नई दिल्ली । कर्नाटक हिजाब मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट जल्द ही तीन जजों की बेंच गठित करेगा। 22 फरवरी को कुछ मुस्लिम छात्राओं की ओर से चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन करते हुए मामले की जल्द सुनवाई का आग्रह कर मार्च में होने वाली बोर्ड परीक्षाओं में हिजाब पहन कर शामिल होने की इजाजत मांगी। तब कोर्ट ने कहा कि वह मामला लिस्ट करने पर विचार करेगा।
दरअसल, 13 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस मामले पर विभाजित फैसला सुनाया था। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक सरकार के हिजाब पर रोक के आदेश को सही करार दिया था। जबकि जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया था। विभाजित फैसला होने की वजह से इस मामले को तीन जजों की बेंच को रेफर किया गया था।
HIZAB ISSUE
नई दिल्ली । कर्नाटक हिजाब मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट जल्द ही तीन जजों की बेंच का गठन करेगा। वकील मीनाक्षी अरोड़ा ने आज इस मामले को चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष मेंशन करते हुए कहा कि एक साल हो चुके हैं। हिजाब की वजह से लड़कियां कक्षाएं नहीं जा रही हैं। उन्होंने मांग की कि इस मामले की सुनवाई के लिए जल्द ही नई बेंच गठित कर सुनवाई की जाए। तब चीफ जस्टिस ने मामले की सुनवाई के लिए जल्द ही नई बेंच के गठन का भरोसा दिया।
दरअसल, 13 अक्टूबर 2022 को सुप्रीम कोर्ट की दो जजों की बेंच ने इस मामले पर विभाजित फैसला सुनाया था। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक सरकार के हिजाब पर रोक के आदेश को सही करार दिया था जबकि जस्टिस सुधांशु धुलिया ने कर्नाटक सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया था। विभाजित फैसला होने की वजह से इस मामले को तीन जजों की बेंच को रेफर किया गया था।
तेहरान । हिजाब के खिलाफ ईरान में उग्र प्रदर्शनों का सिलसिला थम नहीं रहा है। अब आंदोलनकारियों के निशाने पर कट्टरपंथी आ गए हैं और मौलवियों को निशाना बनाया जा रहा है। आंदोलन के दौरान एक मौलवी की पगड़ी उछालने का मामला भी सामने आया है।
पुलिस की हिरासत में बीते 17 सितंबर को 22 वर्षीय छात्रा महसा अमिनी की मौत हो गयी थी। इसके बाद से ईरानी छात्र-छात्राएं लगातार आंदोलित हैं। ईरानी अर्धसैनिक बल रिवोल्यूशनरी गार्ड ने ईरानी विद्यार्थियों को शनिवार तक हर हाल में प्रदर्शन समाप्त करने की चेतावनी दी थी, किन्तु छात्र नहीं माने। ईरानी छात्र-छात्राएं देश भर में प्रदर्शन कर रहे हैं। सड़क पर भारी संख्या में प्रदर्शनकारी छात्र-छात्राओं के उतर आने से ईरान के सुरक्षा बलों ने भी उन पर कार्रवाई की तो जवाब में ईरानी विद्यार्थियों व सुरक्षा बलों में हिंसक झड़प हुई, जिसमें कई घायल हुए। ईरान की सड़कों पर जगह-जगह आगजनी भी हुई है। आंदोलित छात्रों ने सड़कों पर टायर जलाकर रास्ता रोकने जैसे काम भी किये हैं।
दरअसल अब आंदोलनकारियों के निशाने पर कट्टरपंथी व मौलवी आ गए हैं। उग्र होते विरोध-प्रदर्शन के बीच सोशल मीडिया पर तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं। इनमें से एक वायरल वीडियो में एक मौलवी की पगड़ी उछलते हुए दिख रही है। वायरल वीडियो में सड़क पर चल रहे एक मौलवी की पगड़ी, भाग कर आई एक आंदोलनकारी ने उछाल दी। एक अन्य वायरल वीडियो में बस अड्डे पर एक युवक ने एक मौलवी की पगड़ी उछालकर फेंक दी।
ईरान में हिजाब के खिलाफ चल रहा आंदोलन अब तीस से ज्यादा शहरों में फैल चुका है। इन विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व लड़कियां कर रही हैं। बीते दिनों ईरान के शिक्षा मंत्री यूसुफ नूरी ने यहां तक कह दिया था कि हिजाब का विरोध करने वाली स्कूल या कॉलेज की छात्राएं मानसिक रूप से बीमार हैं। इन विरोध प्रदर्शन में अब तक सैकड़ों की संख्या में लोग मारे जा चुके हैं। इसमें कई 20 से कम उम्र की लड़कियां भी शामिल हैं।
