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Water Crisis: जल संकट से बचना है तो बदलना होगा धान की खेती का तौर-तरीका

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कई राज्य इस समय भयंकर पानी किल्लत (Water Crisis) से जूझ रहे हैं. उधर, गेहूं की कटाई के बाद धान की रोपाई की तैयारियां चल रही हैं. धान की फसल में पानी की खपत ज्यादा होती है. करीब एक किलो चावल तैयार होने में 3000 लीटर तक पानी की खपत हो जाती है. ऐसे में कृषि वैज्ञानिक और सरकारें धान की खेती (Paddy Farming) को हतोत्साहित कर रही हैं. वरना पानी ही नहीं रहेगा तो फिर किसान खेती कैसे करेंगे. चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने पानी की बचत के लिए किसानों को धान की सीधी बीजाई करने की सलाह दी है. जिसमें उसकी पौध डालने की जरूरत नहीं होगी. विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय कृषि अधिकारी कार्यशाला (खरीफ) में कहा कि सीधी बुवाई किसानों (Farmers) के लिए कई मायने में अच्छी है.

कार्यशाला का आयोजन खरीफ फसलों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों के स्तर पर अपनाए जाने वाली कृषि सिफारिशों को अंतिम रूप देने के लिए किया गया था. इस मौके पर खरीफ मौसम की अनाज, दलहन, तिलहन, चारा, गन्ना, कपास, बाजरा व मक्का फसलों पर 17 सिफारिशें स्वीकृत की गईं. कुलपति प्रो. बीआर काम्बोज ने इसे अहम कार्य बताते हुए वैज्ञानिकों से धान की खेती में पानी की बचत (Save Water) के लिए टेक्नोलॉजी विकसित करने और पानी की कम आवश्यकता वाली धान की किस्मों की पहचान करने का आह्वान किया.

फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने की जरूरत

कुलपति ने पानी की बचत के लिए धान की सीधी बीजाई और फसल विविधीकरण (Crop Diversification) को बढ़ावा दिए जाने पर बल दिया. इस कार्यशाला में धान की बीजाई के समय को लेकर बहुत उम्दा सिफारिश हुई है. कृषि विशेषज्ञों को इस प्रकार की योजना तैयार रखनी चाहिए ताकि विकट परिस्थितियों में किसानों को आर्थिक हानि न उठानी पड़े. इस मौके पर कृषि विभाग के अतिरिक्त निदेशक (सांख्यिकी) डॉ. आरएस सोलंकी, विश्वविद्यालय के विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. बलवान सिंह मंडल और अनुसंधान निदेशक डॉ. जीत राम शर्मा सहित कई लोग मौजूद रहे.

गुलाबी सुंडी की रोकथाम के लिए प्लान तैयार

काम्बोज ने कृषि विभाग की ओर से कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से बचाने के लिए तैयार की गई कार्ययोजना और तनाछेदक कीट की रोकथाम के लिए जैविक एजेंट की सिफारिश किए जाने की सराहना की. जैविक कीटनाशकों के लिए जैव प्रयोगशालाओं को मजबूत करने को कहा. उन्होंने पोषण सुरक्षा के लिए बाजरा, रागी जैसे मोटे अनाजों (मिलेट्स) की खेती और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य किए जाने पर भी जोर दिया.

मोटे अनाज वाली फसलों की वकालत

कृषि विभाग के महानिदेशक डॉ. हरदीप सिंह ने कहा कि खरीफ फसलों के लिए की गई सिफारिशों को यथाशीघ्र किसानों तक पहुंचाया जाना चाहिए. उन्होंने वैज्ञानिकों से धान की पराली के प्रबंधन की समस्या से निपटने के लिए स्ट्रा डिकम्पोजर की उपयोगिता परखने और उपयुक्त पाने जाने पर प्रदेश के किसानों को इसका लाभ दिलाने को कहा. उन्होंने कहा पोषण सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रदेश में मोटे अनाजों की खेती को बढ़ावा मिलना चाहिए.

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