नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में बैलों को काबू करने के खेल जल्लीकट्टू को अनुमति देने वाले राज्य सरकार के कानून को सही ठहराया है। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि नए कानून में क्रूरता के पहलू का ध्यान रखा गया है। यह खेल सदियों से तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा है जिसे बाधित नहीं किया जा सकता। अगर कोई पशु से क्रूरता करे तो उस पर कार्रवाई हो। सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में बैलगाड़ी दौड़, कर्नाटक में कंबाला से जुड़े कानून को भी सही ठहराया।
8 दिसंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। सुनवाई के दौरान तमिलनाडु सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं है। उन्होंने कहा कि नागराज का फैसला गलत आधार पर था कि जानवरों के अधिकार होते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी शब्दकोश में मानववाद का अर्थ नहीं है। ‘मानवीय’, ‘मानवता’ और ‘मानवतावाद’ पूरी तरह से अलग हैं। पूर्व में एक मानवीय और दयालु दृष्टिकोण है। मानवतावाद का इससे कोई लेना-देना नहीं है। मानवतावाद का अर्थ है एक तर्कवादी जो धर्म या किसी अलौकिक शक्ति में विश्वास नहीं करता है। कोर्ट ये कैसे तय करेगा कि जल्लीकट्टू या बैलगाड़ी दौड़ जरूरी है या नहीं। उन्होंने कहा कि यह संस्कृति, मनोरंजन या धर्म का एक हिस्सा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने तमिलनाडु सरकार की इस दलील का विरोध किया था कि जल्लीकट्टू एक तमिल संस्कृति है। केवल ये कह देने से कि वह संस्कृति है, वो संस्कृति नहीं हो जाती है। अगर ये कहा जाए कि ये संस्कृति है तो क्या सभी संस्कृतियों का आज पालन होता है। उन्होंने कहा कि नागराज के फैसले में कहा गया कि जानवर खेल के लिए अनफिट होते हैं। अगर वर्षों से ये खेल चल रहा हो तो इसका मतलब ये नहीं है कि उसकी अनुमति दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के बुनियाद में अहिंसा को जगह मिली है। हम अहिंसा के सिद्धांत से अलग नहीं जा सकते हैं। संविधान बेंच में जस्टिस केएम जोसेफ के अलावा जस्टिस अजय रस्तोगी, जस्टिस अनिरुद्ध बोस , जस्टिस हृषिकेश राय और जस्टिस सीटी रविकुमार शामिल थे।
उल्लेखनीय कि इस मसले को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने 2 फरवरी, 2018 को संविधान बेंच को रेफर कर दिया था।
पेटा ने इस कानून को चुनौती देते हुए इसे पशु क्रूरता अधिनियम का उल्लंघन माना था। पेटा का कहना था कि जल्लीकट्टू एक क्रूर परंपरा है और कानून के खिलाफ है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने बैन कर रखा है। याचिका में कहा गया था कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि जल्लीकट्टू में जानवरों पर अत्याचार होता है और राज्य में जल्लीकट्टू को इजाजत नहीं दी जा सकती। ऐसे में तमिलनाडू राज्य प्रिवेंशन ऑफ क्रूएल्टी अगेंस्ट एनिमल जैसे केंद्रीय कानून में संशोधन नहीं कर सकता। याचिका में नए एक्ट पर रोक लगाने की मांग की गई थी।
karnatak
नई दिल्ली। कर्नाटक में चार फीसदी मुस्लिम आरक्षण खत्म किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने नौ मई तक के लिए टाल दी है। राज्य सरकार ने सुनवाई टालने का आग्रह किया था। कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया कि फिलहाल नई नीति के आधार पर कोई भी दाखिला या नौकरी में भर्ती नहीं की जाएगी।
कनार्टक सरकार ने 13 अप्रैल को कोर्ट को आश्वस्त किया था कि इस फैसले के मुताबिक राज्य में कोई दाखिला या नौकरी में भर्ती नहीं की जाएगी। 13 अप्रैल को कोर्ट ने कर्नाटक सरकार को नोटिस जारी किया। उल्लेखनीय है कि कर्नाटक सरकार ने राज्य में मुस्लिम समुदाय के लिए चार फीसदी आरक्षण के प्रावधान को खत्म कर दिया है। मुसलमानों के अब तक दिए जाने वाले चार फीसदी आरक्षण को वोक्कालिंगा और लिंगायत के बीच बांट दिया गया है। कर्नाटक सरकार के इस फैसले को अंजुमन-ए-इस्लाम संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।