- जस्टिस हेमंत गुप्ता ने हिजाब पर रोक के आदेश को सही करार दिया
- जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक सरकार के फैसले को निरस्त किया
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक हिजाब मामले पर विभाजित फैसला सुनाया है। जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कर्नाटक सरकार के हिजाब पर रोक के आदेश को सही करार दिया है जबकि जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कर्नाटक सरकार के फैसले को निरस्त कर दिया। विभाजित फैसला होने की वजह से अब इस मामले को तीन जजों की बेंच को रेफर किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने 22 सितंबर को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच ने इस मामले की 10 दिनों तक सुनवाई की थी। इस दौरान कोर्ट ने हिजाब समर्थक याचिकाकर्ताओं के अलावा कर्नाटक सरकार और कॉलेज शिक्षकों की भी दलीलें सुनीं। 21 सितंबर को कर्नाटक सरकार के अलावा उन कॉलेज शिक्षकों की ओर से जिरह की गई थी जिन्होंने कॉलेज में हिजाब पहनने से मना किया था।
सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने कहा था कि हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है। कुरान में उसके जिक्र मात्र से वो धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हो जाता। कुरान में लिखा हर शब्द अनिवार्य परंपरा नहीं कहा जा सकता है। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा था कि हिजाब समर्थक पक्ष का मानना है कि जो भी कुरान में लिखा है, वो अल्लाह का आदेश है। उसे मानना अनिवार्य है। तब नवाडगी ने कहा था कि हम कुरान के विशेषज्ञ नहीं है, पर खुद सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला है कि कुरान में मौजूद हर शब्द धार्मिक हो सकता है, पर जरूरी नहीं कि वो अनिवार्य धार्मिक परंपरा हो।
सुनवाई के दौरान 20 सितंबर को याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को बढ़ाता है। यह संविधान की धारा 19 और 21 के तहत एक संरक्षित अधिकार है। दवे ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह से अस्थिर है और अवैध है। हाईकोर्ट का फैसला धारा 14, 19, 21 और 25 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने अनिवार्य धार्मिक परंपरा की कसौटी पर सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने की वैधता का परीक्षण करने में गलती की।
कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 2021 से पहले कोई मुस्लिम लडकी हिजाब नहीं पहन रही थी। ना ही ऐसा कोई सवाल उठा। ये कहना ग़लत होगा कि सरकार ने सिर्फ हिजाब बैन किया है, दूसरे समुदाय के लोगों को भी भगवा गमछा पहनने से रोका गया है। मेहता ने कहा था कि 2022 में पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए अभियान शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर इस तरह के मैसेज फैलाये गए। हिजाब पहनने का फैसला बच्चों का नहीं था। बच्चे उस हिसाब से काम कर रहे थे, जैसा उनको समझाया गया था।
हिजाब समर्थक वकीलों की दलीलों के समर्थन में सिखों की पगड़ी का हवाला देने के जबाब में मेहता ने कहा था कि सिखों के केस में पगड़ी और कड़ा उनकी अनिवार्य धार्मिक परम्परा है। आप दुनिया के किसी भी कोने में इनके बिना किसी सिख की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मेहता ने अपनी दलीलों के जरिये ये साबित करने की कोशिश की हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है। उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ता कोई ऐसी दलील नहीं रख पाए जिससे साबित हो कि हिजाब इस्लाम धर्म का शुरुआत से हिस्सा रहा हो या इस धर्म मे इसको पहनना बेहद जरूरी हो। मेहता ने ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं की लड़ाई का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कई इस्लामिक देशों में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं, मसलन ईरान में। इसलिए मेरी दलील है हिजाब कोई इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है।
