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पायलट की उड़ान रोकने को गहलोत ने कस कर पकड़ी ‘कुर्सी‘

by City Headline
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ताक-झांक बकलम मधुरेन्द्र श्रीवास्तव

राजस्थान के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्ता में काबिज कांग्रेस का मुकाबला यूं तो भारतीय जनता पार्टी से है, पर कांग्रेस में इससे अलग एक मोर्चा खुला हुआ है। यह सियासी मोर्चा मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और कांग्रेस के राज्य में प्रभावी नेता सचिन पायलट के खेमों के बीच खुला हुआ है। विधानसभा चुनाव के ऐलान से पहले पार्टी आलाकमान के समझाने-मनाने के बाद से पायलट खामोश हैं। पायलट राज्य में प्रचार अभियान में लगे हुए हैं लेकिन सियासी तजुर्बेकार गहलोत भाजपा से निपटते हुए पायलट को ‘निपटाने‘ की रणनीति से पीछे हटते नहीं दिखते।

दोनों नेताओं के बीच खटास के साफ संकेत गहलोत की गुरुवार को दिल्ली की प्रेस कांफ्रेंस में फिर दिखे। मीडिया से गहलोत बोले, ‘मैं कुर्सी छोड़ना चाहता हूं लेकिन सीएम की कुर्सी मुझे नहीं छोड़ना चाहती।‘ गहलोत के इस बयान पर तुरंत ताका-झांकी शुरू हो गई। मतलब निकाले जाने लगे। संकेतों और शब्दों की गहराई को नापने का सिलसिला शुरू हुआ। सवाल उठे, गहलोत का यह बयान दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय से क्यों सामने आया, क्योंकि ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल गहलोत कुछ महीने पहले राजस्थान में मीडिया के सामने कर चुके थे तो फिर चुनाव के समय इसे दोहराने की जरूरत क्यों पड़ी।
गहलोत बेवजह कुछ नहीं बोलते
गहलोत के सियासी अंदाज को जानने वाले कहते हैं कि वह बेवजह कुछ नहीं बोलते। उन्होंने जब पायलट को ‘नकारा‘ आदि शब्दों से नवाजा था, तब भी यह बेमकसद नहीं था और अभी जो कहा है, उसके भी गंभीर सियासी मायने हैं। दरअसल, सियासत में संकेत, समय और शब्द प्रहार के अपने मायने होते हैं। होशियार सियासतदां इसका अपने तजुर्बे के अनुसार इस्तेमाल कर मकसद साधने की कोशिश करते हैं। राजस्थान की सियासत में भाजपा से मुकाबिल कांग्रेस अब तक सामने आये सर्वे में बहुत ज्यादा पीछे नहीं दिखती। वहीं, भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव में उतारने तथा राज्य की सर्वाधिक लोकप्रिय नेता वसुंधरा राजे व उनके कई समर्थकों को चुनाव से किनारे करने का अच्छा संकेत जाता नहीं दिखता।

ये स्थितियां गहलोत को उत्साहित किये हुए हैं। माना जा रहा है कि दिल्ली मुख्यालय से ‘कुर्सी‘ पर जमे रहने संबंधी कुर्सी मोह दर्शाता गहलोत का बयान अनायास नहीं है। कांग्रेस आलाकमान भले ही इससे कन्नी काटे पर यह साफ है कि सरकार बनाने लायक बहुमत आने की स्थिति में ‘अपनी कुर्सी‘ गहलोत छोड़ेंगे नहीं। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का बहुमत आने पर मुख्यमंत्री बनने वाले गहलोत पायलट की ‘उड़ान‘ को थामने के इरादे से इस बार भी पीछे हटते नहीं दिखते। राहुल-प्रियंका के करीबी पायलट को पिछली बार भी गहलोत सरकार में मनमुताबिक हैसियत नहीं मिल सकी थी, तो जाहिर है कि आगे भी राज्य की सियासत में खुर्राट गहलोत की सियासी जादूगरी का तिलिस्म तोड़कर मुख्यमंत्री की दौड़ में टिके रहना पायलट के लिए आसान नहीं दिखता।