देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस (Congress) में अब बड़े पैमाने पर सोशल इंजीनियरिंग की आवाज़ उठाने की तैयारी है. हार से जूझ रही पार्टी के चिंतन शिविर में बहुसंख्य समाज के नेता एकजुट होकर संगठन के भीतर 50 फीसदी आरक्षण देने की मांग करने की तैयारी में हैं. दरअसल, कांग्रेस दोबारा खड़ा करने की मुहिम में पार्टी 13से 15 मई को राजस्थान के उदयपुर में नव-संकल्प चिंतन शिविर करने जा रही है. उस शिविर के लिए 6 कमेटियों का गठन किया गया, जिसमें एक है सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण.
इस समिति के मुखिया सलमान खुर्शीद हैं, तो इसकी कमेटी में दिग्विजय सिंह समेत एससी-एसटी विभाग के चैयरमैन राजेश लिलोठिया, ओबीसी विभाग के चैयरमैन कैप्टन अजय यादव और अल्पसंख्यक विभाग के चैयरमैन इमरान प्रतापगढ़ी शामिल हैं. इस कमेटी ने सामाजिक क्षेत्र में काम करने वाले ओबीसी , एससी, एसटी और ओबीसी के लोगों से बड़े पैमाने पर वर्चुअल सम्पर्क साधा जा रहा है. इसके साथ ही इस समाज के देश भर के कांग्रेसी राजनेताओं से भी चर्चा की जा रही है.
पार्टी की बेहतरी के लिए बड़े पैमाने पर चर्चा
समिति इस लंबी चर्चा के बाद चिंतन शिविर में होने वाले विमर्श में जैसे संविधान में एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यकों को 50 फीसदी आरक्षण है, उसी तर्ज पर पार्टी संगठन में इस समाज को 50 फीसदी आरक्षण दिया जाए. इस मांग के सिलसिले फिलहाल कोई खुलकर नहीं बोलना चाहता. शायद इस मुहिम से जुड़े नेताओं को अंदेशा है कि, कहीं चिंतन शिविर से पहले ही इसको लेकर पार्टी के भीतर विवाद ना हो. इस बारे में टीवी 9 भारतवर्ष ने एससी विभाग के चैयरमैन राजेश लिलोठिया से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि, हम पार्टी की बेहतरी के लिए अभी आपस में बड़े पैमाने पर चर्चा कर रहे हैं, जिसका निष्कर्ष हम चिंतन शिविर में सामने लाएंगे.
क्या प्रस्ताव को मंजूरी मिल पाएगी?
सूत्रों के मुताबिक, राय मशविरे को 9 मई को पूरा करके इस बावत मसौदा तैयार कर लिया जाएगा. इस मुहिम से जुड़े नेता मानते हैं कि, इस प्रस्ताव का पार्टी के भीतर विरोध होता है तो भी इस मांग को ज़ोर शोर से रखा जाएगा और इसे मंजूरी देने की वकालत की जाएगी. इसके लिए आंकड़े, हिस्सेदारी और जरूरी तथ्य भी जुटाए जा रहे हैं. जिससे साफ किया जा सके कि, अगर इस बहुसंख्य समाज के वोट लेने के लिए उनको उसी आधार पर संगठन में भी ज़िम्मेदारी देनी होगी. कुल मिलाकर कभी ब्राम्हणों की पार्टी कही गई कांग्रेस अरसे बाद चुनावी हारों से उबरने के लिए संगठन में बड़े बदलाव की तरफ क़दम बढाने जा रही है. मगर सवाल है कि, क्या प्रस्ताव को मंजूरी मिल पाएगी? और मंजूरी मिल भी गयी तो क्या वो वाकई सही तरीके से धरातल पर उतर पायेगा?