नयी दिल्ली। नासा के वैज्ञानिकों को बड़ी कामयाबी हासिल हुई है। नासा के वैज्ञानिकों ने मंगल ग्रह पर प्राचीन झील होने की पुष्टि की है। इसके साथ ही लाल ग्रह पर जीवन की संभावना बढ़ गई है। मंगल ग्रह पर हुई इस खोज को सबसे बड़ा माना जा रहा है। शुक्रवार को प्रकाशित अध्ययन के अनुसार नासा के रोवर पर्सिवियरेंस ने पानी से जमी प्राचीन झील तलछट के अस्तित्व की पुष्टि करने वाले डेटा जुटाए हैं।
नासा द्वारा मार्श ग्रह पर भेजे गए रोवर द्वारा एकत्रित डेटा से लाल ग्रह पर प्राचीन झील तलछट की पुष्टि हुई। नवीनतम अध्ययन ने इस पुष्टि का स्वागत करते कहा है कि वैज्ञानिकों ने आखिरकार इस ग्रह पर सही जगह पर अपने भू-जैविक मंगल प्रयास को अंजाम दिया है। शुक्रवार को प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, नासा के रोवर पर्सिवियरेंस ने पानी द्वारा जमी प्राचीन झील तलछट के अस्तित्व की पुष्टि करने वाले डेटा एकत्र किए हैं, जो कभी मंगल ग्रह पर जेरेज़ो क्रेटर नामक एक विशाल बेसिन को भरते थे।
रोबोटिक रोवर द्वारा किए गए ग्राउंड-पेनेट्रेटिंग रडार अवलोकनों के निष्कर्ष पिछले कक्षीय इमेजरी और अन्य डेटा की पुष्टि करते हैं, जिससे वैज्ञानिकों को यह सिद्धांत मिला है कि मंगल के ये हिस्से एक बार पानी से ढके हुए थे और वहां माइक्रोबियल जीवन हो सकता है। लॉस एंजिल्स में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (यूसीएलए) और ओस्लो विश्वविद्यालय की टीमों के नेतृत्व में किया गया शोध साइंस एडवांसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
वर्ष 2022 में कई बार कार के आकार के छह-पहियों वाले रोवर ने मंगल ग्रह के उपसतह का स्कैन किया था। रोवर जब मंगल ग्रह की सतह के पार कक्षा से मिलते-जुलते, तलछटी जैसी विशेषताओं के आसन्न विस्तार पर क्रेटर अपना रास्ता बना रहा था। यह विश्लेषण उसी पर आधारित हे जो , पृथ्वी पर पाए जाने वाले नदी के डेल्टा जैसा है। यूसीएलए के पहले लेखक व ग्रह वैज्ञानिक डेविड पेज ने कहा, रोवर के रिमफैक्स राडार उपकरण की ध्वनि ने वैज्ञानिकों को 65 फीट (20 मीटर) गहरी चट्टान की परतों का क्रॉस-सेक्शनल दृश्य प्राप्त करने के लिए भूमिगत झाँकने की अनुमति दी, “लगभग सड़क के कट जैसा दिखने वाली परतें इस बात का अचूक सबूत देती हैं कि पानी द्वारा लाई गई मिट्टी की तलछट जेरेज़ो क्रेटर और उसके डेल्टा में एक नदी से जमा हुई थी जो इसे पोषित करती थी। ठीक उसी तरह जैसे वे पृथ्वी पर झीलों में मौजूद हैं। निष्कर्षों ने उस बात को पुष्टि की है, जो पिछले अध्ययनों ने लंबे समय से सुझाई थी – कि ठंडा, शुष्क, बेजान मंगल ग्रह कभी गर्म, गीला और शायद रहने योग्य था।
झील 3 अरब साल पुरानी हो सकती है
रोवर से प्राप्त डेटा के अनुसार वैज्ञानिकों ने प्राचीन झील की उम्र 3 अरब साल होने का अनुमान लगाया है। वैज्ञानिक भविष्य में पृथ्वी पर परिवहन के लिए पर्सीवरेंस द्वारा एकत्र किए गए नमूनों में जेरेज़ो के तलछट की बारीकी से जांच करने के लिए उत्सुक हैं। यह रोवर मंगल पर फरवरी 2021 में जहां यह उतरा था, उसके करीब चार स्थानों पर पर्सिवियरेंस द्वारा ड्रिल किए गए प्रारंभिक कोर नमूनों के दूरस्थ विश्लेषण ने शोधकर्ताओं को उस चट्टान का खुलासा करके आश्चर्यचकित कर दिया, जो अपेक्षा के अनुरूप तलछटी के बजाय ज्वालामुखी प्रकृति की थी। दोनों अध्ययन विरोधाभासी नहीं हैं। यहां तक कि ज्वालामुखीय चट्टानों में भी पानी के संपर्क में आने से बदलाव के संकेत मिले हैं और अगस्त 2022 में उन निष्कर्षों को प्रकाशित करने वाले वैज्ञानिकों ने तब तर्क दिया था कि जमी तलछटी नष्ट हो गई होगी।
