नई दिल्ली । बिहार के जातिगत सर्वे के आंकड़ों को प्रकाशित करने पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। जस्टिस संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि हम किसी भी राज्य सरकार के किसी काम पर रोक नहीं लगा सकते। कोर्ट ने बिहार सरकार को नोटिस जारी कर जनवरी, 2024 तक जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि हम इस मामले में विस्तृत सुनवाई करेंगे।
बिहार सरकार ने 2 अक्टूबर को जाति आधारित जनगणना का डाटा जारी किया था, क्योंकि इसके पहले भी 6 सितंबर को कोर्ट ने सर्वे के आंकड़े जारी करने पर अंतरिम रोक का आदेश देने से इनकार कर दिया था। उस समय कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। इससे पहले 28 अगस्त को केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा था कि संविधान के मुताबिक जनगणना केंद्रीय सूची के अंतर्गत आता है। सरकार ने ये भी कहा कि केंद्र सरकार खुद एससी, एसटी और सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े लोगों के उत्थान की कोशिश में लगी है।
केंद्र सरकार ने कहा है कि जनगणना एक विधायी प्रक्रिया है, जो जनगणना अधिनियम 1948 के तहत है। केंद्रीय अनुसूची के 7वें शेड्यूल के 69वें क्रम के तहत इसके आयोजन का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। केंद्र ने कहा है कि य़ह अधिनियम 1984 की धारा-3 के तहत यह अधिकार केंद्र को मिला है, जिसके लिए केंद्र सरकार की ओर से अधिसूचना जारी कर य़ह बताया जाता है कि देश में जनगणना कराई जा रही है और उसके आधार भी स्पष्ट किए जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को सुनवाई करते हुए कहा था कि ऐसा नहीं लगता है कि सर्वे से किसी की निजता का हनन हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहले याचिकाकर्ता इस बात पर दलील दें कि मामला सुनवाई योग्य है। सुनवाई के दौरान बिहार सरकार ने कहा था कि हमने जाति आधारित जनगणना पूरी कर ली है। याचिकाकर्ताओं ने इस सर्वे का आंकड़ा सार्वजनिक करने पर रोक लगाने की मांग की। इस पर कोर्ट ने कहा था कि हम अभी रोक नहीं लगाएंगे।
जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा था कि दो-तीन कानूनी पहलू हैं। हम नोटिस जारी करने से पहले दोनों पक्ष की दलील सुनेंगे, फिर निर्णय करेंगे। हालांकि कोर्ट ने कहा कि निजी आंकड़े कभी सार्वजनिक नहीं होते। आंकड़ों का विश्लेषण ही जारी किया जाता है। इस पर बिहार सरकार ने कहा था कि आंकड़े दो तरह के हैं। एक व्यक्तिगत आंकड़ा जो सार्वजनिक नहीं किया जा सकता, क्योंकि निजता का सवाल है, जबकि दूसरा आंकड़ों का विश्लेषण किया जा सकता है, जिससे बड़ी पिक्चर सामने आती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को कहा था कि वह हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल सभी याचिकाओं को एक साथ सुनेगा। याचिकाकर्ता अखिलेश कुमार समेत दूसरे याचिकाकर्ताओं ने पटना हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। पटना हाई कोर्ट ने 2 अगस्त को बिहार सरकार की ओर से जाति आधारित सर्वे कराने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया था। पटना हाई कोर्ट का आदेश आने के बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट याचिका दायर की है।
bihar govt
पटना हाई कोर्ट : जातीय गणना के मामले की जल्द सुनवाई की सरकार की याचिका खारिज ,अब तीन जुलाई को होगी सुनवाई
पटना । राज्य में जातीय गणना पर बिहार सरकार की ओर से जल्द सुनवाई की मांग को पटना हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया है। सरकार ने मामले में जल्द सुनवाई की मांग की थी। अब तीन जुलाई को ही इस मामले में सुनवाई होगी।
पटना हाई कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राज्य में जातियों की गणना एवं आर्थिक सर्वेक्षण को चुनौती देने वाले याचिकाओं पर तीन जुलाई के पूर्व ही कोर्ट से सुनवाई करने की मांग की थी, जिसे आज कोर्ट ने खारिज कर दिया। चीफ जस्टिस केवी चन्द्रन की खंडपीठ ने इन मामलों पर सुनवाई की तिथि पूर्व में निर्धारित तीन जुलाई ही रखा।
उल्लेखनीय है कि चार मई को हाई कोर्ट ने अंतरिम आदेश देते हुए जातीय गणना पर रोक लगा दी थी।
गोपालगंज डीएम की हत्या का मामला : बिहार सरकार व आनंद मोहन को सुप्रीम कोर्ट ने रिहाई को लेकर नोटिस भेजा
नई दिल्ली । गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन की रिहाई के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार और आनंद मोहन को नोटिस जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने बिहार सरकार से रिहाई से जुड़ा रिकार्ड दो हफ्ते में जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है।
याचिकाकर्ता जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया की ओर से पेश वकील सिद्धार्थ लूथरा और तान्या श्री ने आनंद मोहन की रिहाई को रद्द करके उसे फिर से जेल भेजे जाने की मांग की। उन्होंने कहा कि आनंद मोहन की रिहाई के लिए उसके जेल में व्यवहार को तो ध्यान में रखा गया, लेकिन दोषी के पूर्व इतिहास को नजरअंदाज किया गया। ऐसा करना लोकहित के खिलाफ है। बिहार सरकार का ये कदम लोकसेवकों को मनोबल तोड़ने वाला है।
याचिका में कहा गया है कि गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की 5 दिसंबर, 1994 को हुई हत्या मामले में दोषी आनंद मोहन की रिहाई हाल ही में बिहार सरकार के जेल नियमों में किये गये संशोधन के चलते संभव हो पाई है। आनंद मोहन की रिहाई सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के विपरीत है। आनंद मोहन की रिहाई का फैसला गलत तथ्यों के आधार पर लिया गया है।
पटना । बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी महागठबंधन की सरकार ने बुधवार को विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर लिया। इस दौरान हालांकि विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों ने सदन का बहिष्कार किया।
सदन का संचालन कर रहे विधानसभा उपाध्यक्ष महेश्वर हजारी ने विश्वास मत पर बहस के बाद ध्वनि मत से विश्वास का प्रस्ताव पारित कर दिया। इसके बाद संसदीय कार्य मंत्री विजय कुमार चौधरी ने विधानसभा उपाध्यक्ष से मतदान कराने की मांग की। इधर, भाजपा के तार किशोर प्रसाद ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा कि जब ध्वनिमत से विश्वास मत हासिल हो ही गया तो वोटिंग की क्या जरूरत। इसके बाद भाजपा ने सदन का बहिष्कार कर दिया। इसके बाद वोटिंग कराई गई, जिसमे सत्ता पक्ष के पक्ष में 160 मत पड़े, जबकि अविश्वास को लेकर एक भी मत नहीं पड़ा।
इसके पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भाजपा पर जमकर निशाना साधा। उन्होंने कहा कि 2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड को खत्म करने की साजिश रची गई थी, उसके बाद पार्टी के सदस्य के साथ चार पार्टी थीं, लेकिन आज आठ पार्टी हमारे साथ हैं। उल्लेखनीय है कि 2020 के चुनाव में नीतीश के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी, लेकिन इस महीने के प्रथमार्ध में नीतीश कुमार ने एनडीए के सीएम पद से त्यागपत्र दे दिया और महागठबंधन से मिलकर सरकार बना ली।