30 नवंबर, 2023 तक अंतरिम रोक लगाई थी।’
madras high court
चेन्नै। बच्चे की कस्टडी के एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने शादी को लेकर अहम टिप्पणियां की हैं। अदालत ने कहा कि शादी का अर्थ सिर्फ शारीरिक सुख पाना ही नहीं, बल्कि परिवार को आगे बढ़ाना भी है। अदालत ने कहा कि यही एक आधार है, जिससे परिवार की चेन आगे बढ़ती है। कोर्ट ने कहा कि किसी भी शादी में बच्चे कपल के बीच उन्हें आपस में जोड़े रखने का आधार होते हैं।
जस्टिस कृष्णन रामास्वामी ने केस की सुनवाई के दौरान कहा कि दंपति के बीच संबंध खत्म हो सकते हैं, लेकिन उनका बच्चों के साथ माता और पिता के तौर पर संबंध बना रहता है। उन्होंने कहा कि किसी भी बच्चे के लिए उसके माता और पिता दोनों अहम होते हैं, भले ही उनमें से किसी ने अन्य से शादी कर ली हो। वकील दंपति के बीच बच्चे की कस्टडी को लेकर चल रहे केस की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी की। दरअसल वकील शख्स ने अदालत की ओर से दिए गए कई आदेशों के बाद भी पत्नी को अपने बच्चे से मुलाकात नहीं करने दिया था। इसके बाद महिला ने अदालत का रुख किया और कहा कि पति ने पैरेंट्स के तौर पर उसके अधिकारों को खारिज करने की कोशिश की है। ऐसा करना गलत है और उसके अधिकारों को खारिज करने वाला है।
इस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस रामास्वामी ने कहा कि बच्चे को अपनी ही मां या पिता के खिलाफ खड़ा करना गलत है। यह एक तरह से उसे अपने ही खिलाफ करना है। एक बच्चे को सीधे तौर पर दोनों हाथों की जरूरत होती है यानी मां और बाप उसके लिए जरूरी होते हैं। बच्चों को पूरी जिंदगी और खासतौर पर वयस्क होने तक पैरेंट्स की जरूरत होती है। यही नहीं जस्टिस रामास्वामी ने कहा कि बच्चे में पैरेंट्स के प्रति तब तक नफरत की भावना नहीं हो सकती, जब तक उसका कोई करीबी और भरोसेमंद उसे न उकसाए। उन्होंने कहा कि यह ठीक नहीं है कि बच्चा जिसकी कस्टडी में हो, वह उसे दूसरे पैरेंट के खिलाफ भड़काने की कोशिश करे।