करौली में बीते शनिवार को 4 साल की मासूम से दरिंदगी और बर्बरता के बाद कानून व्यवस्था पर तो सवाल खड़े किए ही हैं, धीमी न्याय व्यवस्था भी कठघरे में है। राजस्थान में पिछले 28 महीनों तक दुष्कर्म के 13,890 केस दर्ज हुए हैं। इनमें से 11,307 दुष्कर्म नाबालिगों से हुए। वहीं दो साल में 12 साल से छोटी उम्र की 170 बच्चियों से दरिंदगी के मामले सामने आए हैं।
सरकार ने ऐसे मामलों में 2013 में फांसी की सजा का प्रावधान किया। इसके बावजूद इन अतिसंवेदनशील मामलों में पॉक्सो कोर्ट का दबाव बढ़ाया जा रहा है। जयपुर की 7 पॉक्सो कोर्ट में ही 700 से अधिक केस पेंडिंग होने के बावजूद यहां बालिगों के केस ट्रांसफर किए जा रहे हैं। जयपुर मैट्रो की कोर्ट में ऐसे 62 केस हैं। प्रदेश में इसकी संख्या 100 से ज्यादा है। वह भी तब जबकि 28 महीने में दर्ज कुल 45% मामले, यानी 6,191 ही कोर्ट तक पहुंचे। इनमें भी सजा सिर्फ 4.46% मामलों में मिली।
3 साल में दरिंदगी करने वाले 8 अभियुक्तों को पॉक्सो कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, लेकिन एक में भी अमल नहीं हुआ। हाईकोर्ट ने 2018 में आदेश दिया था कि 50 दुष्कर्म के मुकदमों पर एक पॉक्सो कोर्ट खोली जाए। इस लिहाज से 153 कोर्ट खोली जानी थी, पर नई कोर्ट खोलना दूर, मौजूदा 57 पॉक्सो कोर्ट का ही भार बढ़ा दिया गया। हाईकोर्ट के 2018 में तत्काल फैसलों को लेकर यह आदेश दिया था। मौजूदा कई पॉक्सो कोर्ट में भी महिला उत्पीडन के मामले ट्रांसफर कर दिए हैं, जिससे रेप जैसे गंभीर मामले हाशिए पर जा रहे हैं।