सुनवाई के दौरान 19 सितंबर को दुष्यंत दवे ने कहा था कि मामला सिर्फ ड्रेस कोड का नहीं है, यहां मंशा दूसरी है। सरकार ये ड्रेस कोड थोप कर मुस्लिम समुदाय को बताना चाहती है कि जो हम कहेंगे, वो आपको करना होगा। हिजाब पहनकर हमने किसी की भावना को आहत नहीं किया है। दवे ने सरदार पटेल की संविधान सभा में दिए गए भाषण का हवाला देते हुए कहा था कि उनका कहना था कि इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यकों पर विश्वास बना रहे। आजकल लोग गांधी को भूलकर सरदार पटेल की बात करते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि सरदार पटेल खुद बहुत धर्मनिरपेक्ष थे।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट आज कर्नाटक हिजाब मामले पर फैसला सुनाएगा। जस्टिस हेमंत गुप्ता की अध्यक्षता वाली बेंच फैसला सुनाएगी। 22 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच ने इस मामले की 10 दिनों तक सुनवाई की थी। इस दौरान कोर्ट ने हिजाब समर्थक याचिकाकर्ताओं के अलावा कर्नाटक सरकार और कॉलेज शिक्षकों की भी दलीलें सुनीं।
21 सितंबर को कर्नाटक सरकार के अलावा उन कॉलेज शिक्षकों की ओर से जिरह की गई थी जिन्होंने कॉलेज में हिजाब पहनने से मना किया था। सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने कहा था कि हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है। कुरान में उसके जिक्र मात्र से वो धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हो जाता। कुरान में लिखा हर शब्द अनिवार्य परंपरा नहीं कहा जा सकता है। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा था कि हिजाब समर्थक पक्ष का मानना है कि जो भी कुरान में लिखा है, वो अल्लाह का आदेश है। उसे मानना अनिवार्य है। तब नवाडगी ने कहा था कि हम कुरान के विशेषज्ञ नहीं है, पर खुद सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला है कि कुरान में मौजूद हर शब्द धार्मिक हो सकता है, पर जरूरी नहीं कि वो अनिवार्य धार्मिक परंपरा हो।
20 सितंबर को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को बढ़ाता है। यह संविधान की धारा 19 और 21 के तहत एक संरक्षित अधिकार है। दवे ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह से अस्थिर है और अवैध है। हाईकोर्ट का फैसला धारा 14, 19, 21 और 25 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने अनिवार्य धार्मिक परंपरा की कसौटी पर सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने की वैधता का परीक्षण करने में गलती की।
कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 2021 से पहले कोई मुस्लिम लडकी हिजाब नहीं पहन रही थी। ना ही ऐसा कोई सवाल उठा। ये कहना ग़लत होगा कि सरकार ने सिर्फ हिजाब बैन किया है, दूसरे समुदाय के लोगों को भी भगवा गमछा पहनने से रोका गया है। मेहता ने कहा था कि 2022 में पोपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए अभियान शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर इस तरह के मैसेज फैलाये गए। हिजाब पहनने का फैसला बच्चों का नहीं था। बच्चे उस हिसाब से काम कर रहे थे, जैसा उनको समझाया गया था।