दरअसल, शुक्रवार को रिपोर्ट की गई रिमफैक्स राडार रीडिंग में क्रेटर के पश्चिमी किनारे पर पहचानी गई तलछटी परतों के निर्माण से पहले और बाद में कटाव के संकेत मिले, जो वहां के एक जटिल भूवैज्ञानिक इतिहास का सबूत है। “वहां ज्वालामुखीय चट्टानें थीं जिन पर हम उतरे।” पेगे ने कहा “यहां वास्तविक खबर यह है कि अब हम डेल्टा की ओर बढ़ चुके हैं और अब हम इन झील के तलछटों के साक्ष्य देख रहे हैं, जो हमारे इस स्थान पर आने के मुख्य कारणों में से एक है। तो उस संबंध में यह एक सुखद कहानी है।”
NASA
केप कैनावेरल (अमेरिका) । तुर्किये, स्वीडन और इटली के अंतरिक्ष यात्रियों ने गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के लिए नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) के कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी। इन यात्रियों के पास सैन्य पायलट होने का अनुभव है। सभी अपने-अपने देशों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। संभावना है कि उनका कैप्सूल शनिवार को अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंच जाएगा।
नासा की विज्ञप्ति में यह जानकारी दी गई है। इस यात्रा के लिए प्रति व्यक्ति का अनुमानित खर्च तीनों देशों में से प्रत्येक का लगभग 55 मिलियन डॉलर या अधिक है। ह्यूस्टन कंपनी एक्सिओम स्पेस, नासा और स्पेसएक्स ने इस यात्रा का आयोजन किया है। रूस दो दशकों से अधिक समय से अंतरिक्ष स्टेशन पर सशुल्क आगंतुकों का स्वागत करता रहा है। नासा ने दो साल पहले तक ऐसा नहीं किया था।
टर्किश एयरलाइंस के पूर्व फाइटर पायलट और कैप्टन तुर्किये के अल्पर गेजेरावसी अपने देश से अंतरिक्ष में रॉकेट भेजने वाले पहले व्यक्ति हैं। उन्होंने कहा कि तुर्किये ने हाल ही में अपनी 100वीं वर्षगांठ मनाई है। और, अब तक आकाश के बारे में देश का दृष्टिकोण “जो हम अपनी नंगी आंखों से देख सकते हैं” तक ही सीमित है। स्वीडन के मार्कस वांड्ट पूर्व लड़ाकू पायलट और स्वीडिश एयरप्लेन कॉर्प के परीक्षण पायलट हैं। एक्सिओम अंतरिक्ष यात्रियों ने शाम 4:49 बजे उड़ान भरी। इन यात्रियों में एक्सिओम मिशन 3 (एक्स-3) के चालक दल के सदस्यों कमांडर माइकल लोपेज-एलेग्रिया, पायलट वाल्टर विलादेई और मिशन विशेषज्ञ मार्कस वांड्ट और अल्पर गेजेरावसी शामिल हैं। चालक दल अंतरिक्ष स्टेशन पर माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान, शैक्षिक आउटरीच और वाणिज्यिक गतिविधियों का संचालन करने में लगभग दो सप्ताह बिताएंगे।
