लखनऊ
नेपाल की रहने वाली सोलह वर्षीय रंजीता ने जब से होश संभाला, कब्ज से परेशान थी। इसके साथ ही उसे रक्तस्राव की भी समस्या थी। बहुत इलाज कराया, लेकिन फायदा नहीं हुआ। इसके बाद घरवाले उसको लेकर संजय गांधी स्नातकोत्तर आयुर्विज्ञान संस्थान (SGPGI) के गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग में आए। इलाज के बाद रंजीता को राहत मिल गई है।
इस विशेष मामले को इंडियन मिलिट्री एंड फंक्शनल डिजीज एसोसिएशन के वार्षिक अधिवेशन में SGPGI के सहायक प्रोफेसर डा. आकाश माथुर ने कैप्सूल केस श्रृंखला में प्रस्तुत किया। एक होटल में आयोजित इस दो दिवसीय कार्यक्रम के अंतिम दिन रविवार को डा. आकाश माथुर ने बताया कि आंत की चाल में जन्मजात कमी के कारण रंजीता को कब्ज की परेशानी रहती थी।
जन्म से ही उसकी आंत में गैनलियान सेल की कमी थी, जिस कारण उसकी आंत की चाल कम थी। यही चाल कब्ज का कारण भी थी। आंत के एक हिस्से में मेकल डायवर्टिकुलम की परेशानी के कारण आंत में रक्तस्राव की परेशानी थी, जिससे मल से खून भी आता था। दो परेशानियों के कारण इलाज दोतरफा करना था। इसके लिए प्लान्टिंग की गई। आंत की चाल बढ़ाने के लिए दवाएं दी गईं। इससे कब्ज की परेशानी में राहत मिली।
रक्तस्राव भी दवा के माध्यम से रोका गया। डा. माथुर ने बताया कि इसके आगे के इलाज के लिए सर्जरी की तैयारी है, जिसमें आंत के जिस भाग में सेल कम हैं, उस भाग को निकालकर आंतों को आपस में जोड़ दिया जाएगा। रक्तस्राव के स्थायी इलाज के लिए भी सर्जरी उसी दौरान की जाएगी। फिलहाल, रंजीता को राहत मिल गई है। रक्तस्राव के कारण हीमोग्लोबिन भी कम हो रहा था। उसमें भी सुधार हुआ है।
क्या है मेकल डायवर्टिकुलम
मेकल डायवर्टिकुलम में छोटी आंत के निचले हिस्से में जन्मजात उभार होती है। इससे रक्तस्राव की आशंका भी रहती है। हफ्ते में तीन बार से कम मल विसर्जन। साथ ही कड़ा मल होना भी कब्ज के लक्षण हैं। मेदांता अस्पताल के पेट रोग विशेषज्ञ डा. अभय वर्मा ने बताया कि फंक्शनल बावेल डिजीज में कब्ज, डिस्पेप्सिया और आइबीएस तीन तरह की परेशानी होती है। 30 से 40 फीसद लोगों में ये समस्या होती है। 20 से 25 फीसद लोगों में डिस्पेप्सिया के साथ कब्ज की परेशानी है तो इतने ही लोगों में तीनों परेशानी रहती है। डिस्पेप्सिया में पेट में भारीपन, पेट में जलन और गैस बनने की परेशानी होती है। यदि यह परेशानी छह महीने से अधिक समय से है तो यह डिस्पेप्सिया की समस्या हो सकती है।
SGPGI के गैस्ट्रोइंट्रोलाजी विभाग के प्रमुख एवं कार्यक्रम के आयोजक प्रो. यूसी घोषाल और डा. आकाश माथुर ने बताया कि कोरोना संक्रमित लोगों में ठीक होने के बाद पेट की परेशानी पाई गई। यह पेट के भीतरी अंगों की गति के कारण होती है। कोरोना से ठीक होने वाले 264 मरीजों पर शोध में पाया गया कि लगभग 10 फीसद लोगों में लंबे समय तक फंक्शनल डिजीज की परेशानी रही है। इस कारण उल्टी, मिचली, डायरिया, कब्ज और पेट में दर्द की परेशानी रही।