सोनीपत। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने सोमवार को यहां कहा कि संतों के उपदेशों से सीख लेकर हमें समानता का जीवन अपने व्यवहार में लाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें आपस में सद्भावना और एक दूसरे के प्रति किया गया व्यवहार जोड़ता है। हमें एक दूसरे की मदद करनी चाहिए और हमारी मंशा किसी को भी पीड़ा पहुंचाने की नहीं होनी चाहिए। धर्म भी हमें जोड़ता है तोड़ता नहीं।
सरसंघचालक भागवत सोमवार श्री रामकृष्ण साधना केंद्र जीटी रोड, मुरथल में गोलोकवासी परम पूज्य राष्ट्रीय संत प्रभु दत्त ब्रह्मचारी जी महाराज तथा संत श्री ब्रह्म प्रकाश जी की मूर्ति का अनावरण करने के बाद जनसमूह को संबोधित कर रहे थे।
भागवत ने कहा कि संत हमेशा श्रद्धेय हैं, हम संतों की शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम मूर्ति के माध्यम से राम की पूजा करते हैं। राम ने अपने जीवन में अपने हित को भूल कर लोगों के हित में सारे काम किए हैं। क्रोधित परशुराम से संवाद के दौरान श्रीराम ने लक्ष्मण को उसकी मर्यादा बतायी थी। उन्होंने कहा था कि नागरिक जीवन में अपने सामने एक अपरिचित व्यक्ति भी आए तो नियम कहता है कि आपस में बात करते समय मतभेद होने पर भी अभद्र भाषा का प्रयोग नहीं किया जाए।
सरसंघचालक ने कहा कि सभी संतों के जीवन में हमें कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। हम उनसे सीख सकते हैं। इस जन्म में नहीं लेकिन अगले जन्म में प्रयास कर हम उनके जैसे बन सकते हैं।
उन्होंने कहा कि संतों का जीवन तप त्याग भरा होता है। उन्होंने उदाहरण दिया कि ब्रह्मचारी जी नेहरु के खिलाफ चुनाव लड़े लेकिन उनके नेहरू से संबंध बिगड़े नहीं। उन्होंने गौ रक्षा के लिए भी काम किया। हमेशा समाज के कार्य में आगे रहे। ऐसे ही लोग संत होते हैं। संत अपने ज्ञान को प्रभु के द्वारा दी गईं सीख मानकर समाज तक पहुंचाते हैं।
डा. मोहन भागवत ने कहा कि आज मूर्ति की स्थापना हो गई लेकिन वह स्थापित असल मायनों में तब होगी जब इन संस्कारों का संपूर्ण चित्र हम यहां समाज में उपस्थित करेंगे।