केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने दिल्ली विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग द्वारा आयोजित अंतर्राष्ट्रीय संगोष्टी ‘स्वराज’ से ‘नव-भारत’ तक भारत के विचारों का पुनरावलोकन के उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि विद्यार्थी और विश्वविद्यालय हमेशा से ही परिवर्तन के वाहक रहे हैं। 1975 में लोकतंत्र को बचाने में भी दिल्ली यूनिवर्सिटी का प्रमुख योगदान रहा है। और 2014 से जो युग परिवर्तन की शुरुआत हुई है उसकी वाहक भी दिल्ली यूनिवर्सिटी बने, मैं ऐसी शुभकामनाएं देता हूँ।
हमारी संस्कृति ही हमारे देश को जोड़ती है और एक रखती है। भारत एक भू-सांस्कृतिक देश है और जब तक हम इस बात को नहीं समझेंगे तब तक हम Idea of India को नहीं समझ पाएंगे। जब दृढ़ता के साथ देश हित को सामने रख शासन किया जाता है तो समस्याएँ अपने आप ही दूर हो जाती हैं। मोदी सरकार इसी मंत्र पर चल देश को विकास की राह पर आगे ले जा रही है।
आजादी के बाद ‘स्वराज’ की व्याख्या सिर्फ शासन व्यवस्था तक सीमित थी, ‘स्व’ को छोटा और ‘शासन’ को बहुत बड़ा कर दिया गया। हमारी स्वराज की परिभाषा में स्वदेशी, स्वभाषा, स्वधर्म और संस्कृति यह सब निहित हैं। स्वराज की इस कल्पना को चरितार्थ करना ही हमारा न्यू इंडिया का विचार है। कुछ लोग भारत को समस्याओं का देश कहते हैं पर हम मानते हैं कि इस देश के पास लाखों समस्याओं के समाधान की शक्ति है।
गृहमंत्री ने कहा कि युवा विश्वविद्यालय में विचारधाराओं के संघर्ष की जगह विचार-विमर्श पर ध्यान दें, क्योंकि किसी भी विचार और विचारधारा की स्वीकृति हिंसा और संघर्ष से नहीं बल्कि विचार-विमर्श से ही आ सकती है। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लाई गयी ‘नई शिक्षा नीति-2020’ भारत के उज्ज्वल भविष्य का दस्तावेज है। मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति देश की पहली ऐसी शिक्षा नीति है जिसका किसी ने विरोध नहीं किया है।
इसी के साथ ही अमित शाह ने देश के युवाओं को अपने अधिकारों के साथ–साथ देश और समाज के प्रति अपने दायित्व पर भी विचार करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि कोई भी अधिकार बिना दायित्व के नहीं मिलता, जब हम अपने दायित्व की चिंता करते है तो उसके साथ हम किसी गरीब के अधिकार की रक्षा भी करते है। पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 से 2022 तक की यात्रा देश के गरीबों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास एवं भारतीय संस्कृति को पुनः गौरवान्वित करने की यात्रा है। और ये गर्व की बात है कि आज करोड़ों गरीब खुद को देश की व्यवस्था का हिस्सा मानने लगे हैं।