मुंबई । बॉम्बे हाई कोर्ट ने कला निर्देशक नितिन देसाई को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में शुक्रवार को एडलवाइस फाइनेंशियल सर्विसेज के पदाधिकारियों रशेश शाह और अन्य को कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया है। कोर्ट ने पुलिस और अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी करके एक सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा। मामले की अगली सुनवाई 18 अगस्त को होगी।
दरअसल, कला निर्देशक नितिन देसाई को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दर्ज एफआईआर को रद्द करवाने के लिए एडलवाइस फाईनेंशियल सर्विसेज के चेयरमैन रशेस शाह और एडलवाइस एसेट रिकंस्ट्रक्शन कंपनी लिमिटेड के सीईओ राज कुमार बंसल, इसके अधिकारी केयूर मेहता और इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रोफेशनल (आईआरपी) जितेंद्र ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसी याचिका की सुनवाई शुक्रवार को जज नितिन साम्ब्रे और जज राजेश एन लड्ढा की खंडपीठ के समक्ष हुई। हाईकोर्ट ने नितिन देसाई की पत्नी नेहा को नोटिस जारी करके उन्हें इस संबंध में अपना पक्ष रखने को कहा है।
राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता कला निर्देशक नितिन देसाई 2 अगस्त को अपने स्टूडियो में मृत पाए गए थे। पुलिस ने कहा था कि उनके स्टूडियो से जब्त किए गए एक ऑडियो नोट में उन्हें अपनी वित्तीय स्थिति के लिए बंसल, शाह और तीन अन्य को दोषी ठहराते हुए सुना जा सकता है। इसके बाद नेहा नितिन देसाई ने रायगढ़ पुलिस को एक लिखित शिकायत सौंपी और 4 अगस्त को खालापुर पुलिस स्टेशन में भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 34 (सामान्य इरादा) के तहत पांच लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
खालापुर पुलिस थाना में दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं को अंतरिम राहत देने पर विचार किया जाएगा। नितिन देसाई आत्महत्या मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एडलवाइस फाइनेंशियल सर्विसेज से जुड़े आरोपितों को शुक्रवार को तत्काल राहत देने से इंकार कर दिया है। हाईकोर्ट ने इस मामले की सुनवाई 18 अगस्त तक के लिए स्थगित कर दी है।
ईसीएल फाइनेंस एडलवाइस समूह की एक गैर-बैंकिंग वित्त शाखा है, जिसने 2016 और 2018 के बीच देसाई की फर्म एनडी के आर्ट वर्ल्ड को 181 करोड़ रुपये का ऋण दिया था। पुलिस ने ईसीएल फाइनेंस के प्रबंध निदेशक को नोटिस भेजकर देसाई को स्वीकृत ऋण से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर जानकारी मांगी है। हालांकि, शाह और बंसल ने 7 अगस्त को दायर अपनी याचिका में दावा किया कि वे केवल वसूली की आधिकारिक और कानूनी प्रक्रिया का पालन कर रहे थे और उनके खिलाफ एफआईआर अनावश्यक थी और आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई मामला नहीं था।
BOMBAY HIGH COURT
नई दिल्ली। भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने विजय माल्या की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें मुंबई की एक अदालत में माल्या को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित करने और उसकी संपत्ति जब्त करने की कार्यवाही को चुनौती दी गई थी।
सुनवाई के दौरान विजय माल्या के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल से उनका कोई संपर्क नहीं हो रहा है, ताकि वे कोई निर्देश ले सकें। उसके बाद कोर्ट ने माल्या की अर्जी खारिज कर दी।
विजय माल्या ने भारत में अपनी संपत्ति जब्त करने के लिए ईडी की ओर से शुरू की गई कार्रवाई के खिलाफ याचिका दाखिल की थी। विजय माल्या का कहना था कि उसने बैंकों से कर्ज़ किंगफिशर एयरलाइंस के लिए लिया था लेकिन निजी संपत्ति भी जब्त की जा रही है। माल्या ने अपनी और अपने परिजनों की मालिकाना संपत्तियों की कुर्की पर रोक लगाने का अनुरोध किया था।
