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Home Delhi वित्त मंत्री ने यूपीए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन पर लोकसभा में पेश किया ‘श्वेत पत्र’

वित्त मंत्री ने यूपीए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन पर लोकसभा में पेश किया ‘श्वेत पत्र’

by Suyash

नई दिल्ली । केंद्रीय वित मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में गुरुवार को वर्ष 2014 के पहले की भारतीय अर्थव्यवस्था से जुड़ा श्वेत पत्र पेश किया। इस श्वेत पत्र में केंद्र की कांग्रेस-नीत यूपीए सरकार के आर्थिक कुप्रबंधन के बारे में बताया गया है। इसमें यूपीए सरकार के मुकाबले नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा-नीत एनडीए सरकार के कामकाज को दर्शाया गया है।
इस ‘श्वेत पत्र’ में यूपीए सरकार के 10 सालों के आर्थिक कुप्रबंधन को दिखाने के साथ-साथ एनडीए सरकार के कामकाज को भी दर्शाया गया है। ‘श्वेत पत्र’ में यूपीए सरकार के दौरान आर्थिक कुप्रबंधन पर विस्तार से जानकारी दी गई है। इसमें भारत की आर्थिक बदहाली और अर्थव्यवस्था पर इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में बताया गया है। यह ‘श्वेत पत्र’ यूपीए सरकार के वित्तीय कुप्रबंधन और एनडीए सरकार की वित्तीय समझदारी को दिखाने के लिए एक तुलनात्मक विश्लेषण भी है।
निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार अर्थव्‍यवस्‍था के बारे में सदन के पटल पर श्‍वेत पत्र इसलिए ला रही है ताकि ये पता चल सके कि वर्ष 2014 तक हम कहां थे और अब कहां हैं। इस श्‍वेत पत्र का मकसद उन वर्षों के कुप्रबंधन से सबक सीखना है। बता दें कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में पहली बार सरकार 2014 में ही बनी थी। उसके पहले लगातार 10 वर्षों यानी 2004-14 तक मनमोहन सिंह की अगुवाई में यूपीए गठबंधन की सरकार रही थी।
यूपीए ने अच्छी अर्थव्यवस्था को बनाया नॉन परफॉर्मिंग
लोकसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा रखे गए भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र’ में कहा गया है कि यूपीए सरकार को अधिक सुधारों के लिए तैयार एक स्वस्थ अर्थव्यवस्था विरासत में मिली। लेकिन अपने दस वर्षों में इसे नॉन परफॉर्मिंग बना दिया। 2004 में जब यूपीए सरकार ने अपना कार्यकाल शुरू किया था, तो अच्छे विश्व आर्थिक माहौल के बीच अर्थव्यवस्था 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी। उद्योग और सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक थी और वित्त वर्ष 2004 में कृषि क्षेत्र की वृद्धि दर 9 प्रतिशत से अधिक थी। 2003-04 के आर्थिक सर्वेक्षण में भी कहा गया था कि विकास, मुद्रास्फीति और भुगतान संतुलन के मामले में अर्थव्यवस्था एक लचीली स्थिति में प्रतीत होती है, एक जोड़ जो कि निरंतर व्यापक आर्थिक स्थिरता के साथ विकास की गति को मजबूत करने की बड़ी गुंजाइश प्रदान करता है।
समस्या से भी बदतर उपाय लाई यूपीए
श्वेत पत्र में कहा गया है कि 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट पर यूपीए सरकार की ओर से जारी किया गया स्पिल-ओवर प्रभावों से निपटने के लिए एक राजकोषीय प्रोत्साहन पैकेज समस्या से भी कहीं अधिक बदतर था। यह वित्त पोषण और रखरखाव की केंद्र सरकार की क्षमता से कहीं परे था। दिलचस्प बात यह है कि इस प्रोत्साहन का उन परिणामों से कोई संबंध नहीं दिख रहा है जो इसे हासिल करने की कोशिश की गई थी क्योंकि हमारी अर्थव्यवस्था संकट से अनावश्यक रूप से प्रभावित नहीं हुई थी। श्वेत पत्र में आगे कहा गया है कि जीएफसी के दौरान, वित्त वर्ष 2009 में भारत की वृद्धि धीमी होकर 3.1 प्रतिशत हो गई, लेकिन वित्त वर्ष 2010 में तेजी से बढ़कर 7.9 प्रतिशत हो गई। जीएफसी के दौरान और उसके बाद वास्तविक जीडीपी वृद्धि पर आईएमएफ डेटा का उपयोग करते हुए एक क्रॉस-कंट्री विश्लेषण इस तथ्य की पुष्टि करता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव अन्य विकसित और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अपेक्षाकृत सीमित था।इस गुमराह प्रोत्साहन को एक वर्ष से अधिक जारी रखने की कोई आवश्यकता नहीं थी।
श्वेत पत्र में घोटाले का भी जिक्र
लोकसभा में वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा पेश भारतीय अर्थव्यवस्था पर श्वेत पत्र में लिखा गया है कि यूपीए सरकार के 122 टेलीकॉम लाइसेंस से जुड़े 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने सरकारी खजाने से 1.76 लाख करोड़ रुपये की कटौती की थी। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) के अनुमान, सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये की चपत लगाने वाला कोल गेट घोटाला, कॉमन वेल्थ गेम्स घोटाला आदि ने बढ़ती राजनीतिक अनिश्चितता के माहौल का संकेत दिया और भारत की छवि पर खराब असर पड़ा। एक निवेश गंतव्य के रूप में। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र द्वारा लापरवाह ऋण देने, गैर-लक्षित सब्सिडी और सार्वजनिक संसाधनों (कोयला और दूरसंचार स्पेक्ट्रम) की गैर-पारदर्शी नीलामी आदि की भी चर्चा की गई है।