नई दिल्ली । राजनीतिक पार्टियों द्वारा ‘फ्रीबीज‘ यानी मुफ्त की सौगातें बांटने पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला सामने आया है। कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के लिए केस को तीन जजों की बेंच को पुनर्विचार के लिए ट्रांसफर कर दिया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, ‘मुफ्त की सौगातें’ बांटने वाले केस को 3 जजों की बेंच के पास भेजालेकिन उससे पहले कई सवालों पर विचार करना जरूरी है। 2013 के सुब्रमण्यम बालाजी फैसले की समीक्षा भी जरूरी है। हम यह मामला तीन जजों की विशेष बेंच को सौंप रहे हैं। अगली सुनवाई दो हफ्ते बाद होगी।
सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर अदालत का यह फैसला आया है। कोर्ट ने कहा कि ‘फ्रीबीज’ टैक्सपेयर का महत्वपूर्ण धन खर्च किया जाता है। हालांकि सभी योजना पर खर्च फ्रीबीज नहीं होते। यह मसला चर्चा का है और अदालत के दायरे से बाहर है।
अदालत ने सुनवाई के दौरान कहा कि सरकार को ऑल पार्टी मीटिंग बुलाकर चर्चा करनी चाहिए। इसके लिए कमेटी बनाना अच्छा रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘कुछ सवाल हैं जैसे कि न्यायिक हस्तक्षेप का दायरा क्या है? क्या अदालत किसी भी योजना को लागू करने योग्य आदेश पास कर सकती है? समिति की रचना क्या होनी चाहिए? कुछ पार्टी का कहना है कि सुब्रमण्यम बालाजी 2013 के फैसले पर भी पुनर्विचार की जरूरत है।’
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि फ्रीबिज एक ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है, जहां राज्य को दिवालिया होने की ओर धकेल दिया जाता है। उन्होंने कहा कि ऐसी मुफ्त घोषणा का इस्तेमाल पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने के लिए किया जाता है। यह राज्य को वास्तविक उपाय करने से वंचित करता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन लोकतंत्र में निर्वाचक मंडल के पास सच्ची शक्ति है।
इस मामले की पिछली सुनवाई में कोर्ट सरकार से सर्वदलीय बैठक के जरिए एक राय बनाने की बात कह चुका है। चुनाव आयोग ने भी कहा कि इस बाबत नियम कायदे और कानून बनाने का काम उसका नहीं, बल्कि सरकार का है। वहीं, सरकार ने कहा कि कानून बनाने का मामला इतना आसान नहीं है। कुछ विपक्षी पार्टियां इस मुफ्त की घोषणाएं करने को संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति के अधिकार का अंग मानती हैं।
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‘चुनाव आयोग की मंजूरी के बाद ही मुफ्त सुविधाओं की घोषणा करें पार्टियां ‘,
सुप्रीम कोर्ट से हुई मांग
नयी दिल्ली। याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एडवोकेट विकास सिंह ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके कुछ प्रावधान जोड़े जाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है। सुप्रीम कोर्ट में मुफ्त सुविधाओं का मामले पर याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से सीनियर एडवोकेट विकास सिंह ने लिखित जवाब दाखिल किया है । इस जवाब में मांग की गई है कि चुनाव आयोग की ओर से राजनीति दलों के घोषणपत्रों की मंजूरी के बाद ही राजनीतिक दलों को मुफ़्त सुविधाओं की घोषणाओ की इजाज़त होनी चाहिए । इसके लिए चुनाव आयोग के पास एक स्वतंत्र आर्थिक जानकारों की कमेटी होनी चाहिये।
कोर्ट में इस मसले को लेकर आम आदमी पार्टी, डीएमके, आंध्र प्रदेश की सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस और मध्यप्रदेश की महिला कांग्रेस नेता जया ठाकुर ने भी याचिका दाखिल कर पक्षकार बनाये जाने की मांग की है । इन सब का कहना है कि समाज के वंचित तबके की भलाई के लिए लाए जाने वाली योजनाओं को मुफ्तखोरी नहीं कहा जा सकता बल्कि ये एक समतामूलक समाज को बनाने के लिए एक सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है।
राजनीति दलों पर मुद्दे को भटकाने का आरोप
विकास सिंह की ओर से दाखिल जवाब में कहा गया है कि इस मामले में पक्षकार बनने के लिए अर्जी दाखिल करने वाली तमाम राजनीति पार्टियां बेवजह इस अहम मसले को लटकाने की कोशिश कर रही है, मुद्दों से ध्यान भटकाने की कोशिश में है । याचिकाकर्ता का एतराज समाज के वंचित, ज़रूरत मंद तबके के लिये लाई जाने वाली जनकल्याणकारी योजनाओं को लेकर नहीं है, बल्कि उनका जोर ऐसी सुविधाओ की घोषणा के वक़्त ‘आर्थिक अनुशासन’ को लेकर है, ताकि बेलगाम घोषणाओं पर रोक लगाई जा सके।
याचिकाकर्ता ने दिए सुझाव –
याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय की ओर से एडवोकेट विकास सिंह ने जनप्रतिनिधित्व कानून में संशोधन धन करके नीचे लिखे कुछ प्रावधान जोड़े जाने की मांग सुप्रीम कोर्ट से की है-
1. सभी राजनीतिक दल अपना घोषणापत्र चुनाव आयोग को जमा कराए ताकि आयोग घोषणापत्र में किये गए वायदों के चलते होने वाले आर्थिक नुकसान की समीक्षा कर सके।
2. राजनीतिक दल आयोग को ये साफ साफ बताए कि पहले से कर्ज़ में डूबे राज्यों का कर्ज वो कैसे हटाएगी, साथ ही मुफ्त घोषणाओं पर अमल के लिए अतिरिक्त पैसा किन संसाधनों से हासिल करेगी।
3. चुनाव आयोग के पास स्वतंत्र आर्थिक जानकारों की कमेटी होनी चाहिए जो पार्टियों की ओर से हुई घोषणाओ से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले असर की समीक्षा करके एक निश्चित समयसीमा में घोषणापत्रों पर फैसला ले।
4. राजनीतिक दलों को आयोग की ओर से मंजूर किये गए घोषणापत्रों से अलावा चुनाव रैलियों में कोई और घोषणा करने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए.
5. जो राजनीतिक दल इस पूरी प्रकिया का पालन न करें, उनकी मान्यता रद्द कर दी जाए।