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गोरखपुर: गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर की दीवारों पर उकेरे गए हैं श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्याय

by City Headline
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गोरखपुर। गोरखपुर स्थित गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर जैसा अनोखा चित्र मंदिर पूरी दुनिया में कहीं नहीं है। यहां श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्याय दीवारों पर लिखे गए हैं। सैकड़ों की संख्या में देवी-देवताओं के चित्र एक ही छत के नीचे मौजूद हैं। ऐसा नजारा पूरी दुनिया में कहीं अन्य स्थान पर नहीं देखा जा सकता है।

गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर में बीके मित्रा, जगन्नाथ और भगवानदास द्वारा बनाए गए सैकड़ों चित्र सुरक्षित और संरक्षित हैं। लीला चित्र मंदिर की दीवारों पर श्रीमद्भागवत गीता के 18 अध्याय संगमरमर पर लिखे हुए हैं। इतना ही नहीं, देवी-देवताओं के 700 से अधिक दुर्लभ और प्राचीन चित्र उकेरे गये हैं। इनकी सुंदरता देखकर मन प्रफुल्लित हो जाता है।
ये चित्र हैं इन दिशाओं में
लीला चित्र मंदिर में पूर्व की तरफ भगवान श्रीकृष्ण के चित्र हैं। पश्चिम की तरफ श्रीराम के लीला-चित्र हैं तो दक्षिण की तरफ दशावतार तथा इससे जुड़े चित्र बनाये गये हैं। इसी तरह उत्तर की ओर नवदुर्गा समेत अनेक देवियों के चित्र हैं। इनमें से अधिकतर चित्र बीके मित्रा, जगन्नाथ और भगवानदास के बनाए हुए हैं।
600 से अधिक हैं पेंटिंग्स
गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर की चर्चा करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजीव दत्त पाण्डेय बताते हैं कि लीला चित्र मंदिर में 600 से अधिक पेंटिंग्स भी हैं। इनमें मेवाड़ी शैली में भगवान कृष्ण की लीला दिखाई गई है। ये मेवाड़ से लाकर किसी ने भाईजी को भेंट की थी। इसी तरह जयपुर, मुगल, ओरिएंटल आर्ट की भी पेंटिंग्स यहाँ दृष्टव्य हैं। इनमें कई चित्र ऐसे हैं जो 200 सालों से भी ज्यादा पुराने हैं।
17वीं शताब्दी के चित्र भी मौजूद
हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका अनिता अग्रवाल बताती हैं कि गीता प्रेस के लीला चित्र मंदिर में बहुत पुरानी-पुरानी पेंटिंग्स और चित्र मौजूद हैं। 17वीं शताब्दी की गोविंद गद्दी का चित्र यहां का विशेष आकर्षण है। इतना ही नहीं, यहां दुनिया की 22 भाषाओं में मुद्रित गीता के 1167 विभिन्न संस्करणों का संकलन भी मौजूद है। इनमें कई हस्तलिखित गीता की सचित्र पुस्तकें शामिल हैं।
सीरियल के निर्माण से पूर्व रामानंद सागर ने जानी थीं रामायण की बारीकियां
गीता प्रेस गोरखपुर का लीला चित्र मंदिर कई मायनों में अनूठा है। लीला चित्र मंदिर में देवी-देवताओं के हाथ से बने चित्र हैं। रामानंद सागर ने रामायण बनाने से पहले यहां आकर रामचरित मानस की बारीकियों को समझा था।