माल्या का कहना था कि किंगफिशर एयरलाइंस की संपत्तियों के अलावा अन्य संपत्तियां कुर्क नहीं होनी चाहिए। 5 जनवरी 2019 को मुंबई के ट्रायल कोर्ट ने माल्या को भगोड़ा आर्थिक अपराधी घोषित किया था। उसके बाद कोर्ट ने माल्या की संपत्तियों को कुर्क करने की प्रक्रिया शुरू की थी।
ट्रायल कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ माल्या ने बांबे हाईकोर्ट में अपील की थी। बांबे हाईकोर्ट ने 11 जुलाई 2019 को ट्रायल कोर्ट में चल रही कार्यवाही पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। बांबे हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ माल्या ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
मुंबई । लोन फ्रॉड मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व सीईओ चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर की जमानत याचिका मंजूर कर ली है। कोर्ट ने आदेश सुनाते हुए कहा कि यह गिरफ़्तारी कानून के मुताबिक नहीं हुई थी। इससे चंदा कोचर और दीपक कोचर की रिहाई का रास्ता साफ हो गया है।
चंदा कोचर और उनके पति दीपक कोचर को सेंट्रल इंवेस्टिगेशन ब्यूरो (सीबीआई) ने लोन फ्रॉड मामले में 23 दिसंबर को गिरफ्तार किया था। इसके बाद कोर्ट ने दोनों को न्यायिक कस्टडी में भेज दिया था। चंदा कोचर और उनके पति की ओर से वकील विक्रम चौधरी ने सीबीआई की गिरफ्तारी को चुनौती दी थी। इस मामले की सुनवाई शुक्रवार को न्यायाधीश रेवती मोहिते डेरे और न्यायाधीश पृथ्वी राज चव्हाण की खंडपीठ के समक्ष हुई थी और कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट ने सोमवार को इस मामले में अपना फैसला सुनाते हुए चंदा कोचर और दीपक कोचर की जमानत मंजूर की और कहा कि सीबीआई की गिरफ्तारी कानून के अनुरूप नहीं है।
चंदा कोचर और दीपक कोचर के वकील विक्रम चौधरी ने बताया कि इस मामले में सीबीआई ने 14 महीनों में 14 बार स्टेटमेंट रिकार्ड किया था। इसलिए इस मामले में गिरफ्तारी की जरूरत नहीं थी। कोर्ट ने कोचर दम्पति को इस मामले के गवाहों को प्रभावित न करने का भी निर्देश दिया है। सुनवाई के दौरान सीबीआई के वकील ने कहा कि चंदा कोचर और दीपक कोचर जांच में सहयोग नहीं कर रहे थे। इसी वजह से पति-पत्नी दोनों को गिरफ्तार किया गया था।
हाईकोर्ट ने कर्नल पुरोहित को मालेगांव विस्फोट मामले में निर्दोष बरी करने की मांग वाली याचिका खारिज की
मुंबई । वर्ष 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले के मुख्य आरोपित लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को बरी करने की मांग वाली याचिका बॉम्बे हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। पुरोहित ने यह कहते हुए अदालत से बरी करने की मांग की थी कि वह एक सैन्य अधिकारी थे। अदालत ने उनकी बात सुनी, लेकिन कोर्ट ने याचिकाकर्ता से कहा कि बम विस्फोट करना आपका आधिकारिक काम नहीं था।
लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद पुरोहित ने मालेगांव विस्फोट मामले में बरी करने के लिए बाम्बे हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इस याचिका की सुनवाई जज एएस गडकरी और जज प्रकाश नाइक की खंडपीठ के समक्ष हुई। कर्नल पुरोहित के वकील ने कोर्ट को बताया कि मुकदमा चलाने के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 197 (2) के तहत भारतीय सेना से अनुमति आवश्यक है और इस मामले में अनुमति नहीं ली गई थी। इसके बाद नेशनल इंवेस्टिगेशन एजेंसी (एनआईए) ने कहा कि ऐसी अनुमति की आवश्यकता केवल ड्यूटी के दौरान किए गए कार्यों के लिए होती है। एनआईए ने कहा कि मालेगांव विस्फोट पुरोहित की ड्यूटी का हिस्सा नहीं था। कर्नल पुरोहित ने 2007 में अभिनव भारत नाम से एक संस्था शुरू की थी। इस संगठन ने भारतीय संविधान को स्वीकार नहीं किया, जिसका उद्देश्य भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना था। इसके बाद कोर्ट ने कर्नल पुरोहित की याचिका खारिज कर दी।
