अमरावती (आंध्र प्रदेश) । साल के पहले दिन सोमवार सुबह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्सपोसेट (एक्स-रे पोलारिमीटर सेटेलाइट) लॉन्च कर इतिहास रच दिया।
श्रीहरिकोटा स्पेस सेंटर से सुबह 9 बजकर 10 मिनट पर इसे लॉन्च कर भारत ऐसा करने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है। एक्सपोसेट ब्लैक होल के रहस्य का पता लगाएगा। दरअसल, वेधशाला को एक्सपोसेट या एक्स-रे पोलारिमीटर सैटेलाइट कहा जाता है।
एक साल से भी कम समय में यह भारत का तीसरा मिशन है। भारत अब एक उन्नत खगोल विज्ञान वेधशाला लॉन्च करने वाला दुनिया का दूसरा देश बन गया है। इसे विशेष रूप से ब्लैक होल और न्यूट्रॉन सितारों के अध्ययन के लिए तैयार किया गया है।
Sriharikota
लखनऊ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदित्य-एल 1 की लांचिंग को नए भारत की सामर्थ्य का प्रतीक बताया है। मुख्यमंत्री ने ट्वीट किया कि चन्द्रमा के साथ ही अब सूर्य भी आत्मनिर्भर भारत की शक्ति का साक्षी बनेगा।
आदित्य-एल 1 की लांचिंग के लिए मुख्यमंत्री ने इसरो के वैज्ञानिकों की पूरी टीम को शुभकामनाएं दी हैं। मुख्यमंत्री योगी ने ट्वीट किया कि संपूर्ण मानवता की सेवा के ध्येय के साथ आज ‘नए भारत की सामर्थ्य का प्रतीक पीएसएलवी-सी 57/आदित्य-एल 1 मिशन सफलतापूर्वक लांच हो गया।
इसके अलावा उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक ने भी आदित्य-एल 1 की लांचिंग पर इसरो के वैज्ञानिकों व प्रदेशवासियों को शुभकामनाएं दी हैं।
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने देश के पहले सूर्य मिशन ‘आदित्य-एल1’ को शनिवार को निर्धारित समय पर प्रक्षेपित कर दिया। इसे आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पूर्वाह्न 11.50 बजे पीएसएलवी-सी57 के जरिए प्रक्षेपित किया गया। इसरो ने प्रक्षेपण को सफल बताया है।
‘आदित्य-एल1’ सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करेगा। ‘आदित्य एल1’ सूर्य का अध्ययन करने वाला पहला अंतरिक्ष यान है। आदित्य-एल1 के 125 दिन में लगभग 15 लाख किलोमीटर की दूरी तय कर लैग्रेंजियन बिंदु ‘एल1’ के आसपास हेलो कक्षा में स्थापित होने की उम्मीद है। यह 125 दिन तीन जनवरी 2024 को पूरे होंगे। अगर यह मिशन सफल रहा और आदित्य स्पेसक्राफ्ट लैग्रेंजियन प्वाइंट-1 पर पहुंच गया, तो नए साल में इसरो के नाम ये बड़ी उपलब्धि होगी।
इस मिशन का मुख्य उद्देश्य सौर वातावरण में गतिशीलता, सूर्य के परिमंडल की गर्मी, सूर्य की सतह पर सौर भूकंप या कोरोनल मास इजेक्शन (सीएमई), सूर्य के धधकने संबंधी गतिविधियों और उनकी विशेषताओं के अलावा पृथ्वी के करीब अंतरिक्ष में मौसम संबंधी समस्याओं को समझना है।
‘आदित्य-एल1’ के साथ सात पेलोड हैं। इनमें से चार सूर्य के प्रकाश का निरीक्षण करेंगे। इसरो ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर चंद्रयान-3 की सॉफ्ट लैंडिंग में मिली कामयाबी के बाद इस मिशन का आगाज किया है। इसरो के मुताबिक आदित्य-एल1 सूर्य के एल-1 प्वांइट पर जा कर किरणों के साथ सूर्य की तस्वीरें लेगा। आदित्य-एल1 अपनी कक्षा में पहुंचने पर जांच के लिए हर दिन करीब 1440 तस्वीरें ग्राउंड स्टेशन पर भेजेगा।
क्या है एल-1