नासा के प्रशासक बिल नेल्सन ने सफल प्रक्षेपण पर एक्सिओम और स्पेसएक्स को बधाई है। उन्होंने कहा कि यह यात्री 30 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष यान शनिवार सुबह 4:19 बजे स्टेशन के हार्मनी मॉड्यूल के आगे के बंदरगाह पर स्वायत्त रूप से डॉक करेगा। उम्मीद की जाती है कि एक्स-3 अंतरिक्ष यात्री 3 फरवरी को मौसम की परवाह किए बिना पृथ्वी पर लौटने के लिए (फ्लोरिडा के तट पर लैंडिंग स्थल पर उतरने के लिए) अंतरिक्ष स्टेशन से प्रस्थान करेंगे।
नई दिल्ली। इस साल का अंतिम चंद्रग्रहण आज रात को लगेगा। चंद्र ग्रहण का उपचरण 28 अक्टूबर को आधीरात के बाद 1:05 बजे शुरू होगा और 29 अक्टूबर को 2:24 बजे समाप्त होगा। आज रात दिखने वाला चंद्रग्रहण भारत सहित एशियाई देशों, आस्ट्रेलिया, उत्तरी अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका सहित हिंद महासागर के अधिकांश भागों से देखा जा सकेगा। खोगलीय गणित के अनुसार चंद्रग्रहण की उपछाया को आंशिक रूप से 87.07 प्रतिशत लोग देख पाएंगे। इस लिहाज से यह चंद्रग्रहण व्यापक माना जा रहा है।
काशी के पंडित प्रदीप बताते हैं कि चंद्र ग्रहण इस बार शरद पूर्णिमा पर है। साल का अंतिम चंद्र ग्रहण आज रात लगने जा रहा (खंडग्रास ) चूंकि रात 1 बजकर 5 मिनट पर लग रहा है इसलिए इसका सूतक काल 9 घंटे पहले 28 अक्टूबर यानी आज शाम 04 बजकर 05 मिनट से शुरू हो जाएगा। देर रात 01:05 बजे चंद्र ग्रहण लगेगा और 02:24 पर खत्म होगा।
उन्होंने बताया कि आज लगने वाला ग्रहण आंशिक चंद्र ग्रहण होगा, शरद पूर्णिमा पर ग्रहण के सूतक लगने से पहले खीर ( प्रसाद ) बना कर रख लें, और ग्रहण के मोक्ष के बाद चंद्रमा की रोशनी में छत पर रखकर भोग लगाएं और अगली सुबह सूर्योदय के बाद खाएं । इस समय जितना अधिक से अधिक हो सके नाम जप, मंत्र जप करें यही समय है अपना आध्यात्मिक बैंक बैलेंस बढ़ाने का।
चंद्र ग्रहण एक खगोलीय घटना है जो तब घटित होती है, जब पृथ्वी चंद्रमा पर अपनी छाया डालती है। 28 अक्टूबर, 2023 को इस साल का आखिरी चंद्र ग्रहण होगा। अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अनुसार अगला चंद्र ग्रहण 25 मार्च, 2024 को लगेगा।
नासा ने फोटो जारी कर दिखाई चांद की सतह के संपर्क में आए लैंडर विक्रम के धुएं से निकली रोशनी
वाशिंगटन। भारत का मिशन चंद्रयान-3 लगातार दुनिया भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) ने एक विशेष फोटो जारी कर चांद की मिट्टी के संपर्क में आए लैंडर विक्रम के धुएं से निकली रोशनी दिखाई है। नासा ने चंद्रयान-3 के लैंडिंग साइट की फोटो लेकर यहां से साउथ पोल की दूरी भी बताई है।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन लगातार चंद्रमा पर चंद्रयान-3 के पहुंचने के बाद से फोटो जारी कर रहा है। अब अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी एक विशेष फोटो जारी की है। नासा ने उस स्थान की फोटो अपनी वेबसाइट और सोशल मीडिया पर साझा की है, जहां चंद्रयान-3 उतरा था। चंद्रमा पर लैंडिंग के ठीक चार दिन बाद यानी 27 अगस्त को चांद की कक्षा में घूम रहे नासा के लूनर रिकॉनिसेंस ऑर्बिटर (एलआरओ) ने यह तस्वीर खींची थी।
