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सुप्रीम कोर्ट : मुख्य चुनाव आयुक्त-चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के मामले में फैसला सुरक्षित

जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान बेंच ने इस मामले को चार दिन सुना

by Suyash

नई दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में पारदर्शिता लाने की मांग पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। जस्टिस के एम जोसफ की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान बेंच ने इस मामले पर चार दिन सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल कोर्ट में पेश की। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली बेंच ने नियुक्ति में सरकार की ओर से दिखाई गई तेजी पर सवाल उठाया। कोर्ट ने कहा कि एक ही दिन फाइल को क्लीयरेंस मिलने से लेकर नियुक्ति तक कैसे हो गई। पद तो 15 मई से खाली था।
कोर्ट ने पूछा कि कानून मंत्री ने चार नाम भेजे थे। सवाल यह भी है कि यही चार नाम क्यों भेजे गए। फिर उसमें से सबसे जूनियर अधिकारी कैसे चुना गया। रिटायर होने जा रहे अधिकारी ने इस पद पर आने से पहले वीआरएस भी लिया। इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि चार नाम कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के डेटाबेस से लिए गए। वह सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। तब कोर्ट ने कहा कि पर यही चार क्यों। फिर उनमें से सबसे जूनियर का चयन क्यों। तब अटार्नी जनरल ने कहा कि नाम लिए जाते समय वरिष्ठता, रिटायरमेंट, उम्र आदि को देखा जाता है। इसकी पूरी व्यवस्था है। आयु की जगह बैच के आधार पर वरिष्ठता मानते हैं।

सवाल यह है कि क्या कार्यपालिका की छोटी-छोटी बातों की यहां समीक्षा होगी। तब कोर्ट ने कहा कि हम सिर्फ प्रक्रिया को समझना चाह रहे हैं। आप यह मत समझिए कि कोर्ट ने आपके विरुद्ध मन बना लिया है। अभी भी जो लोग चुने जा रहे वह मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पद पर 6 साल नहीं रह पाते हैं। अटार्नी जनरल ने कहा कि हमने सारी बातें कोर्ट के सामने रखी हैं। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि 1985 बैच में भी 150 से ज्यादा अधिकारी थे। अगर चुने जाते तो उनमें से कई का कार्यकाल अरुण गोयल से अधिक होता।
सुप्रीम कोर्ट ने 23 नवंबर को केंद्र सरकार से कहा था कि 19 नवंबर को नियुक्त किए गए चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति से जुड़ी फाइल कोर्ट में पेश करें। कोर्ट ने कहा था कि ये नियुक्ति तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति प्रकिया को लेकर मामला लंबित था। हम जानना चाहते हैं कि क्या ये नियुक्ति तय प्रकिया का पालन करते हुई है।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जब संविधान बेंच के सामने मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति प्रकिया को लेकर मामला लंबित था, उसी दौरान यह नियुक्ति हुई है, ऐसे में हम जानना चाहते हैं कि इस नियुक्ति में किस तरह की प्रकिया का पालन हुआ है। कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयुक्त को इतना स्वतंत्र और निष्पक्ष होना चाहिए, अगर प्रधानमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई करने की जरूरत पड़े तो वह हिचकिचाए नहीं। इसके लिए जरूरी है कि उनका चयन सिर्फ कैबिनेट नहीं करे, उनकी नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र निकाय होना चाहिए।
दरअसल, सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अनूप बरनवाल की ओर से पेश वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि अरुण गोयल को वीआरएस दिया गया और उसके दो दिन के बाद ही उनकी नियुक्ति का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया। उन्होंने कहा था कि जिस भी निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति की जा रही है वो रिटायर व्यक्ति होता है। लेकिन अरुण गोयल सरकार के सचिव थे। 17 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर सुनवाई की और अरुण गोयल को 18 नवंबर को वीआरएस दिया गया। उनकी नियुक्ति का नोटिफिकेशन 19 या 20 नवंबर को जारी कर दिया गया। 21 नवंबर से उन्होंने काम करना शुरु कर दिया। प्रशांत भूषण ने कहा था कि निर्वाचन आयुक्त का ये पद मई से खाली था। ऐसे में किस प्रक्रिया का पालन किया गया।
सुनवाई के दौरान जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा था कि आमतौर पर वीआरएस लेने वाला कर्मचारी तीन महीने का नोटिस देता है। तब प्रशांत भूषण ने कहा कि उन्हें संदेह है कि अरुण गोयल ने वीआरएस के लिए नोटिस दिया था कि नहीं। इसलिए गोयल की नियुक्ति से जुड़े दस्तावेज कोर्ट को मंगाने चाहिए। इस पर अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने आपत्ति जताते हुए कहा था कि कोर्ट बड़े मसले पर विचार कर रही है। अटार्नी जनरल ने कहा था कि प्रशांत भूषण जैसा बता रहे हैं वैसा नहीं है। इस पर जस्टिस जोसेफ ने कहा कि कोर्ट ने 17 नवंबर को सुनवाई की। उस समय भूषण ने अंतरिम अर्जी पर विचार करने को कहा था। उसके बाद 22 नवंबर को सुनवाई हुई। इसलिए अरुण गोयल की नियुक्ति से संबंधित फाइल कोर्ट में दाखिल कीजिए। उन्होंने अटार्नी जनरल से कहा कि जैसा कि आप अपने आप को सही कह रहे हैं तो फाइल दाखिल करने में कोई हीला-हवाली नहीं करनी चाहिए।
मुख्य निर्वाचन आयुक्त और अन्य निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की तरह एक कमेटी गठित करने की मांग करने वाली याचिका 23 अक्टूबर 2018 को सुनवाई के लिए पांच जजों की संविधान बेंच को रेफर कर दी थी। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयोग को मजबूत बनाने और उसकी विश्वसनीयता बचाये रखने के लिए निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए कमेटी गठित की जाए।
याचिका अनूप बरनवाल ने दायर की है। याचिका में कहा गया है कि निर्वाचन आयुक्तों की नियुक्ति के लिए जो कमेटी बनाई जाए उसमें विपक्ष के नेता और चीफ जस्टिस भी शामिल हों। इनकी नियुक्ति के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष सेलेक्शन कमेटी का गठन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी किया जाए।