लैगरेंज प्वाइंट का नाम इतालवी-फ्रेंच गणितज्ञ जे. लुई लैगरेंज के नाम पर रखा गया है। इसे बोलचाल में एल-1 नाम से जाना जाता है। ऐसे पांच प्वाइंट धरती और सूर्य के बीच हैं, जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल संतुलित हो जाता है। इस जगह पर अगर किसी वस्तु को रखा जाता है तो वह आसानी से दोनों के बीच स्थिर रहता है और एनर्जी भी कम लगती है। पहला लैगरेंज प्वाइंट धरती और सूर्य के बीच 15 लाख किमी की दूरी पर स्थित है।
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश)। देश के पहले सौर मिशन ‘आदित्य एल-1’ के प्रक्षेपण की उल्टी गिनती शुरू हो गई है। इसे ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) से छोड़ा जाएगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर यह खुशखबरी साझा की है। इसमें कहा गया है कि 23 घंटे 40 मिनट की उल्टी गिनती आज 12 बजकर 10 मिनट पर शुरू हुई।
इस पोस्ट के अनुसार ‘आदित्य एल-1’ शनिवार पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर प्रक्षेपित किए जाने के लिए पूरी तरह से तैयार है। इस मिशन पर ऐसे समय अमल किया जा रहा है जब कुछ दिन पहले भारत का चंद्रयान-3 मिशन सफलतापूर्वक अपने लक्ष्य तक पहुंच चुका है।
इसरो ने एक्स पर पोस्ट किया- ‘पीएसएलवी-सी57 / आदित्य एल-1 मिशन : भारतीय समय के अनुसार दो सितंबर 2023 को पूर्वाह्न 11 बजकर 50 मिनट पर प्रक्षेपित करने के लिए उल्टी गिनती शुरू।’ इससे पहले इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने यहां मीडिया से कहा था- ‘रॉकेट और सैटेलाइट तैयार हैं। हमने प्रक्षेपण के लिए अभ्यास पूरा कर लिया है। नियत स्थान पर पहुंचने में 125 दिन लगेंगे।’
इसरो की वेबसाइट के मुताबिक आदित्य एल-1 अंतरिक्ष यान को सूर्य के परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और एल-1 (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अध्ययन करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर है। यह सूर्य के अध्ययन के लिए भारत का पहला समर्पित मिशन है।
भारत के इस मिशन पर दुनियाभर के वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि सौर मिशन आदित्य एल-1 के माध्यम से एकत्र किए गए आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद सूर्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य के बारे में नई जानकारी मिल सकेगी। आने वाले दशकों और सदियों में पृथ्वी पर संभावित जलवायु परिवर्तन को समझने के लिए यह आंकड़े महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
नई दिल्ली। चंद्र अभियान की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) सूरज का अध्ययन करने के लिए दो सितंबर को ‘आदित्य-एल1’ सूर्य मिशन को लॉन्च करेगा। इसरो ने एक्स पर जानकारी साझा करते हुए बताया कि आदित्य एल-1 दो सितंबर को 11 बजकर 50 मिनट पर श्रीहरिकोटा से लॉन्च किया जाएगा। आदित्य एल वन सूर्य का अध्ययन करने वाली पहली अंतरिक्ष-आधारित भारतीय वेधशाला है।
आदित्य एल वन की लॉन्चिंग आम नागरिक भी देख सकेंगे। इसरो ने श्रीहरिकोटा में लॉन्च व्यू गैलरी से लॉन्चिंग देखने के लिए लोगों को आमंत्रित भी किया है। इसके लिए लोग lvg.shar.gov.in/VSCREGISTRATIO…पर पंजीकरण कर सकते हैं।
‘आदित्य-एल 1’ सूर्य के अवलोकन के लिए पहला समर्पित भारतीय अंतरिक्ष मिशन होगा, जिससे अंतरिक्ष एजेंसी इसरो द्वारा प्रक्षेपित किया जाएगा। आदित्य-एल1 मिशन का उद्देश्य एल1 (सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु) के चारों ओर की कक्षा से सूर्य का अध्ययन करना है। यह अंतरिक्ष यान सात पेलोड लेकर जाएगा। अंतरिक्ष यान को सौर कोरोना (सूर्य की सबसे बाहरी परतों) के दूरस्थ अवलोकन और एल1 (सूर्य-पृथ्वी लाग्रेंज बिंदु) पर सौर हवा के यथास्थिति अवलोकन के लिए बनाया गया है। एल1 पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर है।