तस्वीर जारी करने के साथ ही नासा ने चंद्रयान मिशन की उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा गया है कि चंद्रयान-3 की लैंडिंग साइट चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव से लगभग 600 किलोमीटर दूर है। लैंडिंग के चार दिन बाद एलआरओ ने लैंडर का एक तिरछा दृश्य यानी 42 डिग्री स्लीव कोण हासिल किया। साथ ही कहा कि लैंडर के आसपास दिख रही रोशनी लैंडर के धुएं के चांद की मिट्टी के संपर्क में आने से बनी है।
नयी दिल्ली। ‘चंद्रयान 3’ की सफल लांचिंग के बाद से अब दुनिया के कई देश ‘इसरो’ के अंतरिक्ष मिशन पर नजर रख रहे हैं। इन देशों में एक ‘महाशक्ति’ अमेरिका भी शामिल है। अमेरिकी ‘नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन’ (नासा) चंद्रयान-3 के हर मूवमेंट पर नजर रख रहा है। चंद्रयान-3 की ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ पर आस्ट्रेलिया और स्पेन में बने सेंटर से भी नजर रखी जा रही है। ब्रूनेई और इंडोनेशिया के स्पेस सेंटर भी भारत के अंतरिक्ष मिशन पर टकटकी लगाए बैठे हैं।
विकसित देशों को यह बात बहुत अखरती है …
इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. किरण कुमार के मुताबिक, कई देशों ने अपने अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए अलग-अलग जगहों पर स्पेस सेंटर स्थापित किए हैं। जैसे भारत का स्पेस नेटवर्क बंगलूरू में है, वैसे ही विकसित देशों में भी ऐसे ही नेटवर्क सेंटर बने हुए हैं। अमेरिका, आस्ट्रेलिया और स्पेन में बने सेंटरों से चंद्रयान की लैंडिंग पर नजर रखी जा रही है।
डॉ. किरण कुमार ने कहा कि भारत का अंतरिक्ष का सफर, वो भी अपने दम पर, कई विकसित देशों को बहुत अखरता है। भले ही तकनीक के रूप में इन देशों से अपेक्षित सहयोग न मिला हो, लेकिन अब वे चंद्रयान-3 पर नजर रख रहे हैं। अमेरिका स्थित ‘नासा’ से ‘चंद्रयान-3’ को ट्रैक किया जा रहा है।
ट्रैकिंग से हमारा क्लेम भी वेरिफाई होगा …
वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. एसके ढाका के अनुसार, इसमें कुछ गलत भी नहीं है। नासा सहित कई देशों में अंतरिक्ष मिशन की तैयारी में जुटे संगठनों के साथ कुछ संधियां और समझौते होते हैं। उसके तहत वे देश, दूसरे राष्ट्र के लांचिंग मिशन पर नजर रखते हैं। उसके बाद लैंडिंग को भी वे देश ट्रैक करते हैं। इस तरह की ट्रैकिंग से हमारा क्लेम भी वेरिफाई हो जाता है। नासा सहित दूसरे स्पेस संगठन, आपस में डेटा साझा करते हैं। दुनिया में ब्रूनेई और इंडोनेशिया के पास भी इस तरह की तकनीक है। वे भी नजर रख सकते हैं। हमें चंद्रयान 3 की सॉफ्ट एवं सेफ लैंडिंग की पूरी उम्मीद है।
चंद्रमा पर अपना सर्विस स्टेशन तैयार हो सकेगा …
वरिष्ठ वैज्ञानिक नरेंद्र भंडारी कहते हैं कि इस बार मजबूत लैंडर बनाया गया है। रोबोट वही है, जो चंद्रयान के दौरान इस्तेमाल हुआ था। चंद्रयान-1 से पता चला था कि चंद्रमा के कई हिस्सों पर बर्फ है, पानी है या गीलेपन की स्थिति है। पूरी उम्मीद है कि टेस्टिड इंजन के जरिए इस बार चंद्रयान-3 की सुरक्षित एवं सॉफ्ट लैंडिंग होगी।
एस के ढाका के अनुसार, चंद्रयान-3 की कामयाबी भविष्य के द्वार खोलेगी। इसकी सफलता के बाद भारत, चंद्रमा पर अपना सर्विस स्टेशन बना सकेगा। लाइट के पोलेराइलेशन को स्टडी किया जा सकेगा। स्टेशन का इस्तेमाल, आगे की रिसर्च के लिए होगा। उस वक्त दुनिया में भारत की धमक होगी। दुनिया, भारत की तरफ देखेगी। संभव है कि अब खर्च हुआ एक पैसा आगे चलकर हमारे देश को एक अरब रुपये देगा।
