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पितृपक्ष शुरू, जानें श्राद्ध की तारीख और पितरों के तर्पण का महत्व

by City Headline
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मीरजापुर। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृपक्ष की शुरुआत भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि से होती है और अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को समाप्त होता है। पितृपक्ष पितरों को समर्पित है। इस अवसर पर पितरों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध किए जाते हैं। मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध या पितरों को तर्पण विधि-विधान से देने से पितृ प्रसन्न होते हैं और पितृदोष समाप्त हो जाता है। ऐसा उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करने के लिए किया जाता है। शुक्रवार (पूर्णिमा) से पितृपक्ष की शुरुआत हो चुकी है और 14 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या समाप्त होगा।

आचार्य डा. रामलाल त्रिपाठी ने शुक्रवार को बताया कि सनातन धर्म के ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भाद्रपद माह की पूर्णिमा तिथि को पितृपक्ष की शुरुआत होती है और अश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को इसका समापन होता है।सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व बताया गया है। मान्यता है कि पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने से पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त होता है और पितृ प्रसन्न होते हैं जिससे पितृ दोष समाप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि पितृपक्ष में श्राद्ध और तर्पण अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए भी किया जाता है। श्राद्ध का अर्थ अपने पूर्वजों को श्रद्धा पूर्वक प्रसन्न करना है।

आचार्य ने बताया, शास्त्रों में बताया गया है कि जो परिजन अपना शरीर त्याग कर चले जाते हैं उनकी आत्मा की शांति के लिए सच्ची श्रद्धा के साथ तर्पण किया जाता है, उसे श्राद्ध कहा जाता है। उन्होंने बताया कि पितृपक्ष में मृत्यु के देवता यमराज सभी जीवों को मुक्त कर देते हैं, ताकि वो अपने परिजनों के यहां जाकर तर्पण ग्रहण कर सकें। पितृपक्ष में पितरों की आत्मा की शांति के लिए उनका तर्पण किया जाता है। इससे प्रसन्न होकर पितर अपने घर को सुख-समृद्धि और शांति का आर्शीवाद प्रदान करते हैं।