हिजाब समर्थक वकीलों की दलीलों के समर्थन में सिखों की पगड़ी का हवाला देने के जवाब में मेहता ने कहा था कि सिखों के केस में पगड़ी और कड़ा उनकी अनिवार्य धार्मिक परम्परा है। आप दुनिया के किसी भी कोने में इनके बिना किसी सिख की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मेहता ने अपनी दलीलों के जरिये ये साबित करने की कोशिश की हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है। उन्होंने कहा था कि याचिकाकर्ता कोई ऐसी दलील नहीं रख पाए जिससे साबित हो कि हिजाब इस्लाम धर्म का शुरुआत से हिस्सा रहा हो या इस धर्म मे इसको पहनना बेहद जरूरी हो। मेहता ने ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं की लड़ाई का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कई इस्लामिक देशों में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं, मसलन ईरान में। इसलिए मेरी दलील है हिजाब कोई इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है।
19 सितंबर को सुनवाई के दौरान दुष्यंत दवे ने कहा था कि मामला सिर्फ ड्रेस कोड का नहीं है, यहां मंशा दूसरी है। सरकार ये ड्रेस कोड थोप कर मुस्लिम समुदाय को बताना चाहती है कि जो हम कहेंगे, वो आपको करना होगा। हिजाब पहनकर हमने किसी की भावना को आहत नहीं किया है। दवे ने सरदार पटेल की संविधान सभा में दिए गए भाषण का हवाला देते हुए कहा था कि उनका कहना था कि इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यकों पर विश्वास बना रहे। आजकल लोग गांधी को भूलकर सरदार पटेल की बात करते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि सरदार पटेल खुद बहुत धर्मनिरपेक्ष थे।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट कर्नाटक हिजाब मामले पर इसी हफ्ते फैसला सुनाएगा। दरअसल इस मामले पर सुनवाई करने वाली बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस हेमंत गुप्ता 16 अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में इस मामले पर इसी हफ्ते फैसला आने की उम्मीद है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता और सुधांशु धूलिया की बेंच ने इस मामले की 10 दिनों तक सुनवाई के बाद 22 सितंबर को इस मामले पर फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस दौरान कोर्ट ने हिजाब समर्थक याचिकाकर्ताओं के अलावा कर्नाटक सरकार और कॉलेज शिक्षकों की भी दलीलें सुनीं। इस दौरान कर्नाटक सरकार के अलावा 21 सितंबर को उन कॉलेज शिक्षकों की ओर से जिरह की गई थी, जिन्होंने कॉलेज में हिजाब पहनने से मना किया था।
सुनवाई के दौरान कर्नाटक सरकार के एडवोकेट जनरल प्रभुलिंग नवाडगी ने कहा था कि हिजाब कोई अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है। कुरान में उसके जिक्र मात्र से वो धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं हो जाता। कुरान में लिखा हर शब्द अनिवार्य परंपरा नहीं कहा जा सकता है। तब जस्टिस गुप्ता ने कहा था कि हिजाब समर्थक पक्ष का मानना है कि जो भी कुरान में लिखा है, वो अल्लाह का आदेश है। उसे मानना अनिवार्य है। तब नवाडगी ने कहा था कि हम कुरान के विशेषज्ञ नहीं है, पर खुद सुप्रीम कोर्ट का पुराना फैसला है कि कुरान में मौजूद हर शब्द धार्मिक हो सकता है, पर जरूरी नहीं कि वो अनिवार्य धार्मिक परंपरा हो।
सुनवाई के दौरान 20 सितंबर को याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील दुष्यंत दवे ने कहा था कि हिजाब मुस्लिम महिलाओं की गरिमा को बढ़ाता है। यह संविधान की धारा 19 और 21 के तहत एक संरक्षित अधिकार है। दवे ने कहा कि कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला पूरी तरह से अस्थिर है और अवैध है। हाईकोर्ट का फैसला धारा 14, 19, 21 और 25 का उल्लंघन है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट ने अनिवार्य धार्मिक परंपरा की कसौटी पर सार्वजनिक स्थानों पर हिजाब पहनने की वैधता का परीक्षण करने में गलती की।