नई दिल्ली। चंद्रयान-तीन लॉन्च करने के बाद अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) 30 जुलाई को छह सह-यात्री उपग्रहों के साथ पीएसएलवी-सी56 मिशन लॉन्च करेगा। सोमवार को इसरो ने ट्वीट करके जानकारी दी कि छह सह-यात्री उपग्रहों के साथ पीएसएलवी-सी56 को 30 जुलाई को सुबह साढ़े 6 बजे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च किया जाएगा।
इसरो ने जानकारी दी कि पीएसएलवी-सी56 सिंगापुर की डीएसटीए एवं एसटी इंजीनियरिंग के डीएस-एसएआर उपग्रह और छह अन्य उपग्रहों को अंतरिक्ष में लेकर जाएगा। उल्लेखनीय है कि इसरो ने हाल ही में चंद्रयान 3 लॉन्च किया है।
नई दिल्ली । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) आज आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 को अपराह्न 2.35 बजे लॉन्च करेगा। इससे पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को भारत के चंद्र मिशनों के महत्व को रेखांकित करते हुए चंद्रयान-3 के लिए शुभकामनाएं दी हैं।
एक ट्वीट थ्रेड में प्रधान मंत्री ने कहा कि जहां तक भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र का सवाल है, 14 जुलाई, 2023 हमेशा सुनहरे अक्षरों में अंकित रहेगा। चंद्रयान-3 हमारा तीसरा चंद्र मिशन, अपनी यात्रा शुरू करेगा। यह उल्लेखनीय मिशन हमारे देश की आशाओं और सपनों को आगे बढ़ाएगा।
उन्होंने कहा कि कक्षा उत्थान प्रक्रिया के बाद चंद्रयान-3 को चंद्र स्थानांतरण प्रक्षेप पथ में डाला जाएगा। 3 लाख किमी से अधिक की दूरी तय करते हुए यह आने वाले हफ्तों में चंद्रमा पर पहुंचेगा। हमारे वैज्ञानिक उपकरण चंद्रमा की सतह का अध्ययन करेंगे और हमारे ज्ञान को बढ़ाएंगे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हमारे वैज्ञानिकों को धन्यवाद, अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत का इतिहास बहुत समृद्ध है। चंद्रयान-1 को वैश्विक चंद्र मिशनों में एक पथप्रदर्शक माना जाता है, क्योंकि इसने चंद्रमा पर पानी के अणुओं की मौजूदगी की पुष्टि की है। यह दुनिया भर के 200 से अधिक वैज्ञानिक प्रकाशनों में प्रकाशित हुआ।
उन्होंने कहा कि चंद्रयान-1 तक चंद्रमा को एक सूखा, भूवैज्ञानिक रूप से निष्क्रिय और निर्जन खगोलीय पिंड माना जाता था। अब इसे पानी और उप-सतह बर्फ की उपस्थिति के साथ एक गतिशील और भूवैज्ञानिक रूप से सक्रिय निकाय के रूप में देखा जाता है। हो सकता है कि भविष्य में इस पर संभावित रूप से निवास किया जा सके।
उन्होंने कहा कि चंद्रयान-2 भी उतना ही अग्रणी था, क्योंकि इससे जुड़े ऑर्बिटर के डेटा ने पहली बार रिमोट सेंसिंग के माध्यम से क्रोमियम, मैंग्नीज और सोडियम की उपस्थिति का पता लगाया था। इससे चंद्रमा के जादुई विकास के बारे में अधिक जानकारी भी मिलेगी। चंद्रयान 2 के प्रमुख वैज्ञानिक परिणामों में चंद्र सोडियम के लिए पहला वैश्विक मानचित्र, क्रेटर आकार वितरण पर ज्ञान बढ़ाना, आईआईआरएस उपकरण के साथ चंद्र सतह के पानी की बर्फ का स्पष्ट पता लगाना और बहुत कुछ शामिल है। यह मिशन लगभग 50 प्रकाशनों में प्रकाशित हुआ है।
