हरिद्वार। ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य पद पर नियुक्ति के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पहली बार हरिद्वार पहुंचे। यहां कई संतों और उनके अनुयायियों ने उनका स्वागत किया। इस दौरान उन्होंने पत्रकारों से वार्ता की।
बुधवार को शंकराचार्य पद पर उनकी नियुक्ति को लेकर छिड़े विवाद पर पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि उनके खिलाफ कुछ तथाकथित संत भ्रम फैला रहे हैं, जबकि उनकी नियुक्ति पूरी तरह से संत परम्परा के अनुसार हुई है। सभी अखाड़ा उनके समर्थन में हैं जो लोग यह कह रहे हैं कि निरंजनी अखाड़ा उनके विरोध में है, तो वह लोग बताएं कि कब इस अखाड़ा की बैठक हुई, कब प्रस्ताव पास हुआ और कब उस पर मोहर लगी। मात्र अखाड़ा के कुछ लोगों द्वारा कह देने से यह सिद्ध नहीं हो जाता कि निरंजनी अखाड़ा उनके विरोध में है।
शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष स्वामी आनन्द स्वरूप द्वारा नियुक्ति का विरोध करने और पद नाम का उपयोग करने के संबंध में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि यदि ऐसा होता तो सर्वोच्च न्यायालय खुद में इतना सक्षम है कि वह हमारे खिलाफ कार्रवाई करता, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है। बस कुछ तथाकथित लोग भ्रम फैलाने का काम कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि मामला भले ही सर्वोच्च न्यायालय के विचाराधीन है किन्तु हम उसमें अभी तक पक्ष नहीं बने हैं और जब तक पक्ष नहीं बनते, मामला आगे नहीं बढ़ने वाला क्योंकि कोर्ट बिना हमें सुने किसी तरह का कोई फैसला नहीं दे सकता फिर इस तरह की अनर्गल बातों का कोई औचित्य नहीं है।
स्वामी गोवन्दिानंद सरस्वती द्वारा विरोध किए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि स्वामी गोविन्दानंद सरस्वती हमारे गुरु भाई नहीं हैं। उन्होंने संन्यास स्वामी अमृतानंद सरस्वती से लिया है, जबकि हमारे गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने तीन शिष्यों को ही दण्ड दीक्षा दी थी, जिनमें से एक ब्रह्मलीन हो चुके हैं।
शंकराचार्य पद पर स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति के बाद उनके पट्टाभिषेक को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। शंकराचार्य पद को लेकर उपजा विवाद अभी इतनी जल्दी शांत होने वाला नहीं है।