वाशिंगटन । अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक ऐसा उपकरण ट्रोपोस्फेरिक एमिशन मॉनीटरिंग ऑफ पॉल्यूशन (टेम्पो) अंतरिक्ष में छोड़ा है, जो अंतरिक्ष से ही वायु की गुणवत्ता नापकर गुणवत्ता निरीक्षण के तरीके में सुधार करेगा।
नासा की ओर से जानकारी दी गयी कि नासा-स्मिथसोनियन इंस्ट्रूमेंट टेम्पो पहला अंतरिक्ष-आधारित उपकरण है, जो चार वर्ग मील तक प्रमुख वायु प्रदूषकों की हर एक घंटे में निगरानी करेगा। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ने ट्वीट कर कहा कि टेम्पो हर घंटे दक्षिण अमेरिका के दिन की वायु गुणवत्ता की रिपोर्ट देगा। यह तीन मुख्य प्रदूषकों की निगरानी करेगा और शहर में बढ़ते प्रदूषण को लेकर चेताता रहेगा।
बताया गया कि टेम्पो में खास तरह के यंत्र लगे हैं और यह दिन यानी सूर्य की रोशनी में हर घंटे उत्तरी अमेरिका के ऊपर से गुजरेगा। यह हर बार 10 वर्ग किलोमीटर के इलाके में वायु प्रदूषण के स्तर का आंकड़ा रिकॉर्ड करेगा। इसकी रेंज अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर और मध्य कनाडा से मेक्सिको सिटी तक होगी। यह एक बड़े वॉशिंग मशीन के आकार का यंत्र है, जिसे बॉल एयरोस्पेस ने बनाया है। इसे मैक्सार द्वारा निर्मित इंटेलसैट 40ई सैटेलाइट के साथ लांच किया गया।
मुंबई। पुणे में अमेरिका के शोध संस्थान ‘नासा’ के नाम पर छह करोड़ रुपये की ठगी करने वाले चार आरोपितों के विरुद्ध बंडगार्डेन पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया है। इन चारों ने पुणे के 250 से अधिक लोगों से नासा में इस्तेमाल होने वाली धातुओं की सप्लाई में निवेश के नाम पर ठगी की है। इनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने दो टीम गठित की गई है।
पुणे के क्राइम ब्रांच के पुलिस उपायुक्त श्रीनिवास घाडगे ने बताया कि पुणे में 250 से अधिक लोगों से करीब छह करोड़ रुपये की ठगी की गयी है। इस मामले में पुणे के बंडगार्डेन पुलिस स्टेशन में राम गायकवाड़, रामचंद्र वाघमारे, संतोष सकपाल, राहुल जाधव के खिलाफ मामला दर्ज किया है। इन आरोपितों को पकडऩे के लिए पुलिस की दो टीम बनाई गई है। बहुत जल्द चारों आरोपितों को गिरफ्तार कर लिया जाएगा।
जानकारी के अनुसार इन चारों आरोपितों ने पुणे के एक होटल में पुणे के निवेशकों की बैठक आयोजित की थी। इसी बैठक में चारों आरोपितों ने पुणे के निवेशकों को बताया कि अमेरिकी शोध संस्थान नासा में धातुओं की आपूर्ति के लिए निवेशकों की जरूरत है। इस बैठक में कहा गया था कि इसमें एक लाख रुपये निवेश करने पर एक करोड़ रुपये मिलेंगे। इस तरह इन चारों ने पुणे के 250 निवेशकों से तकरीबन छह करोड़ रुपये वसूले और अपना मोबाइल नंबर स्वीच आफ कर दिया। इसके बाद इन निवेशकों को ठगे जाने का अहसास हुआ मामले की शिकायत बंड गार्डेन पुलिस स्टेशन में दर्ज करवाई है।
