प्रयागराज
इलाहाबाद हाईकोर्ट में ज्ञानवापी मंदिर मस्जिद विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विजय शंकर रस्तोगी की बहस पूरी नहीं हो सकी। अब अगली सुनवाई 20 मई को होगी। अंजुमन इंतजामिया मस्जिद वाराणसी व सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की तरफ से वाराणसी की अधीनस्थ अदालत के आदेश को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। याचिकाओं की सुनवाई न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया कर रहे हैं।
मंदिर की तरफ से अधिवक्ता रस्तोगी ने अधीनस्थ अदालत द्वारा भेजे गए कमिश्नर की सर्वे कार्यवाही की जानकारी दी। बताया कि विवादित जमीन के मंदिर की होने संबंधी अवशेष मिले हैं। इससे पहले पिछली तारीख को रस्तोगी ने कहा था कि संपत्ति वक्फ संपत्ति के रूप में पंजीकृत होने मात्र से उसे पर गैर मुस्लिमो का अधिकार खत्म नहीं हो जाता। उन्होंने कहा कि 1960 के वक्फ एक्ट में 1984 में संशोधन किया गया किंतु वह लागू नहीं हो सका। संशोधन में वक्फ बोर्ड व गैर मुस्लिम के बीच संपत्ति विवाद की दशा में नोटिस जारी किया जाना अनिवार्य है।
बता दें कि वादी विपक्षी को कोई नोटिस नहीं दी गई है। इस कारण भी वक्फ एक्ट इस मामले में लागू नहीं होगा। रस्तोगी ने कहा कि 1995 का वक्फ एक्ट लागू किया गया तो सभी वक्फ संपत्तियों का दुबारा पंजीकरण करना अनिवार्य किया गया है। किंतु प्रश्नगत विवादित संपत्ति कभी भी दुबारा पंजीकृत नहीं कराई गई है। इसलिए विवादित संपत्ति को वक्फ संपत्ति नहीं माना जा सकता।
रस्तोगी ने कहा कि पंजाब वक्फ बोर्ड बनाम शैम सिंह केस में कहा गया है कि विवादित जमीन वक्फ संपत्ति नहीं हो सकती। बताया कि सन् 1936 में दीन मोहम्मद, मोहम्मद हुसैन व मोहम्मद जकारिया ने बनारस अधीनस्थ अदालत में वाद दायर किया था। इसमें मौजा शहर खास ,परगना देहात अमानत ,बनारस गाटा 9130 रकबा एक बीघा नौ बिस्वा छः धूर , चबूतरा,पेड़ ,पक्का कुंआ आदि को वक्फ संपत्ति घोषित करने और अलविदा नमाज पढ़ने की प्रार्थना की गई थी।
कोर्ट ने दावा साबित नहीं कर पाने के कारण वाद खारिज कर दिया गया था। इसके खिलाफ हाईकोर्ट में प्रथम अपील 1937 में दाखिल की गई, जो 1942 में निर्णीत हुई थी। इसमें केवल वादी को ही नमाज पढ़ने की राहत मिली थी, जिसका फायदा दूसरा कोई नहीं उठा सकता। इसलिए याचिका खारिज की जाए।