लखनऊ
राज्य पुरातत्व निदेशालय (संस्कृति विभाग) ने धरोहरों को गोद दिलाने के लिए पहल की है। इसके लिए एडाप्ट ए हेरिटेज योजना शुरू की गई है। इसके तहत आवेदन आमंत्रित किए गए हैं। ‘रुचि की अभिव्यक्ति के तहत धरोहर गोद लेने वाले व्यक्ति को स्मारक मित्र कहा जाएगा। स्मारक मित्र धरोहर सहेजने के साथ ही वहां पर अस्थाई निर्माण व अन्य तरीकों से आमदनी भी कर सकेंगे।
राज्य पुरातत्व निदेशालय (संस्कृति विभाग) एवं पर्यटन विभाग तथा अन्य स्टेकहोल्डरों के सहयोग से स्मारकों एवं पुरास्थलों पर उच्च स्तरीय पर्यटन सुविधाएं प्रदान करने के लिए यह योजना लांच की गई है। पब्लिक एवं प्राइवेट कार्पोरेशन और व्यक्तियों से आवेदन स्वीकार किया जा रहा है। योजना के तहत फिलहाल प्रदेश के नौ स्मारकों एवं पुरास्थलों को गोद ले सकते हैं। इनमें लखनऊ की कोठी गुलिस्तान ए इरम, दर्शन विलास कोठी, उत्खनन स्थल हुलासखेड़ा, छतर मंजिल एवं फरहत बक्श कोठी शामिल हैं।
लखनऊ के अलावा मथुरा के गोवर्धन की छतरी, मिर्जापुर का चुनार किला, वाराणसी का गुरुधाम मंदिर व कर्दमेश्वर महादेव मंदिर और झांसी के बरुआ सागर किला को गोद लेने के लिए आवेदन किया जा सकता है। इसके लिए राज्य पुरातत्व निदेशालय, छतर मंजिल से आवेदन पत्र ले सकते हैं। सहायक पुरातत्व अधिकारी डा. राजीव त्रिवेदी ने बताया कि पब्लिक प्राइवेट-पार्टनरशिप मोड को अपनाकर धरोहरों को सहेजने में योगदान के लिए यह योजना शुरू की गई है।
स्मारक मित्र के साथ पांच साल का मेमोरेंडम आफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) साइन होगा। स्मारक मित्र के कार्य भी तय किए गए हैं। समय-समय पर स्मारक समिति उन कार्यों का निरीक्षण भी करेगी। स्मारक मित्र गोद लिए गए धरोहर पर अनुरक्षण नहीं कर सकेंगे। स्मारक मित्र कैफेटेरिया यह कोई अन्य अस्थाई निर्माण कर उस स्थल से आमदनी कर सकेंगे।
इसके अलावा भी धरोहर से आमदनी के अन्य विकल्प हो सकते हैं, पर स्मारक मित्र वहां पर किसी तरह का प्रवेश शुल्क नहीं लगा सकेगा। स्मारक मित्र द्वारा स्मारकों पर कराए जाने वाले काम संकेतक (साइनेज), पेयजल, बिजली, सीवरेज, जन सुविधाएं, वाई-फाई, बेंच एवं कूड़ेदान, प्रकाश, पहुंच मार्ग एवं पाथवे, कैफेटेरिया, दिव्यांग के लिए रैंप एवं व्हीलचेयर आदि, अमानती सामान, रख-रखाव (कूड़ा निस्तारण आदि का काम), लाइट एवं साउंड शो, लैंड स्केपिंग।