वाशिंगटन। भारतीय मूल के एक और वैज्ञानिक ने भारत को गर्व करने का मौका दिया है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) की तकनीकी कमान एक भारतवंशी वैज्ञानिक एसी चारणिया को सौंपी गयी है। एसी चारणिया को नासा का चीफ टेक्नोलॉजिस्ट बनाया गया है। उन्होंने समारोह पूर्वक नए दायित्व की शपथ लेकर काम संभाला।
नासा ने अपनी तकनीकी कमान भारतीय अमेरिकी एयरोस्पेस विशेषज्ञ एसी चारणिया को सौंपी है। वह प्रौद्योगिकी नीति और अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर नासा चीफ बिल नेल्सन के प्रमुख सलाहकार के रूप में काम करेंगे। नासा की ओर से जारी बयान में कहा गया कि एसी चारणिया नासा के छह मिशनों की जरूरतों के साथ एजेंसी के प्रौद्योगिकी निवेश का काम देखेंगे। साथ ही संघीय एजेंसियों, निजी क्षेत्र और बाहरी शेयरहोल्डर्स के साथ प्रौद्योगिकी सहयोग की देखरेख करेंगे।
इस घोषणा के बाद चारणिया ने एक समारोह में शपथ लेकर नया दायित्व संभाल लिया। उन्होंने भी सोशल मीडिया पर अपने नए दायित्व की जानकारी दी। चारणिया ने कहा कि 21वीं सदी में हम जिस तरह की प्रगति चाहते हैं, वह हमारे अभियानों को निष्पादित करने के लिए टेक्नोलॉजी के साथ उपयुक्त पोर्टफोलियो को चुनने पर निर्भर है। उन्होंने कहा कि नासा के भीतर और बाहर अविश्वसनीय अवसर हैं। वे अब अंतरिक्ष और विमानन प्रगति को बढ़ाने के लिए काम करने का इंतजार कर रहे हैं।
नासा में शामिल होने से पहले चारणिया अमेरिका में ही रिलायबल रोबोटिक्स कॉरपोरेशन में उपाध्यक्ष के रूप में कार्यरत थे। इसके अलावा इसके अलावा उन्होंने एयरोस्पेस कंपनी ब्लू ओरिजिन के ब्लू मून लूनर लैंडर कार्यक्रम और नासा के साथ कई टेक्नोलॉजी अभियानों पर काम किया है। इसके अलावा चारणिया ने स्पेस टूरिज्म कंपनी वर्जिन गैलेक्टिक (अब वर्जिन ऑर्बिट) के लॉन्चरवन स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम के लिए रणनीति और बिजनेस डेवलपमेंट में भी काम किया है।
चारणिया ने जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक और मास्टर डिग्री प्राप्त की है। उन्होंने एमोरी विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र व गणित में स्नातक की डिग्री भी ली है। चारणिया से पहले नासा के चीफ टेक्नोलॉडिस्ट का दायित्व कार्यवाहक रूप से भारतवंशी भव्या लाल संभाल रही थीं। भव्या लाल ने कहा कि नासा के हर मिशन में तकनीक की भूमिका अहम रहती है। ऐसे में वे तेजी से बदलते प्रौद्योगिकी सेक्टर के प्रबंधन में अनुभवी एसी चारणिया को नासा में काम करते देखने के लिए उत्सुक हैं।
वाशिंगटन। आखिर तीसरी बार में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का महत्वाकांक्षी चंद्रयान आर्टेमिस-1 लॉन्च हो गया। 53 साल बाद चांद पर यात्रा के इस अमेरिकी मिशन के अंतर्गत 32 मंजिल के बराबर ऊंचाई वाले अंतरिक्ष लॉन्च सिस्टम (एसएलएस) रॉकेट को फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च किया गया।
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का ‘मेगा मून रॉकेट’ आर्टेमिस-1 का प्रक्षेपण इस वर्ष 29 अगस्त को किया जाना था। परीक्षण की अंतिम तैयारियों के लिए ईंधन भरने के दौरान इसमें खतरनाक रिसाव हुआ। रॉकेट में ईंधन पहुंचाने वाले सिस्टम को दुरुस्त करने की कोशिश की गई लेकिन इसमें कामयाबी नहीं मिलने के कारण लांचिंग टाल दी गयी थी। इसके बाद सितंबर में एक बार फिर इसे लांच करने की तैयारी की गयी, लेकिन फिर सफलता नहीं मिली।