चंद्रयान-3 मिशन के लिए शुभकामनाएं देते हुए प्रधानमंत्री ने इसके बारे में और अधिक जानने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, “आप सभी से इस मिशन और अंतरिक्ष, विज्ञान और नवाचार में हमने जो प्रगति की है, उसके बारे में और अधिक जानने का आग्रह करता हूं। इससे आप सभी को बहुत गर्व महसूस होगा।”
तीसरे चंद्र मिशन के लिए इसरो तैयार, फैट बॉय’ एलवीएम-एम4 रॉकेट चंद्रयान-3 को 14 जुलाई को ले जाएगा
श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन चार साल बाद एक बार फिर से शुक्रवार को पृथ्वी के इकलौते उपग्रह चांद पर चंद्रयान पहुंचाने के अपने तीसरे अभियान के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसरो का चांद पर यान को ‘‘सॉफ्ट लैंडिंग” कराने यानी सुरक्षित तरीके से यान उतारने का यह मिशन अगर सफल हो जाता है तो भारत उन चुनिंदा देशों की सूची में शामिल हो जाएगा, जो ऐसा कर पाने में सफल हुए हैं।
देश के महत्वाकांक्षी चंद्र मिशन के तहत चंद्रयान-3 को ‘फैट बॉय’ एलवीएम-एम4 रॉकेट ले जाएगा. 14 जुलाई को श्रीहरिकोटा से होने वाले इस बहुप्रतीक्षित प्रक्षेपण के लिए इसरो जोर-शोर से तैयारियों में जुटा हुआ है। चांद की सतह पर ‘‘सॉफ्ट लैंडिंग” अगस्त के आखिर में निर्धारित है।
चंद्रयान-2, 2019 में चांद की सतह पर सुरक्षित तरीके से उतरने में सफल नहीं हो पाया था। इससे इसरो का दल निराश हो गया था। तब भावुक हुए तत्कालीन इसरो प्रमुख के सिवान को गले लगाकर ढांढस बंधाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तस्वीरें आज भी लोगों को याद हैं।
वैज्ञानिक यहां सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में घंटों कड़ी मेहनत करने के बाद चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग तकनीक में महारथ हासिल करने का लाक्ष्य साधे हुए हैं। अगर भारत ऐसा कर पाने में सफल हो जाता है तो यह अमेरिका, चीन और पूर्व सोवियत संघ के बाद इस सूची में चौथा देश बन जाएगा।
अंतरिक्ष संस्थान ने कहा कि चंद्रयान-3, तीसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है, जो एलवीएम3 प्रक्षेपक के चौथे परिचालन मिशन (एम4) में रवानगी के लिए पूरी तरह से तैयार है। इसरो अपने चंद्र मॉड्यूल से चांद की सतह पर सॉफ्ट-लैंडिंग कर उसकी जमीन पर चहलकदमी का प्रदर्शन कर नई ऊंचाइयों को छूने जा रहा है. संस्थान के अनुसार, यह मिशन भावी अन्तरग्रहीय मिशनों के लिए भी सहायक साबित हो सकता है.
चंद्रयान-3 मिशन में एक स्वदेशी प्रणोदन मॉड्यूल, लैंडर मॉड्यूल और एक रोवर शामिल हैं, जिसका उद्देश्य अन्तरग्रहीय मिशनों के लिए जरूरी नई प्रौद्योगिकियों का विकास एवं उनका प्रदर्शन करना है।
मिशन के तहत 43.5 मीटर लंबा रॉकेट 14 जुलाई को दोपहर दो बजकर 35 मिनट पर दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया जाना है, जिसकी उल्टी गिनती गुरुवार से शुरू हो सकती है।
सबसे लंबे और भारी एलवीएम3 रॉकेट (पूर्व में जीएसएलवी एमके3 कहलाने वाले) की भारी भरकम सामान ले जाने की क्षमता की वजह से इसरो के वैज्ञानिक उसे प्यार से ‘फैट बॉय’ भी कहते हैं। इस ‘फैट बॉय’ ने लगातार छह सफल अभियानों को पूरा किया है।
एलवीएम3 रॉकेट तीन मॉड्यूल का समन्वय है, जिसमें प्रणोदन, लैंडर और रोवर शामिल हैं। रोवर लैंडर के भीतर रखा है। शुक्रवार का यह मिशन एलवीएम3 की चौथी परिचालन उड़ान है, जिसका मकसद चंद्रयान-3 को भू-स्थानांतरित कक्षा में स्थापित करना है.
