नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई जुलाई तक के लिये टाल दी है। आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस मामले पर अभी तक अपना रुख साफ नहीं किया है।
कोर्ट ने 9 सितंबर, 2022 को केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने जमीयत उलेमा ए हिंद की कानून के समर्थन में दाखिल याचिका पर भी नोटिस जारी किया था। 8 सितंबर को काशी नरेश विभूति नारायण सिंह की बेटी कुमारी कृष्ण प्रिया ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली नयी याचिका दायर की थी। याचिका में कहा गया है कि काशी रियासत के पूर्व शासक काशी में सभी मंदिरों के मुख्य संरक्षक थे, इसलिए काशी शाही परिवार की तरफ से उनके पास इस अधिनियम को चुनौती देने का अधिकार है।
एक याचिका वकील करुणेश कुमार शुक्ला ने दायर की है। करुणेश कुमार शुक्ला अयोध्या के हनुमान गढ़ी मंदिर में पुजारी भी रह चुके हैं। करुणेश शुक्ला कृष्ण जन्मभूमि मामले में मुख्य याचिकाकर्ता हैं और उन्होंने राम जन्मभूमि मामले में भी मुख्य भूमिका निभा चुके हैं। करुणेश शुक्ला के पहले प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट को कई याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। एक याचिका 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ने वाले रिटायर्ड कर्नल अनिल कबोत्रा ने दाखिल की है।
याचिका में कहा गया है कि हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध को अपने धार्मिक स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इसके पहले मथुरा के धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर ने भी याचिका दायर कर प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 को चुनौती दी है। 26 मई को वकील रुद्र विक्रम सिंह ने भी याचिका दायर कर कहा है कि 15 अगस्त 1947 की मनमानी कटऑफ तारीख तय कर अवैध निर्माण को वैधता दी गई। याचिका में कहा गया है कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की धारा 2, 3 और 4 असंवैधानिक है। ये धाराएं संविधान की धारा 14, 15, 21, 25, 26 और 29 का उल्लंघन करती हैं। ये धाराएं धर्मनिरपेक्षता पर चोट पहुंचाती हैं, जो संविधान के प्रस्तावना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
वाराणसी के स्वामी जितेंद्रानंद ने 25 मई को याचिका दायर कर इस एक्ट को चुनौती दी है। स्वामी जितेंद्रानंद ने कहा है कि सरकार को किसी समुदाय से लगाव या द्वेष नहीं रखना चाहिए लेकिन उसने हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख को अपना हक मांगने से रोकने का कानून बनाया है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट को चुनौती देने वाली एक याचिका बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने भी दायर की है। 12 मार्च, 2021 को मामले में अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर नोटिस जारी हुआ था। याचिका में कहा गया है कि 1991 का प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट धार्मिक स्थलों की स्थिति 15 अगस्त, 1947 वाली बनाए रखने को कहता है। यह हिंदू , सिख , बौद्ध और जैन समुदाय को अपने पवित्र स्थलों पर पूजा करने से रोकता है। इस एक्ट में अयोध्या को छोड़कर देश मे बाकी धार्मिक स्थलों का स्वरूप वैसा ही बनाए रखने का प्रावधान है, जैसा 15 अगस्त, 1947 को था।
हिंदू पुजारियों के संगठन विश्व भद्र पुजारी महासंघ ने भी इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। विश्व भद्र पुजारी महासंघ की याचिका का विरोध करते हुए जमीयत-उलेमा-ए-हिंद ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। एक याचिका सुब्रमण्यम स्वामी ने भी दायर की है।
Buddhist
लखनऊ। बौद्ध धर्मगुरु परम पावन दलाई लामा को गांधी-मंडेला पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर लखनऊ, वाराणसी, कुशीनगर सहित विभिन्न स्थानों पर उनके समर्थकों में खुशी की लहर है। इसके साथ समर्थकों ने परम पावन दलाई लामा को सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान कराये जाने की मांग भी की है।
दलाई लामा को मिले सम्मान पर भारत-तिब्बत संवाद मंच के अन्तर्राष्ट्रीय समन्वयक डा. शुभलाल ने कहा कि पूरे विश्व में परम पावन दलाई लामा इस सम्मान के लिये सबसे योग्य व्यक्ति हैं, क्योंकि वह शांति के सार्वभौमिक दूत हैं। दलाई लामा ने विश्व को अहिंसा और करूणा के सिद्धांत दिए हैं, जिनकी आज के समय में सर्वाधिक आवश्यकता है। क्योंकि यह सेना की शक्ति से अधिक प्रभावी हैं।
उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में दूसरों के प्रति सद्भावना, करुणा और प्रेम की भावना है और यह परम्परा सदियों से चली आ रही है। जिसे आगे बढ़ाने का काम परम पावन दलाई लामा ने किया है। महात्मा गांधी और नेल्सन मंडेला के बाद दलाई लामा ही हैं, जिनमें विश्व नागरिक बनने की क्षमता है। वह किसी भी देश सीमाओं से बंधे व्यक्ति नहीं हैं।
वाराणसी के सारनाथ स्थित तिब्बतन यूनिवर्सिटी में कार्यरत प्रोफेसर रमेश नेगी ने कहा कि दलाई लामा हजारों बुद्धिजीवियों के मार्गदर्शक हैं। उन्हें सम्मान देने वाला स्वयं को सम्मानित मानता है। भारत रत्न की मांग की जा रही है और वह भी इसे सही मानते हैं। परम पावन दलाई लामा ने देश दुनिया में शांति का जो संदेश दिया है, उसका अनुसरण कर के ही विश्व गुरु बना जा सकता है।
लखनऊ विश्वविद्यालय में कार्यरत डाॅ. संजय शुक्ला ने आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा को सम्मान मिलने पर खुशी जाहिर की। उन्होंने दलाई लामा के लिए अपने शब्दों में कहा कि वह बड़े समुदाय के रक्षक है और युवा पीढ़ी को शिक्षा देने वाले हैं। विश्व में व्याप्त अशांति के दौर में दलाई लामा ने शांति का उपदेश दिया जो हमें यह बताता है कि शांति स्थापित करके सभी समस्याओं का समाधान निकाला जा सकता है।
हिमाचल के राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने परम पावन दलाई लामा को विश्व में दया, एकता, अहिंसा पर जोर देने के लिए यह शांति पुरस्कार दिया है। यह कार्यक्रम एक फाउंडेशन की ओर से आयोजित था, जिसमें हिमाचल प्रदेश के गणमान्य लोगों की उपस्थिति रही।