याचिका में कहा गया है कि कर्नाटक सरकार का मुस्लिम समुदाय को पिछड़े वर्ग की सूची से बाहर करने का फैसला संविधान का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि यह फैसला पिछड़ा वर्ग आयोग द्वारा दिए गए किसी भी रिपोर्ट या सलाह पर आधारित नहीं है, क्योंकि कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग अधिनियम 1995 के तहत एक वैधानिक रूप में इसे पास किया जाना जरूरी है। याचिका में राज्य सरकार के इस फैसले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए आदेश को रद्द करने की मांग की गई है।
कर्नाटक ने बेलगांव तक निकाली गई पैदल रैली पर रोक लगाई, कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा पर बढ़ा तनाव
- महाराष्ट्र एकीकरण समिति के महासम्मेलन पर कर्नाटक सरकार ने रोक लगाई
- समिति और राकांपा के सदस्यों का कोगनोली टोल प्लाजा के पास विरोध प्रदर्शन
मुंबई । महाराष्ट्र एकीकरण समिति के कार्यक्रम पर कर्नाटक सरकार की ओर से पाबन्दी और पदाधिकारियों की गिरफ्तारी के बाद महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर तनाव बढ़ गया है। अंतर-राज्य सीमा मुद्दे को लेकर सोमवार को कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा पर कोगनोली टोल प्लाजा के पास महाराष्ट्र एकीकरण समिति और राकांपा के सदस्यों ने विरोध प्रदर्शन किया।
महाराष्ट्र एकीकरण समिति की ओर से बेलगांव के शिनोली गांव के पास रास्ता रोको प्रदर्शन करते हुए पूरा महामार्ग जाम कर दिया है। महाराष्ट्र एकीकरण के पदाधिकारी बीच सड़क पर ही कार्यक्रम करने को लेकर अड़े हुए हैं। सीमावर्ती इलाकों में तनाव पूर्ण माहौल को देखते हुए कर्नाटक सरकार ने सीमावर्ती क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी है।
दरअसल, बेलगांव के तिलकवाड़ी में सोमवार को महाराष्ट्र एकीकरण समिति की ओर से महासम्मेलन कार्यक्रम आयोजित किया गया था। इस कार्यक्रम में सांसद धैर्यशील माने को भी आमंत्रित किया गया था। इस बीच कर्नाटक सरकार ने इस महासम्मेलन पर रोक लगा दी और 10 से अधिक पदाधिकारियों को हिरासत में ले लिया। साथ ही धैर्यशील माने के बेलगांव प्रवेश पर भी रोक लगा दी। इससे यहां स्थिति तनाव पूर्ण हो गई है। इससे पहले अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक में दोनों राज्यों में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था, लेकिन कर्नाटक सरकार ने सीमा मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के निर्देशों का भी पालन नहीं किया।
कर्नाटक सरकार के इस तरह के बर्ताव का विरोध करते हुए पूर्व मंत्री हसन मुश्रीफ के नेतृत्व में महाविकास आघाड़ी के कार्यकर्ताओं ने बेलगांव तक पैदल रैली निकाली। जब यह रैली कोगनोली टोल प्लाजा के पास पहुंची, तो कर्नाटक पुलिस ने इन सभी को रोकना चाहा। इसके बाद प्रदर्शनकारियों और कर्नाटक पुलिस के बीच झड़प होने से यहां स्थिति तनावपूर्ण बन गई।
महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा पर उत्पन्न तनाव का मुद्दा आज नागपुर में चल रहे विधानमंडल के शीत कालीन सत्र में भी उठा। विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष अजीत पवार ने कहा कि एक सांसद पर सीमावर्ती इलाके में जाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अजीत पवार ने कहा कि सीमावर्ती इलाकों में केंद्रीय पुलिस बल नियुक्त किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि अमित शाह के सामने यह तय किया गया था कि दोनों राज्यों में आवाजाही पर रोक नहीं लगाई जाएगी। दोनों राज्यों की ओर से किसी के भी कार्यक्रम को रोका नहीं जाएगा। इस बारे में महाराष्ट्र सरकार केंद्र सरकार से बात करेगी।
मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि यह बड़ी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री ने पहली बार सीमा मुद्दे पर हस्तक्षेप किया है। इस रुख का विपक्षी दल को भी स्वागत करना चाहिए। मुख्यमंत्री शिंदे ने अपील की कि इस मुद्दे पर कोई राजनीति नहीं की जानी चाहिए।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आज कर्नाटक हिजाब मामले पर फैसला सुनाएगा। जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच फैसला सुनाएगी। 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच ने इस मामले की 10 दिनों तक सुनवाई की थी। इस दौरान कोर्ट ने हिजाब समर्थक याचिकाकर्ताओं के अलावा कर्नाटक सरकार और कॉलेज शिक्षकों की भी दलीलें सुनीं।
