वाशिंगटन । अमेरिका के कैपिटल (संसद परिसर) दंगे के लिए पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को जवाबदेह ठहराने संबंधी प्रयासों को उच्चतम न्यायालय ने खारिज कर दिया। इसके बाद अब ट्रंप का नाम प्राथमिक मतपत्र पर दिखाई देगा। अदालत ने ट्रंप को कोलोराडो के रिपब्लिकन प्राथमिक मतदान से अयोग्य घोषित कर दिया था। उच्चतम न्यायालय ने सुपर मंगलवार प्राइमरी से एक दिन पहले यह फैसला सुनाया।
न्यायाधीश ने सर्वसम्मति से निचली अदालत के उस फैसले को पलट दिया कि ट्रंप को छह जनवरी, 2021, कैपिटल दंगा मामले में उनकी कथित भूमिका के कारण 14 वें संशोधन के तहत सार्वजनिक पद धारण करने से अयोग्य घोषित कर दिया गया था।
कोलोराडो के सर्वोच्च न्यायालय ने अपनी तरह के पहले फैसले में कहा था कि प्रावधान, धारा 3, ट्रंप पर लागू की जा सकती है। इससे पहले किसी भी अदालत ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार पर धारा 3 लागू नहीं की थी। कोलोराडो, मेन और इलिनोइस में ट्रंप का नाम मतपत्रों से बाहर कर दिया गया था, लेकिन तीनों फैसलों पर उच्चतम न्यायालय का फैसला आना था। ट्रंप के वकीलों ने दलील दी कि छह जनवरी का दंगा विद्रोह नहीं था और अगर ऐसा था भी, तो ट्रंप दंगाइयों में शामिल नहीं हुए थे।
AMERICAN SUPREME COURT
उत्तरी कैरोलिना और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में नस्ल आधारित एडमिशन असंवैधानिकः सुप्रीम कोर्ट
वाशिंगटन । अमेरिका के सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षा के क्षेत्र में अहम फैसला सुनाया है। कल सुनाए गए इस फैसले में कहा गया है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय और उत्तरी कैरोलिना विश्वविद्यालय में नस्ल आधारित प्रवेश असंवैधानिक हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 6-3 के बहुमत से सुनाया। चीफ जस्टिस जॉन रॉबर्ट्स ने कहा कि नस्ल-सचेत प्रवेश कार्यक्रम “अपरिहार्य रूप से नस्ल को नकारात्मक तरीके से नियोजित करते हैं” और “नस्लीय रूढ़िवादिता को शामिल करते हैं।”
जस्टिस सोनिया सोतोमयोर ने कहा -“इस निर्णय के विनाशकारी प्रभाव को कम करके नहीं आंका जा सकता।” उन्होंने कहा, अदालत “शिक्षा में नस्लीय असमानता को और मजबूत कर रही है, जो हमारी लोकतांत्रिक सरकार और बहुलवादी समाज की नींव है।”
अमेरिकी शिक्षाविदों का मानना है कि यह फैसला पूरे अमेरिका में प्रवेश प्रक्रिया में भारी बदलाव ला सकता है और नियोक्ताओं को इस बात पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है कि वे प्रवेश में नस्ल पर कैसे विचार करते हैं।
इस पर राष्ट्रपति जो बाइडन ने प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा-” यह एक सामान्य अदालत का फैसला नहीं है” और शिक्षा विभाग को “यह विश्लेषण करने का निर्देश दिया कि कौन सी प्रथा अधिक समावेशी और विविध छात्र निकाय का निर्माण कर सकती है।”