कर्नाटक सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा था कि 2021 से पहले कोई मुस्लिम लड़की हिजाब नहीं पहन रही थी। ना ही ऐसा कोई सवाल उठा। ये कहना गलत होगा कि सरकार ने सिर्फ हिजाब बैन किया है, दूसरे समुदाय के लोगों को भी भगवा गमछा पहनने से रोका गया है। मेहता ने कहा था कि 2022 में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया ने सोशल मीडिया पर हिजाब पहनने के लिए अभियान शुरू कर दिया। सोशल मीडिया पर इस तरह के मैसेज फैलाये गए। हिजाब पहनने का फैसला बच्चों का नहीं था। बच्चे उस हिसाब से काम कर रहे थे, जैसा उनको समझाया गया था।
हिजाब समर्थक वकीलों की दलीलों के समर्थन में सिखों की पगड़ी का हवाला देने के जवाब में मेहता ने कहा था कि सिखों के मामले में पगड़ी और कड़ा उनकी अनिवार्य धार्मिक परम्परा है। आप दुनिया के किसी भी कोने में इनके बिना किसी सिख की कल्पना नहीं कर सकते हैं। मेहता ने अपनी दलीलों के जरिये ये साबित करने की कोशिश की हिजाब इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परंपरा नहीं है। मेहता ने ईरान में हिजाब के खिलाफ महिलाओं की लड़ाई का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कई इस्लामिक देशों में महिलाएं हिजाब के खिलाफ लड़ रही हैं, मसलन ईरान में। इसलिए मेरी दलील है हिजाब कोई इस्लाम की अनिवार्य धार्मिक परम्परा नहीं है।
सुनवाई के दौरान 19 सितंबर को दुष्यंत दवे ने कहा था कि मामला सिर्फ ड्रेस कोड का नहीं है, यहां मंशा दूसरी है। सरकार ये ड्रेस कोड थोप कर मुस्लिम समुदाय को बताना चाहती है कि जो हम कहेंगे, वो आपको करना होगा। हिजाब पहनकर हमने किसी की भावना को आहत नहीं किया है। दवे ने सरदार पटेल की संविधान सभा में दिए गए भाषण का हवाला देते हुए कहा था कि उनका कहना था कि इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता कि अल्पसंख्यकों का बहुसंख्यकों पर विश्वास बना रहे। आजकल लोग गांधी को भूलकर सरदार पटेल की बात करते हैं, लेकिन उन्हें पता होना चाहिए कि सरदार पटेल खुद बहुत धर्मनिरपेक्ष थे।
तेहरान। ईरान में पुलिस हिरासत में 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद सरकार विरोधी प्रदर्शन का दौर लगातार चौथे सप्ताह जारी है। विरोध-प्रदर्शन और झड़प के दौरान शनिवार को दो लोगों की मौत हो गई। ईरान में हिजाब विरोधियों को कई देशों का समर्थन मिल रहा है। नीदरलैंड में भी प्रदर्शनकारियों के समर्थन में लोगों ने नारेबाजी की।
ईरान में हिजाब विरोधी प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने अमीनी को कथित रूप से देश के कड़े इस्लामी ड्रेस कोड के उल्लंघन के आरोप में हिरासत में लिया था। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने सरकार विरोधी नारे लगाए और अनिवार्य धार्मिक ड्रेस कोड का विरोध करते हुए अपने हिजाब उतारकर फेंक दिए। कुछ इलाकों में हड़ताल के आह्वान के कारण तथा नुकसान से बचने के लिए व्यापारियों ने दुकानें बंद रखीं।
ईरान के सरकारी टीवी को शनिवार शाम समाचार प्रसार के दौरान 15 सेकंड तक हैक कर लिया गया। इस दौरान देश के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खमेनी की फुटेज प्रसारित की गई। हैकरों ने आग की लपटों से घिरी खमेनी की तस्वीर प्रसारित की, जिसके कैप्शन में लिखा था, आपके पंजों से हमारे युवाओं का खून टपक रहा है।
अमीनी की मौत के बाद से ही देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं और प्रदर्शनकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई में दर्जनों लोगों के मारे जाने और सैकड़ों लोगों के गिरफ्तार होने का अनुमान है। मानवाधिकार निगरानी संगठनों ने बताया कि कुर्द बहुल उत्तरी क्षेत्र के सनांदज शहर में एक कार सवार व्यक्ति को एक प्रमुख मार्ग पर गोली मार दी गई। फ्रांस स्थित कुर्दिस्तान ह्यूमैन राइट्स नेटवर्क एंड द हेंगाव ऑर्गेनाइजेशन फॉर ह्यूमैन राइट्स ने बताया कि इस व्यक्ति को तब गोली मारी गई जब उसने सड़क पर तैनात सुरक्षाबलों के सामने हॉर्न बजाया।