21 सितंबर को कर्नाटक सरकार के अलावा उन कॉलेज शिक्षकों की ओर से जिरह की गई थी जिन्होंने कॉलेज में हिजाब पहनने से मना किया था। सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने कहा था कि हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है। कुरान में उसके जिक्र मात्र से वो धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हो जाता। कुरान में लिखा हर शब्द अनिवार्य परंपरा नहीं कहा जा सकता है। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा था कि हिजाब समर्थक पक्ष का मानना है कि जो भी कुरान में लिखा है, वो अल्लाह का आदेश है। उसे मानना अनिवार्य है। तब नवाडगी ने कहा था कि हम कुरान के विशेषज्ञ नहीं है, पर खुद सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला है कि कुरान में मौजूद हर शब्द धार्मिक हो सकता है, पर जरूरी नहीं कि वो अनिवार्य धार्मिक परंपरा हो।
20 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को बढ़ाता है। यह संविधान की धारा 19 और 21 के तहत एक संरक्षित अधिकार है। दवे ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह से अस्थिर है और अवैध है। हाईकोर्ट का फैसला धारा 14, 19, 21 और 25 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने अनिवार्य धार्मिक परंपरा की कसौटी पर सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने की वैधता का परीक्षण करने में गलती की।
कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 2021 से पहले कोई मुस्लिम लडकी हिजाब नहीं पहन रही थी। ना ही ऐसा कोई सवाल उठा। ये कहना ग़लत होगा कि सरकार ने सिर्फ हिजाब बैन किया है, दूसरे समुदाय के लोगों को भी भगवा गमछा पहनने से रोका गया है। मेहता ने कहा था कि 2022 में पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए अभियान शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर इस तरह के मैसेज फैलाये गए। हिजाब पहनने का फैसला बच्चों का नहीं था। बच्चे उस हिसाब से काम कर रहे थे, जैसा उनको समझाया गया था।
हिजाब समर्थक वकीलों की दलीलों के समर्थन में सिखों की पगड़ी का हवाला देने के जवाब में मेहता ने कहा था कि सिखों के केस में पगड़ी और कड़ा उनकी अनिवार्य धार्मिक परम्परा है। आप दुनिया के किसी भी कोने में इनके बिना किसी सिख की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मेहता ने अपनी दलीलों के जरिये ये साबित करने की कोशिश की हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है। उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ता कोई ऐसी दलील नहीं रख पाए जिससे साबित हो कि हिजाब इस्लाम धर्म का शुरुआत से हिस्सा रहा हो या इस धर्म मे इसको पहनना बेहद जरूरी हो। मेहता ने ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं की लड़ाई का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कई इस्लामिक देशों में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं, मसलन ईरान में। इसलिए मेरी दलील है हिजाब कोई इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है।
19 सितंबर को सुनवाई के दौरान दुष्यंत दवे ने कहा था कि मामला सिर्फ ड्रेस कोड का नहीं है, यहां मंशा दूसरी है। सरकार ये ड्रेस कोड थोप कर मुस्लिम समुदाय को बताना चाहती है कि जो हम कहेंगे, वो आपको करना होगा। हिजाब पहनकर हमने किसी की भावना को आहत नहीं किया है। दवे ने सरदार पटेल की संविधान सभा में दिए गए भाषण का हवाला देते हुए कहा था कि उनका कहना था कि इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यकों पर विश्वास बना रहे। आजकल लोग गांधी को भूलकर सरदार पटेल की बात करते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि सरदार पटेल खुद बहुत धर्मनिरपेक्ष थे।