नई दिल्ली । राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के लिए तीन जजों की नियुक्ति के असद्र्श जारी कर दिए। राष्ट्रपति ने दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह और गौहाटी हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संदीप मेहता को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने का आदेश जारी किया है।
इन तीनों नामों की अनुशंसा पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने की थी।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में स्वीकृत जजों की संख्या 34 है। इन तीनों जजों की नियुक्ति के बाद अब सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 34 हो जाएगी।
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नई दिल्ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने तीन हाईकोर्ट के जजों का ट्रांसफर कर दिया है। राष्ट्रपति ने पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के जज जस्टिस मनोज बजाज को इलाहाबाद हाईकोर्ट, इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस दिनेश कुमार सिंह को केरल हाईकोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस गौरांग कांत को कलकत्ता हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का आदेश दिया है।
आज जारी नोटिफिकेशन में इस आशय की सूचना दी गई। कॉलेजियम ने 12 जुलाई को इन तीनों जजों के ट्रांसफर की सिफारिश को दोहराया था। इन तीनों जजों ने कॉलेजियम से अपने ट्रांसफर की सिफारिश पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया था, जिस पर विचार करने के बाद कॉलेजियम ने उनके ट्रांसफर के पहले के प्रस्ताव को ही दोहराया था।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट को आज दो नए जज मिल गए। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ ने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा और वकील केवी विश्वनाथन को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में शपथ दिलाई।
शपथ समारोह में सुप्रीम कोर्ट के सभी जज और बड़ी संख्या में वकील शामिल रहे। दो नए जजों के शपथ लेने के साथ सुप्रीम कोर्ट में जजों की कुल स्वीकृत संख्या 34 के बराबर हो गई है।
नई दिल्ली। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने मंगलवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों पर रॉ और आईबी इनपुट को सार्वजनिक डोमेन में रखना एक ‘गंभीर मुद्दा’ है।
ई-अदालत परियोजना के पुरस्कार विजेताओं के अभिनंदन समारोह में मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि जजों की नियुक्ति एक प्रशासनिक मामला है न कि न्यायिक मामला है।
रिजिजू ने मीडिया से बातचीत में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम के हाल की कुछ सिफारिशों से जुड़े सवालों का जवाब दे रहे थे। रिजिजू ने कहा कि खुफिया एजेंसी के अधिकारी देश के लिए गुप्त तरीके से काम करते हैं। अगर उनकी रिपोर्ट सार्वजनिक की जाती है तो वे भविष्य में कुछ करने से पहले “दो बार सोचेंगे”।
उल्लेखनीय है कि हाल में खुफिया तथ्यों को नजरअंदाज करते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम न्यायाधीशों की अपनी अनुशंसा को दोहराया था।
कानून मंत्री ने ई-न्यायालय परियोजना, डिजिटल इंडिया अवार्ड 22 और ई-गवर्नेंस अवार्ड 22 के पुरस्कार विजेताओं को बधाई दी। उन्होंने कहा कि न्याय विभाग कागज रहित अदालतें बनाने के लिए मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की ई-समिति के साथ काम कर रहा है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में लंबित मामलों की संख्या 4.90 करोड़ है। न्याय में देरी का मतलब न्याय से इनकार करना है। लंबित मामलों में कमी लाने का एकमात्र तरीका है कि सरकार और न्यायपालिका एक साथ आएं।
रिजिजू ने कहा कि लंबित मामलों में कमी लाने में तकनीक अहम भूमिका निभा सकती है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ई-कमेटी ने ई-कोर्ट प्रोजेक्ट शुरू किया है। यह अंतिम चरण में है। प्रस्ताव पर भी बड़ी राशि खर्च होगी। उन्हें उम्मीद है कि हम इसे कैबिनेट में ला सकेंगे। न्यायपालिका की जरूरी सहायता प्रदान करने में प्रधानमंत्री आगे रहते हैं।
नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया है कि वह सभी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की ओर से अनुशंसित नामों को मंजूरी देने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित समय सीमा का पालन करेगा।
केंद्र सरकार ने जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच को ये आश्वासन दिया। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि समान्यतया मीडिया में दिए गए बयानों (क़ानून मंत्री के बयान के संदर्भ में) का हम संज्ञान नहीं लेते हैं, लेकिन सवाल कॉलेजियम की सिफारिशों पर फैसला लेने का है। अगर सरकार समय से फैसला नहीं लेगी, तो सिस्टम कैसे काम करेगा।
सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से दायर की गई याचिका में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से की गई सिफारिशों पर केंद्र सरकार अनिश्चित काल तक फैसला नहीं लेती। याचिका में यह भी कहा गया कहा गया है कि छह हफ्ते बीतने के बावजूद केंद्र सरकार उन अनुशंसाओं पर कोई जवाब भी नहीं देती है। देश के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों को लम्बे समय तक खाली नहीं रखा जा सकता है। सरकार जजों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप करना चाहती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर 2022 को अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा था कि वे मंत्रियों को सलाह दें कि वह कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करते समय संयम बरतें। जजों के चयन का यह सिस्टम फिलहाल देश का कानून है। सरकार को इसका पालन करना होगा। कोर्ट ने कहा था कि अगर ऐसा ही रहा तो देश में हर कोई कहने लग जाएगा कि वह किस कानून का पालन करना चाहता है और किसका नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर 2022 को अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से कहा था कि आप लोग सरकार से बात कीजिए और कहिए कि कॉलेजियम की ओर से जिन नामों की सिफारिश की गई है सरकार उन पर फैसला करे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि ऐसा लग रहा है कि नेशनल जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी कमीशन (एनजेएसी) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने के फैसले से सरकार खुश नहीं है। इसलिए सरकार जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय नहीं ले रही है।
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने सुप्रीम कोर्ट में जज के रूप में में नियुक्ति के लिए पांच नामों की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी है।
कॉलेजियम ने राजस्थान हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पंकज मित्तल, पटना हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस संजय करोल, मणिपुर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पीवी संजय कुमार, पटना हाई कोर्ट के जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस मनोज मिश्रा के नामों की सिफारिश की है। इस समय सुप्रीम कोर्ट में जजों के स्वीकृत 34 पदों में से छह पद खाली हैं। सरकार अगर इन पांच नामों को मंजूरी देती है तो जजों की संख्या 33 हो जाएगी।
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने सरकार और उसके मंत्रियों को हिदायत दी कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना करते समय संयम बरतें। जजों के चयन का यह सिस्टम फिलहाल देश का कानून है। सरकार को इसका पालन करना होगा। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी से कहा है कि वे मंत्रियों को सलाह दें कि वे कॉलेजियम सिस्टम पर सोच समझ कर बोले।
अगर ऐसा ही रहा तो देश में हर कोई कहने लग जाएगा कि वह किस कानून का पालन करना चाहता है और किसका नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने 28 नवंबर को अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से कहा था कि आप लोग सरकार से बात कीजिए और कहिए कि कॉलेजियम की ओर से जिन नामों की सिफारिश की गई है सरकार उन पर फैसला करे। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि ऐसा लग रहा है कि नेशनल जुडिशियल अकाउंटेबिलिटी कमीशन (एनजेएसी) को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने के फैसले से सरकार खुश नहीं है। इसलिए सरकार जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय नहीं ले रही है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि समान्यतया मीडिया में दिए गए बयानों (क़ानून मंत्री के बयान के संदर्भ में) का हम संज्ञान नहीं लेते हैं, लेकिन सवाल कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार द्वारा फैसला नहीं लेने का है। सिस्टम कैसे काम करेगा।
सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन (सीपीआईएल) की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से जो अनुशंसाएं की जाती हैं उस पर केंद्र सरकार अनिश्चितकाल तक बैठ जाती है। याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने विभिन्न हाई कोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति के लिए जिन नामों की अनुशंसा की है उनकी नियुक्ति लंबे समय से केंद्र सरकार ने नहीं की है। यहां तक कि छह हफ्ते बीतने के बावजूद केंद्र सरकार उन अनुशंसाओं पर कोई जवाब भी नहीं देती है। याचिका में कहा गया है कि देश के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों को खाली नहीं रखा जा सकता है। सरकार जजों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप करना चाहती है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अटार्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल से कहा है कि आप लोग सरकार से बात कीजिए और कहिए कि कॉलेजियम की ओर से जिन नामों की सिफारिश की गई है सरकार उन पर फैसला करे। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले की अगली सुनवाई आठ दिसंबर को करने का आदेश दिया।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि ऐसा लग रहा है कि नेशनल ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी कमीशन एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज करने के फैसले से सरकार खुश नहीं है। इसलिए सरकार जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों पर निर्णय नहीं ले रही है। जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि सामान्यतया मीडिया में दिए गए बयानों कानून मंत्री के बयान के संदर्भ में का हम संज्ञान नहीं लेते हैं, लेकिन सवाल कॉलेजियम की सिफारिशों पर सरकार द्वारा फैसला नहीं लेने का है। सिस्टम कैसे काम करेगा।
याचिका सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन सीपीआईएल की ओर से दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की ओर से जो अनुशंसा की जाती है, उस पर केंद्र सरकार अनिश्चितकाल तक बैठ जाती है।
याचिका में मांग की गई है कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने विभिन्न हाईकोर्ट के लिए जजों की नियुक्ति के लिए जिन नामों की अनुशंसा की है, उनकी नियुक्ति लंबे समय से केंद्र सरकार ने नहीं की है। यहां तक कि छह हफ्ते बीतने के बावजूद केंद्र सरकार उन अनुशंसाओं पर कोई जवाब भी नहीं देती है। याचिका में कहा गया है कि देश के महत्वपूर्ण संवैधानिक पदों को खाली नहीं रखा जा सकता है। सरकार जजों की नियुक्ति में राजनीतिक हस्तक्षेप करना चाहती है।
कॉलेजियम ने हाई कोर्ट जज बनाने के लिए दस नाम सुझाये , सात हाई कोर्ट जजों के तबादले की भी सिफारिश
नई दिल्ली,। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने केंद्र सरकार को जज बनाने के लिए दस नामों की सिफारिश की है। केंद्र की अनुमति के बाद ये जज दो हाई कोर्ट में तैनात होंगे । इसके अलावा कॉलेजियम की 23 नवंबर को हुई बैठक में के सात हाई कोर्ट जजों के तबादले की भी सिफारिश की गई है।
कॉलेजियम ने राजस्थान हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने के लिए दो वकीलों और छह न्यायिक अधिकारियों के नामों की सिफारिश की है। कॉलेजियम ने राजस्थान हाई कोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने के लिए जिन वकीलों के नामों की सिफारिश की है, उनमें अनिल कुमार उपमान और नुपुर भाटी के नाम शामिल हैं। कॉलेजियम ने राजस्थान हाईकोर्ट के जज के रूप में नियुक्त करने के लिए जिन न्यायिक अधिकारियों के नामों की सिफारिश की है, उनमें राजेंद्र प्रकाश सोनी, अशोक कुमार जैन, योगेंद्र कुमार पुरोहित, भुवान गोयल, प्रवीर भटनागर और आशुतोष कुमार के नाम शामिल हैं।
कॉलेजियम ने विभिन्न हाई कोर्ट के जिन सात जजों को ट्रांसफर करने की सिफारिश की है उनमें मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस वीएम वेलुमणि को कलकत्ता हाई कोर्ट, आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस बट्टु देवानंद को मद्रास हाईकोर्ट, आंध्रप्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस डी. रमेश को इलाहाबाद हाई कोर्ट, तेलंगाना हाई कोर्ट की जस्टिस ललिता केनेगांती को कर्नाटक हाई कोर्ट, तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टिस डॉ डी. नागार्जुन को मद्रास हाईकोर्ट, मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस टी राजा को राजस्थान हाईकोर्ट और तेलंगाना हाईकोर्ट के जस्टस ए. अभिषेक रेड्डी को पटना हाईकोर्ट ट्रांसफर किया गया है।
कॉलेजियम ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के दो एडिशनल जजों को स्थायी जज के रूप में नियुक्ति करने की अनुशंसा की है। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के जिन एडिशनल जजों को स्थायी जज के रूप में नियुक्त करने की अनुशंसा की गई है, उनमें जस्टिस नरेंद्र कुमार व्यास और जस्टिस नरेश कुमार चंद्रवंशी शामिल है।
नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने जज के तौर पर नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की तरफ से भेजे नामों पर सरकार की तरफ से निर्णय नहीं लिए जाने पर नाराजगी जताई है। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली बेंच ने शुक्रवार को केंद्रीय विधि सचिव को नोटिस जारी कर जवाब देने को कहा है।
कोर्ट ने कहा कि सरकार इस तरह नामों को रोके नहीं रह सकती है। इसी के चलते कई अच्छे लोग अपना नाम खुद ही वापस ले लेते हैं। कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम की ओर से की गई अनुशंसाओं को लागू करने में सरकार देरी कर रही है। कोर्ट ने कहा कि कॉलेजियम ने 11 नामों की अनुशंसा की, लेकिन न तो केंद्र सरकार ने उन्हें लौटाया और न ही उनकी नियुक्ति की। सरकार का ये रवैया अस्वीकार्य है। कॉलेजियम जिन नामों की अनुशंसा करें, उन पर केंद्र तीन से चार हफ्ते में फैसला करें।