मानवाधिकार निगरानी संगठनों ने बताया कि सुरक्षाबलों ने शहर में भीड़ को तितर-बितर करने के लिए गोलियां चलाईं जिसमें एक अन्य प्रदर्शनकारी की मौत हो गई और 10 प्रदर्शनकारी घायल हो गए। राजधानी तेहरान में भी ईरान के प्रमुख शिक्षा केंद्र शरीफ यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी के समीप भी प्रदर्शन हुए, जिसके बाद प्राधिकारियों ने अगले आदेश तक परिसर को बंद कर दिया है।
सोशल मीडिया पर प्रसारित तस्वीरों के अनुसार, उत्तर-पूर्वी शहर मशाद में भी प्रदर्शन हुए। राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने तेहरान में अल-जहरा विश्वविद्यालय की छात्राओं से मुलाकात में एक बार फिर आरोप लगाया कि प्रदर्शनों को भडक़ाने में विदेशी शत्रुओं का हाथ है। इस बीच, नीदरलैंड के द हेग में हजारों लोगों ने ईरानी प्रदर्शनकारियों के समर्थन में नारे लगाए।
ईरान में हिजाब विरोध के समर्थन में यूरोपीय सांसद व आस्कर विजेता अभिनेत्रियों ने काटे अपने बाल
ब्रसेल्स/पेरिस । ईरान में हिजाब के विरोध में उतरीं वहां की महिलाओं को वैश्विक समर्थन मिल रहा है। ताजा घटनाक्रम में एक यूरोपीय सांसद और आस्कर विजेता अभिनेत्रियों ने अपने बाल काटकर वीडियो शेयर कर विरोध जताया और आंदोलन कर रहीं ईरानी महिलाओं को अपना समर्थन दिया है।
स्ट्रासबर्ग में यूरोपीय संघ की डिबेट को संबोधित करते हुए स्वीडिश राजनेता अबीर अल सहलानी ने संसद में बहस के दौरान अपने बाल काट लिए और कहा कि हम लोग और यूरोपीय संघ के नागरिक, ईरान में पुरुषों और महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार की हिंसा को बिना शर्त और तत्काल रोकने की मांग करते हैं। जब तक ईरान की महिलाएं स्वतंत्र नहीं होंगी, हम आपके साथ खड़े रहेंगे।
अबीर अल सहलानी ने इस दौरान यूरोपीय संघ के सांसदों के सामने कैंची से अपने बाल काट दिए और कहा कि ईरान में मुल्लाओं की हुकूमत के हाथ खून से सने हैं। उनकी इस हरकत को देख सभी सांसद भी अवाक रह गए। अल सहलानी ने इस घटना का वीडियो अपने ट्विटर हैंडल पर पोस्ट किया है।
इसके अलावा आस्कर विजेता फ्रेंच अभिनेत्रियों जुलिएट बिनोचे, मैरिअन कोटिलर्ड समेत 50 से अधिक फ्रांसीसी महिला कलाकारों ने प्रतीकात्मक रूप से अपने बाल काटकर ईरान के हिजाब विरोधी आंदोलन का समर्थन किया है। महिलाओं की आबादी का समर्थन करने की बात कहते हुए जुलिएट बिनोशे ने बुधवार को वीडियो पोस्ट किए हैं। इसमें वह कैंची से अपने सिर के बाल काटते हुए दिख रही हैं। फ्रांसीसी अभिनेत्रियां इसाबेल अदजानी, बेरेनिस बेजो, जूलियट बिनोचे, लार कैलामी, मैरियन कोटिलार्ड, जूली गेएट, शार्लोट गेन्सबर्ग, इसाबेल हुपर्ट और एलेक्जेंड्रा लैमी उन लोगों में से थीं, जिन्होंने अपने बाल काटते हुए खुद की तस्वीरें साझा कीं।
हैशटैग हेयर फॉर फ्रीडम से इस तरह के तमाम वीडियो बहुप्रसारित हो रहे हैं। वहीं, बुधवार को इंटरनेट मीडिया पर ईरान के स्कूली छात्राओं का वीडियो प्रसारित हो रहा है, जिसमें तानाशाह की मौत का नारा लगाते दिख रही हैं।
नॉर्वे स्थित समूह ईरान ह्यूमन राइट्स एनजीओ के अनुसार, महसा अमिनी की मौत पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों में 100 से अधिक लोग मारे गए हैं। ईरानी स्कूली छात्राओं और महिलाओं ने अमिनी की मौत के विरोध में अपने हिजाब को हटाकर और रैलियों का आयोजन करके बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया है। कई महिलाओं ने सरकार विरोधी नारे लगाते हुए अपने बाल भी कटवा लिए हैं।
