सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। नैमिषारण्य स्थित कालीपीठ संस्थान में माता धूमावती का मंदिर है, जिनके दर्शन करना अति दुर्लभ है। माता धूमावती के दर्शन 06 माह के बाद पड़ने वाले नवरात्र के शनिवार को ही होते हैं। कालीपीठ मंदिर के संस्थापक ब्रह्मलीन पं. जगदंबा प्रसाद ने माता धूमावती की स्थापना की थी। वे सिद्धपीठ दतिया से दीक्षित थे।
नवरात्रि में पड़ने वाले शनिवार के अलावा अन्य दिनों में माता धूमावती के दर्शन सम्भव नहीं हैं। प्रधान पुजारी गोपाल शास्त्री ने बताया कि दस महाविद्याओं में उग्र देवी धूमावती का स्वरूप विधवा का है। कौवा इनका वाहन है। वह श्वेत वस्त्र धारण किये हुये हैं। खुले केश उनका रूप और विकराल बनाते हैं।
पुजारी ने बताया कि मां का स्वरूप कितना ही उग्र क्यों न हो, संतान के लिए वह हमेशा कल्याणकारी होता है। छह माह में नवरात्रि के अवसर पर ही उनके दर्शन किये जाते हैं। उनके दर्शन कर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। शनिवार को काले कपडे़ में काले तिल मां के चरणों में भेंट किये जाते हैं। मान्यता है कि सुहागिनें माता के दर्शन नहीं करती हैं। ऐसा देवी के वैधव्य रूप के कारण है।
इस वजह से नाम धूमावती हुआ
वस्तुतः उनके इस रूप का कारण अलग है। मां धूमावती अपनी क्षुधा शांत करने के लिये भगवान शंकर के पास गयीं, उस समय वह समाधि में लीन थे। माता के बार-बार निवेदन पर भी उनका ध्यान उस ओर नहीं गया। फलस्वरूप देवी ने उग्र होकर भगवान शिव को निगल लिया। भगवान शंकर के गले में विष होने के कारण मां के शरीर से धुआं निकलने लगा। इसी कारण उनका नाम धूमावती पड़ा।
माता धूमावती के दर्शन से मिलता है मनचाहा फल
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