अंतरिक्ष रॉकेट आर्टेमिस-1 और ऑरियन स्पेसक्रॉफ्ट की पहली परीक्षण उड़ान है। 322 फुट (98 मीटर) लंबा यह रॉकेट अब तक का सबसे शक्तिशाली रॉकेट है। इसके माध्यम से नासा के ‘अपोलो’ अभियान के 53 साल बाद चंद्रमा की कक्षा में एक खाली ‘क्रू कैप्सूल’ भेजा गया है। खाली ‘क्रू कैप्सूल’ का आशय एक टेस्ट फ्लाइट से है जिसमें अंतरिक्ष यात्री नहीं होंगे। दरअसल, अमेरिका 53 साल बाद इंसानों को चांद पर एकबार फिर भेजने की तैयारी कर रहा है और आर्टेमिस-1 इस दिशा में पहला कदम है।
इससे बिना चालक दल वाले ऑरियन स्पेसक्राफ्ट को चांद पर छोड़ा गया। ऑरियन करीब 42 दिनों तक चांद पर परीक्षण करेगा। इस दौरान ओरियन करीब 70 हजार किलोमीटर की यात्रा करेगा और पृथ्वी से अब तक की सबसे ज्यादा दूरी पर पहुंचेगा। इस दौरान अगर इसमें अंतरिक्ष यात्री होते तो उन्हें दूर से पृथ्वी और चांद का भव्य दृश्य दिखाई देता।
रायपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ की रितिका ध्रुव का चयन नासा (नेशनल एयरोनोटिक्स ऐंड स्पेस एडमिनिट्रेशन) के सिटीजन साइंस प्रोजेक्ट के अंतर्गत क्षुद्रग्रह खोज अभियान के लिए हुआ है। नासा का यह प्रोजेक्ट इसरो के साथ अंतरराष्ट्रीय खगोलीय खोज सहयोग कार्यक्रम का हिस्सा है। रितिका के महासमुन्द जिले के नयापारा के स्वामी आत्मानंद शासकीय इंग्लिश मीडियम स्कूल की 11वीं कक्षा की छात्रा है। रितिका की इस उपलब्धि पर स्कूल में खुशी का माहौल है।
सोसाइटी फॉर स्पेस एजुकेशन रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट (एसएसईआरडी) ने क्षुद्र ग्रह खोज अभियान की प्रक्रिया के माध्यम से छात्रों को प्रोत्साहित करने कहा है। इस प्रोजेक्ट के लिए देशभर से छह स्कूली विद्यार्थियों को चुना गया है। इसमें छत्तीसगढ़ के सिरपुर की रहने वाली रितिका ध्रुव भी शामिल हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह टेकाम ने रितिका को बधाई और शुभकामनाएं दी हैं।
रितिका ध्रुव को बचपन से ही विज्ञान के प्रति रुचि है। कक्षा 8वीं की पढ़ाई के दौरान उसने पहली बार अंतरिक्ष प्रश्नोत्तरी स्पर्धा में हिस्सा लिया था। इसके बाद वह लगातार ऐसी गतिविधि में हिस्सा लेती रही। इस समय वह इसरो के श्री हरिकोटा (आंध्र प्रदेश) सेंटर में प्रशिक्षण ले रही है।
इस प्रोजेक्ट में रितिका के साथ चयनित होने वालों में वोरा विघ्नेश (आंध्र प्रदेश), वेम्पति श्रीयेर (आंध्र प्रदेश), ओलविया जॉन (केरल), के. प्रणीता (महाराष्ट्र) और श्रेयस सिंह (महाराष्ट्र) शामिल हैं। इन सभी ने अंतरिक्ष के वैक्यूम में ब्लैक होल से ध्वनि की खोज विषय पर एक प्रस्तुति दी थी। जज पैनल में डॉ. बेलवर्ड (नासा), डॉ. जोनाथ (इसरो) और डॉ. ए. राजराजन (सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र) शामिल थे। रितिका 01 अक्टूबर से 06 अक्टूबर तक सतीश धवन स्पेस सेंटर श्री हरिकोटा आंध्र प्रदेश में प्रशिक्षण लेने पहुंची है। अगले चरण का प्रशिक्षण नवम्बर में बेंगलुरु में लेगी।