दरअसल, 2008 में मालेगांव में मस्जिद के सामने मोटरसाइकिल विस्फोट हुआ था। यह मोटरसाइकिल प्रज्ञा सिंह ठाकुर के नाम पर थी। इस बम विस्फोट में छह नागरिकों की मौत हो गई थी और 101 लोग घायल हो गए थे। इस मामले में कर्नल पुरोहित, भाजपा सांसद प्रज्ञा सिंह ठाकुर और पांच अन्य को गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद 2017 में कर्नल पुरोहित को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दे दी थी। इसके बाद कर्नल पुरोहित ने बाम्बे हाईकोर्ट ने इस मामले में निर्दोष बरी करने के लिए याचिका दाखिल की थी।
मुंबई । दुष्कर्म पीड़िता का नाम सार्वजनिक करने के मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने कानूनी फर्म हुल्यालकर एंड एसोसिएट्स पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। साथ ही इस जुर्माना राशि को 4 जनवरी तक हाई कोर्ट के कीर्तिकर विधि पुस्तकालय में जमा कराने का आदेश दिया।
जानकारी के अनुसार ला फर्म ने एक जनहित याचिका दायर कर दुष्कर्म और धोखाधड़ी के आरोप में दर्ज मामले को रद्द करने की मांग की है। इस मामले में पीड़िता को प्रतिवादी बनाया गया है। इस मामले की सुनवाई हाई कोर्ट में न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति पृथ्वीराज चव्हाण की खंडपीठ कर रही थी। ला फर्मं में याचिका ने दुष्कर्म पीड़िता का नाम का उल्लेख किया था। खंडपीठ ने इसे गंभीरता से लेते हुए ला फर्म को पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में पीड़िता की पहचान का खुलासा आईपीसी की धारा 228-ए के तहत प्रतिबंधित है। इस याचिका में आईपीसी की धारा 228-ए की जानकारी होने और पीड़िता की पहचान उजागर करने पर वकीलों को दो साल की सजा के बारे में बार-बार अवगत कराने के बावजूद पीड़िता के नाम का खुलासा किया गया है। इसलिए याचिका तैयार करने वाली कानूनी फर्म पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया जा रहा है। फर्म ने पीडि़ता का नाम पूरी तरह से हटाने के लिए याचिका में संशोधन करने की अनुमति मांगी लेकिन हाई कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई स्थगित कर दिया।
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने अर्नब गोस्वामी पर दायर मानहानि का केस वापस लिया
मुंबई । रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्नब गोस्वामी और उनकी कंपनी एआरजी के खिलाफ 90 लाख रुपये का मानहानि का मुकदमा मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने वापस ले लिया। कोर्ट ने सिंह को अपना मुकदमा वापस लेने की अनुमति दे दी है। मुंबई की विशेष कोर्ट ने परमबीर सिंह को 1,500 रुपये वकील के खर्च के रूप में अर्नब गोस्वामी को अदा करने का आदेश दिया है।
दरअसल, परमबीर सिंह ने 2021 में अर्नब गोस्वामी पर मानहानि करने का मुकदमा दायर किया था। इस मुकदमे में सिंह ने अर्नब पर कथित रूप से बदनाम करने का आरोप लगाया था और मानहानि के लिए 90 लाख रुपये और 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की मांग की थी। परमबीर सिंह जून 2022 में सेवानिवृत्त हुए थे। इस मुकदमे को चुनौती देते हुए गोस्वामी की कानूनी टीम ने सिंह के मुकदमे पर सवाल उठाया था, इसलिए यह मामला कोर्ट में लंबित था।
बुधवार को सिंह ने कोर्ट में मामला वापस लेने के लिए आवेदन दिया। इसके बाद कोर्ट ने कहा कि अगर याचिकाकर्ता मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहता है और बिना शर्त मुकदमा वापस लेने की मांग करता है तो इसे स्वीकार किया जा रहा है। कोर्ट ने सिंह को गोस्वामी को 1,500 रुपये का भुगतान करने के लिए कहा।
