नई दिल्ली
भारतीय राजनीति में 2014 से एक ऐसे युग की शुरुआत हुई जो आने वाले कई दशकों तक किसी भी राजनीतिक दल, नेता और संभवत: जनता के लिए भी संदर्भ बिंदु बनेगा। दरअसल, नरेन्द्र मोदी सरकार ने आठ साल में न सिर्फ एक कुशल व संवेदनशील प्रशासक की भूमिका निभाई, बल्कि घरेलू राजनीति से लेकर वैश्विक कूटनीति में एक ऐसी लकीर खींची है जो दूसरों के लिए ही नहीं खुद भाजपा के भावी नेताओं के लिए भी चुनौती रहेगा। सफर अभी जारी है।
यह कहने में संकोच नहीं होना चाहिए कि मोदी सरकार का अब तक का काल दूरगामी सोच, धैर्य, साहसिक निर्णय और उसे जमीन पर उतारने के अथक प्रयास का काल रहा है। पहली सरकार में भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए निर्णय की जो प्रक्रिया शुरू हुई थी, वह नोटबंदी, जनधन योजना, गरीबों के स्वास्थ्य के लिए आयुष्मान योजना से लेकर कोरोना के खिलाफ सफल लड़ाई तक पहुंची।
वहीं, पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक से लेकर अनुच्छेद-370 को रद करने, बैंकों के विलय से लेकर जीएसटी तक के क्रियान्वयन में यह सोच बार-बार दिखी कि वह इतिहास की गलतियों को दुरुस्त करने से लेकर सामान्य प्रशासन में बड़े सुधार की राह में राजनीति को नहीं आने देना चाहते। यही कारण है कि कोरोना काल के बाद भी भारत बड़ी वैश्विक ताकतों की तुलना में तत्काल खड़े होकर दौड़ऩे की स्थिति में पहुंचा है।
निर्यात के मामले में देश ने रिकार्ड बनाया तो मैन्यूफैक्चरिंग के नए आयाम खुलने शुरू हो गए हैं। लड़ाई अभी लंबी है। रोजगार से लेकर सबको गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, सस्ती चिकित्सा जैसी मूलभूत समस्याओं का पूर्ण निदान पाने के लिए सबको जुटना होगा। सरकार को कुछ और कठोर फैसले लेने होंगे। घरेलू राजनीति के दबाव ने कृषि सुधार जैसे कानून को वापस लेने के लिए मजबूर किया है, लेकिन यह संभावना जताई जा सकती है कि भविष्य में कोई राह तलाशी जाएगी।
राजनीतिक विरोधियों के लिए यही मुद्दे हैं, जिस पर मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाता है। लेकिन इन आठ सालों में यह भी कई बार दिखा है कि कुशल शासन-प्रशासन ने घरेलू राजनीति की दिशा भी बदल दी है। विकास चुनाव को जीतने वाला मुद्दा बनने लगा है। सरकारी योजनाओं का ही असर है कि भारत की जिन महिलाओं को वंचित माना जाता है, वही सरकारें तय करने लगी हैं।
ध्यान रहे कि मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले सिर्फ चार राज्यों में भाजपा की सरकारें थीं। 2018 तक 15 राज्यों में भाजपा और राजग की सरकार थी। आज 18 राज्यों में भाजपा व सहयोगी दलों के मुख्यमंत्री हैं। देश में 1300 से ज्यादा भाजपा विधायक हैं और 400 से ज्यादा सांसद हैं। इसमें कोई संशय नहीं है कि इसका श्रेय किसे जाता है। ऐसा नहीं है कि मोदी काल में भाजपा के उत्थान का कारण केवल बड़े और साहसिक फैसले थे। वस्तुत: एक ऐसी राजनीति की शुरुआत हुई, जिसने आम नागरिकों की भावनाओं को समेट लिया।
लालबत्ती के रौब और धमक पर विराम लग गया। दिल्ली के सत्ता के गलियारे से दलाल गायब हो गए। पिछले आठ वर्षों में एक दो घटनाओं को छोड़कर देश में कोई आतंकी धमाका नहीं हुआ। नक्सलवादी हिंसा थम गई और अरसे बाद आंतरिक सुरक्षा को लेकर आत्मविश्वास जगा। पहले कार्यकाल में प्रधानमंत्री के विदेश दौरे को लेकर छींटाकशी का लंबा दौर चला था। अब उसका अच्छा परिणाम दिख रहा है।
पड़ोसी देशों के साथ मदद व सहयोग, वैश्विक ताकतों के साथ बराबरी की दोस्ती, चीन जैसे मजबूत लेकिन नकारात्मक देश की आंखों में आंखें डालकर बातचीत कुछ ऐसे उदाहरण हैं, जिसने भारत की साख को चार चांद लगाया है। यह आत्मविश्वास और साहस की सीढ़ी इन्हीं आठ वर्षों में तैयार हुई है।