इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में केंद्रीय सूचना आयुक्त उदय माहुरकर और चिरायु पंडित की किताब वीर सावरकर का विमोचन समारोह आयोजित की गई। मुख्यमंत्री ने कहा कि जब वीर सावरकर की बात होती है तो उनकी प्रतिभा को छिपाने का प्रयास पहले ब्रिटिशर ने फिर आजादी के बाद जिन लोगों के हाथों में सत्ता आई उन्होंने हर संभव प्रयास किया। अनेक अवसर पर वह दृश्य भी दिखे।
अटल बिहारी बाजपेई की सरकार में सेल्युलर जेल में प्रतिमा लगाई गई थी, जिसे कांग्रेस ने हटाकर राष्ट्र नायक का अपमान किया। दुनिया में उस महानायक के समकक्ष उस सदी में कोई पैदा नहीं हुआ था। वह सभी प्रकार के गुणों से पूर्ण थे। एक ही जन्म में दो आजीवन कारावास की सजा दी गई। सेल्युलर जेल की दीवारों पर नाखूनों, बर्तन से लिखकर कई रचनाएं रचीं हैं।
आजादी के बाद जो सम्मान सावरकर को मिलना चाहिए था वह नहीं मिला। हिंदुत्व शब्द सावरकर ने दिया। हिंदुत्व की परिभाषा उन्होंने दी। दुर्भाग्य से सत्ता लोलुप दलों ने सावरकर की तुलना जिन्ना से भी करने का प्रयास किया।सावरकर ने इसका खंडन किया और कहा जिन्ना की दृष्टि संकीर्ण है, वह सिर्फ मुस्लिम की बात करता है, पर मेरी दृष्टि संपूर्ण है।
मैं कहता हूं कि जो नियम हिंदू पर लागू हो, वही मुस्लिम और अन्य पर भी। विचार कभी मरते नहीं, विचार इसलिए नहीं मरते क्योंकि शब्द ब्रह्म का प्रतीक होता है। शाश्वत और सत्य दृष्टि का ही आज वृहद और लघु रूप देखने को मिल रहा है। वीर सावरकर की बात को कांग्रेस ने माना होता तो देश विभाजन की त्रास्दी से बच जाता।
उस समय का नेतृत्व अगर दृढ़ इच्छाशक्ति से काम लेता तो यह नहीं होता। वीर सावरकर ने कहा था पाकिस्तान आएंगे जाएंगे, हिंदुस्तान हमेशा रहेगा। नेशन फर्स्ट की थ्योरी ही आज की प्राथमिकता है। नेशन फर्स्ट की नीति को अपनाया होता तो विभाजन नहीं होता, चीन हमला ना करता, आतंकवाद नहीं फैलता। हमारे सैनिक जीतते थे, पर हम तुष्टीकरण की टेबल पर हार जाते थे।