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केंद्र सरकार ने राजद्रोह कानून में बदलाव पर फैसले के लिए सुप्रीम कोर्ट से और समय मांगा

अटार्नी जनरल ने कहा ,संसद के मानसून सत्र में राजद्रोह कानून विधेयक पेश किया जा सकता है

by Suyash
Owasi, SC, UP

नई दिल्ली । केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राजद्रोह कानून में बदलाव पर फैसले के लिए समय मांगा है। अटार्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि संसद के मानसून सत्र में विधेयक पेश किया जा सकता है। केंद्र सरकार की इस सूचना के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई के लिए अगस्त के दूसरे हफ्ते की तारीख तय की है।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि अंतरिम आदेश अभी लागू रहेगा। इस तरह भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत एफआईआर पर रोक जारी रहेगी। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील गोपाल शंकरनारायण ने कहा कि इस मामले को सात जजों की बेंच के पास जाना चाहिए, क्योंकि बहुत सारे फैसले हैं, जिन पर गौर करने की जरूरत है।
केंद्र सरकार ने 6 फरवरी को कहा था कि वो राजद्रोह कानून की समीक्षा कर रही है। 11 मई, 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह के कानून पर केंद्र को कानून की समीक्षा की अनुमति दे दी थी। तत्कालीन चीफ जस्टिस एनवी रमना की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के तहत फिलहाल नए केस दर्ज करने पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी पर केस दर्ज हो तो निचली अदालत से राहत की मांग करे। कोर्ट ने लंबित मामलों में कार्रवाई पर रोक लगाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि जेल में बंद लोग निचली अदालत में ज़मानत याचिका दाखिल करें।
राजद्रोह के कानून के खिलाफ 12 जुलाई, 2021 को मणिपुर के पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ल की ओर से दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान तत्कालीन अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दाखिल करने के लिए समय देने की मांग की थी। याचिकाकर्ता की ओर से वकील तनिमा किशोर ने कहा है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए संविधान की धारा 19 का उल्लंघन करती है। यह धारा सभी नागरिकों को बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में 1962 में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही कानून की वैधता को बरकरार रखा था लेकिन अब इसके साठ साल बीतने के बाद ये कानून आज संवैधानिक कसौटी पर पास नहीं होता है।
याचिका में कहा गया है कि भारत पूरे लोकतांत्रिक दुनिया में अपने को लोकतंत्र कहता है। ब्रिटेन, आयरलैंड, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, घाना, नाइजीरिया और युगांडा ने राजद्रोह को अलोकतांत्रिक करार दिया है। याचिका में कहा गया है कि दोनों याचिकाकर्ता एक मुखर और जिम्मेदार पत्रकार हैं। वे संबंधित राज्य सरकारों और केंद्र सरकार पर सवाल उठाते हैं। दोनों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कार्टून शेयर करने के लिए धारा 124ए के तहत राजद्रोह की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज हैं।