उल्लेखनीय है कि ईरान में 13 सितंबर को हिजाब न पहनने पर महसा अमीनी को इस्लामी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। विरोध करने पर इस्लामी पुलिस ने महसा को इतना पीटा कि इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। इसके बाद पूरे ईरान में हिजाब विरोधी हिंसा भड़क उठी थी। बड़ी संख्या में पुरुषों ने भी महिलाओं के समर्थन में प्रदर्शन किया है। ईरान के सर्वोच्च नेता खमनेई का भी विरोध किया जा रहा है। इस बीच ईरानी सरकार ने दावा किया है कि हिजाब विरोधी प्रदर्शन के पीछे अमेरिका और इजरायल समेत पश्चिमी देशों का हाथ है।
ईरान ने ब्रिटेन के राजदूत को दूसरी बार किया तलब
ईरान ने ब्रिटेन के राजदूत सिमन शेरक्लिफ को दूसरी बार समन जारी कर हिजाब विरोधी आंदोलन को भड़काने का आरोप लगया है। यह समन ब्रिटेन के विदेश मंत्री जेम्स क्लीवर्ली द्वारा ईरानी प्राधिकारियों से शांतिपूर्ण प्रदर्शन का सम्मान करने व गलत तरीके से हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों को छोड़ने के अनुरोध करने के दो दिन बाद आया है।
तेहरान/वाशिंगटन। ईरान में हिजाब के मसले पर 22 वर्षीय युवती महसा अमिनी की मौत के बाद सरकार विरोधी प्रदर्शन जारी हैं। शुक्रवार को पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई हिंसक झड़प में 19 लोगों की मौत हो गई है।
ईरानी राज्य समाचार एजेंसी आईआरएनए ने सिस्तान और बलूचिस्तान के प्रांतीय गवर्नर होसैन मोदारेस खियाबानी के हवाले से कहा है कि इस टकराव में पुलिसकर्मियों सहित 19 लोग मारे गए हैं और करीब 20 लोग घायल हुए हैं।
वॉयस ऑफ अमेरिका की रिपोर्ट के मुताबिक यह टकराव उस समय हुआ, जब ईरान के सुन्नी अल्पसंख्यक समुदाय के लोग शुक्रवार को सिस्तान और बलूचिस्तान प्रांत की राजधानी झेडान में मक्की ग्रैंड मस्जिद में नमाज अदा करने पहुंचे थे। इसी दौरान ये हिंसक झड़प हुई। इसमें 19 लोगों की जान चली गई। इस रिपोर्ट के मुताबिक एक वीडियो में लोग भागते हुए नजर आ रहे हैं। इस दौरान फायरिंग की आवाज भी साफ सुनाई दे रही है। एक वीडियो क्लिप में गाड़ी को आग लगाते हुए कुछ प्रदर्शनकारी नजर आ रहे हैं। इस बीच ईरानी विपक्ष के नेतृत्व वाली मानवाधिकार कार्यकर्ता समाचार एजेंसी एचआरएएनए ने इस टकराव में कम से कम 40 प्रदर्शनकारियों की मौत का दावा किया है।
नई दिल्ली । कर्नाटक के हिजाब मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज गुरुवार को लंबी सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। देश की सबसे बड़ी अदालत में यह सुनवाई 10 दिनों तक चली। कोर्ट अब अपने फैसले में तय करेगा कि कर्नाटक हाई कोर्ट की ओर से हिजाब की पाबंदी को लेकर दिया गया फैसला सही है या फिर नहीं। सुनवाई के दौरान कल कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से अपनी दलीलें जल्द से जल्द खत्म करने को कहा था।
सुप्रीम कोर्ट में 10 दिन चली सुनवाई के बाद जस्टिस हेमंत गुप्ता और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने हिजाब विवाद पर सुनवाई पूरी करने का ऐलान करने के साथ ही फैसला सुरक्षित रख लिया। साथ ही पीठ ने यह भी कहा कि अब भी जिनको लिखित दलीलें देनी हो दे सकते हैं। बहस का अंत संजय हेगड़े ने एक शेर के साथ किया। उन्होंने कहा, ‘उन्हें है शौक तुम्हें बेपर्दा देखने का, तुम्हें शर्म आती हो तो अपनी आंखों पर हथेलियां रख लो।
इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने हिजाब प्रतिबंध विवाद में कल बुधवार को याचिकाकर्ताओं से कल एक घंटे के भीतर अपनी दलीलें खत्म करने की सलाह देते हुए कहा कि वह अपना धैर्य खो रहा है। नौवें दिन मामले की सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि वह याचिकाकर्ताओं के वकीलों को गुरुवार को अपनी दलीलें समाप्त करने के लिए सिर्फ एक घंटे का समय देगी।