इसरो ने कहा कि एलवीएम3 वाहन ने अपनी दक्षता को साबित किया है और कई जटिल अभियानों को पूरा किया है, जिसमें बहु-उपग्रहों का प्रक्षेपण, अन्तरग्रहीय मिशनों सहित दूसरे अभियान शामिल हैं। इसके अलावा यह सबसे लंबा और भारी प्रक्षेपक वाहन है, जो भारतीय और अंतरराष्ट्रीय उपभोक्ता उपग्रहों को लाने-ले जाने का काम करता है।
जुलाई महीने में प्रक्षेपण करने का कारण ठीक चंद्रयान-2 मिशन (22 जुलाई, 2019) जैसा ही है क्योंकि साल के इस समय में पृथ्वी और उसका उपग्रह चंद्रमा एक-दूसरे के बेहद करीब होते हैं।
शुक्रवार का मिशन भी चंद्रयान-2 की तर्ज पर होगा, जहां वैज्ञानिक कई क्षमताओं का प्रदर्शन करेंगे। इनमें चंद्रमा की कक्षा पर पहुंचना, लैंडर का उपयोग कर चंद्रमा की सतह पर यान को सुरक्षित उतारना और लैंडर में से रोवर का बाहर निकलकर चंद्रमा की सतह के बारे में अध्ययन करना शामिल है। चंद्रयान-2 मिशन में लैंडर सुरक्षित रूप से सतह पर नहीं उतर सका था और दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसकी वजह से इसरो का प्रयास असफल हो गया था। वैज्ञानिकों ने अगस्त महीने में लैंडर को सफलतापूर्वक उतारने के प्रयास में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।
श्रीहरिकोटा में मंगलवार को प्रक्षेपण रिहर्सल संपन्न हुआ, जिसमें प्रक्षेपण की तैयारी और प्रक्रिया आदि शामिल थी और यह पूर्वाभ्यास 24 घंटे से अधिक समय तक चला।
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वैज्ञानिकों ने आज (सोमवार) पूर्वाह्न 10 बजकर 42 मिनट पर जीएसएलवी-एफ12 सैटेलाइट (भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान) को लॉन्च कर दिया।
इसरो के वैज्ञानिकों ने बताया कि इसे सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से लॉन्च किया गया। 51.7 मीटर लंबा जीएसएलवी अपनी उड़ान में 2,232 किलोग्राम वजनी एनवीएस-01 नौवहन उपग्रह को लेकर रवाना हुआ। प्रक्षेपण के करीब 20 मिनट बाद, रॉकेट लगभग 251 किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर स्थानांतरण कक्षा (जीटीओ) में उपग्रह को स्थापित करेगा। एनवीएस-01 अपने साथ एल1, एल5 और एस बैंड उपकरण ले जाएगा। पूर्ववर्ती की तुलना में, दूसरी पीढ़ी के इस उपग्रह में स्वदेशी रूप से विकसित रुबिडियम परमाणु घड़ी भी है।
इसरो ने कहा कि यह पहली बार है जब स्वदेशी रूप से विकसित रुबिडियम परमाणु घड़ी का सोमवार के प्रक्षेपण में इस्तेमाल किया गया है। वैज्ञानिक पहले तारीख और स्थान का निर्धारण करने के लिए आयातित रूबिडियम परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल करते थे। अब, उपग्रह में अहमदाबाद स्थित अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र द्वारा विकसित रूबिडियम परमाणु घड़ी लगी है। यह महत्वपूर्ण तकनीक कुछ ही देशों के पास है।
श्रीहरिकोटा (आंध्र प्रदेश)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने आज सुबह सतीश धवन स्पेस सेंटर से अपने नए और सबसे छोटे रॉकेट (एसएसएलवी-डी 2) को अंतरिक्ष में लॉन्च कर दिया। एसएसएलवी-डी2 ने अपने साथ तीन सैटेलाइट लेकर अंतरिक्ष की उड़ान भरी। इनमें अमेरिकी कंपनी अंतारिस का सैटेलाइट जेएएनयूएस-1, चेन्नई के स्पेस स्टार्टअप स्पेसकिड्ज की सैटेलाइट आजादी सेट-2 और इसरो का सैटेलाइट ईओएस-07 शामिल हैं। ये तीनों सैटेलाइट्स 450 किलोमीटर दूर सर्कुलर ऑर्बिट में स्थापित किए जाएंगे।
इसरो के अनुसार, एसएसएलवी 500 किलोग्राम तक की सैटेलाइट को लोअर ऑर्बिट में लॉन्च करने में काम में लाया जाता है। यह रॉकेट ऑन डिमांड के आधार पर किफायती कीमत में सैटेलाइट लॉन्च की सुविधा देता है। 34 मीटर लंबे एसएसएलवी रॉकेट का व्यास 2 मीटर है। यह रॉकेट कुल 120 टन के भार के साथ उड़ान भर सकता है। इस रॉकेट की पहली उड़ान पिछले साल अगस्त में विफल हो गई थी।