परमबीर सिंह ने अर्नब गोस्वामी पर टीआरपी घोटाले का आरोप लगाया था। उस समय अर्नब गोस्वामी ने भी परमबीर सिंह के विरुद्ध अपने टीवी चैनल पर खबरें प्रसारित की थीं। इसी वजह से परमबीर सिंह ने अर्नब गोस्वामी व उनकी कंपनी के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा दायर किया था।
मुंबई । 100 करोड़ रुपये वसूली मामले में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता और पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख को 13 महीने बाद बाम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर जमानत दे दी। कोर्ट ने अपने संक्षिप्त फैसले में माना है कि देशमुख के खिलाफ कोई सबूत नहीं है।
हाईकोर्ट ने अनिल देशमुख की जमानत पर सुनवाई पहले ही पूरी कर ली थी और फैसला सुरक्षित रखा था। सोमवार को जज मकरंद कर्णिक ने इस मामले में अनिल देशमुख को जमानत देने का फैसला सुनाया। कोर्ट ने अपने संक्षिप्त फैसले में माना है कि देशमुख के खिलाफ कोई सबूत नहीं है। अनिल देशमुख की ओर से वकील अनिकेत निकम ने बताया कि यह मामला अप्रैल, 2021 में दर्ज किया गया था और गलत तरीके से देशमुख को गिरफ्तार किया गया। मामले में सरकारी गवाह ने अपनी गवाही में कहा था कि वे होटलों से वसूली करते थे, लेकिन वसूली के कोई सबूत नहीं मिले। साथ ही मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने भी कहा था कि उन्होंने सुनी सनाई बात के आधार पर आरोप लगाया था, जबकि उनके पास कोई सबूत नहीं हैं। इस मामले में ईडी के पास भी सबूत नहीं थे, इसी वजह से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) के मामले में देशमुख को जमानत मिली है।
दरअसल, मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह ने पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर हर महीने 100 करोड़ रुपये रंगदारी वसूलने का टारगेट देने का आरोप लगाते हुए तत्कालीन मुख्यमंत्री को पत्र लिखा था। इसी पत्र के आधार पर सीबीआई ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी और मामले की मनी लॉड्रिंग एंगल से जांच करने के लिए ईडी को निर्देश दिया था। इसके बाद ईडी ने इस मामले में अनिल देशमुख को गिरफ्तार किया था। इस मामले में अनिल देशमुख को 13 महीने बाद जमानत मिली है। हालांकि इस समय अनिल देशमुख का इलाज मुंबई के अस्पताल में कोर्ट की अनुमति से हो रहा है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट का मानना है की अरुण तेजपाल को यह मांग करने का अधिकार नहीं है कि उनके केस की सुनवाई बंद कमरे में की जाये। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने सहयोगी से रेप के आरोपित तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को कोई राहत नहीं दी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि वे बांबे हाई कोर्ट के आदेश में दखल नहीं देना चाहते हैं। कोर्ट ने कहा कि आरोपित के पास यह कहने का अधिकार नहीं है कि मामले की सुनवाई बंद कमरे में की जाए।
सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप से इनकार करने के बाद बांबे हाई कोर्ट में मामले की सुनवाई आम तौर पर होने वाली सुनवाई की तरह जारी रहेगी। तरुण तेजपाल ने बांबे हाई कोर्ट में मामले की अपील की इन-कैमरा सुनवाई की मांग की थी। बांबे हाई कोर्ट ने 24 नवंबर 2021 को तरुण तेजपाल की याचिका खारिज कर दी थी। हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ तेजपाल ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
दरअसल, तेजपाल को गोवा की ट्रायल कोर्ट ने आरोपों से बरी कर दिया था। ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ गोवा सरकार ने बांबे हाई कोर्ट का दरवाजा खट-खटाया था। हाई कोर्ट में तेजपाल ने इन कैमरा सुनवाई की मांग की थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दी थी।