नई दिल्ली। इला भटनागर
सर्वाइकल कैंसर भारतीय महिलाओं में सर्वाधिक होने वाला कैंसर तो है, लेकिन साथ ही कैंसर के इस प्रकार से बचाव भी काफी आसान है। इस बारे में व्यापक जागरूकता लाने की जरूरत है। आसानी से उपलब्ध सर्वाइकल कैंसर की वैक्सीन के बारे में भी जागरूकता लानी होगी। यह वैक्सीन सर्वाइकल कैंसर से 80 प्रतिशत तक बचाव करने में सक्षम है। राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट एंड रिसर्च सेंटर की डॉ. रुपिंदर सेखों, सीनियर कंसल्टेंट एवं चीफ गायनेकोलॉजिक ऑन्कोलॉजी ने बताया कि, यदि वैक्सीन के साथ-साथ एचपीवी टेस्टिंग और पैप स्मियर भी कराया जाए, तो सर्वाइकल कैंसर से 100 प्रतिशत बचाव संभव है।
वैक्सीन लगवाने के अलावा माहवारी के दौरान स्वच्छता का ध्यान रखने तथा माहवारी में किसी तरह की अनियमितता होने व मीनोपॉज के बाद रक्तस्राव या शारीरिक संबंध बनाने के बाद रक्तस्राव होने की स्थिति में स्त्री रोग विशेषज्ञ से परामर्श करने, नियमित रूप से पैप स्मियर स्क्रीनिंग कराने और एचपीवी टेस्टिंग से कैंसर का समय रहते पता लगाने व गर्भाशय में प्री-कैंसरस लक्षणों को जानने में मदद मिल सकती है, जिससे सर्वाइकल कैंसर के मामले कम किए जा सकते हैं।
डॉ. रुपिंदर सेखों ने बताया, सर्वाइकल कैंसर के ज्यादातर मामलों में ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (एचपीवी) अहम कारण होता है। सामान्य तौर पर एचपीवी वायरस के संपर्क में आने पर महिला का इम्यून सिस्टम उस वायरस को शरीर में किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाने देता है। हालांकि कुछ महिलाओं का इम्यून सिस्टम वायरस को शरीर से पूरी तरह नहीं खत्म कर पाता है और बहुत लंबे समय तक एचपीवी संक्रमण बने रहने से सर्वाइकल कैंसर हो सकता है।
सर्वाइकल कैंसर का शुरुआती स्तर पर पता लगाना बहुत हद तक संभव है, क्योंकि करीब 10 से 15 साल तक यह शरीर में प्री-कैंसरस स्टेज में रहता है और पैप स्मियर टेस्ट से आसानी से इसकी जांच हो सकती है। यह जांच प्री-कैंसरस स्टेज में ही बीमारी का पता लगाकर शरीर में कैंसर को पनपने से रोकने में मददगार है। 30 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को हर 3 साल में पैप स्मियर टेस्ट कराने का सुझाव दिया जाता है। यदि साथ में एचपीवी टेस्ट भी कराया जाए, तो जांच के बीच 5 साल तक का अंतर रखा जा सकता है।
9 से 26 की उम्र की लड़कियों और महिलाओं के लिए सर्वाइकल कैंसर से बचाव की वैक्सीन उपलब्ध है। यौन गतिविधियों में सक्रिय होने से पहले लड़कियों में यह टीका लगवाना सबसे ज्यादा प्रभावी होता है। 9 से 14 साल की उम्र में वैक्सीन के दो इंजेक्शन की जरूरत होती है। यदि टीका 14 से 26 साल की उम्र में लगवाया जाए, तो तीन इंजेक्शन लगाए जाते हैं। हालांकि टीका लगवाने का यह अर्थ नहीं है कि समय-समय पर जांच की आवश्यकता नहीं रह जाएगी। वर्तमान समय में भारत में विकसित वैक्सीन भी कम कीमत पर उपलब्ध है।
डॉ. रुपिंदर सेखों ने कहा, वैक्सीन सर्विकल कैंसर से 70 से 80 प्रतिशत तक बचाव में सहायक है। इसलिए समय पर जांच एवं इलाज के लिए स्क्रीनिंग बहुत जरूरी है। दुर्भाग्य से 2019 में 10 में से एक से भी कम महिलाओं ने सर्वाइकल कैंसर की स्क्रीनिंग कराई थी।
उन्होंने निम्न बातों पर ध्यान देने की बात कहीः
• समय पर पता चल जाए तो सर्विकल कैंसर का आसानी से इलाज संभव है।
• यह संक्रामक बीमारी नहीं है। इसका इलाज आसानी से उपलब्ध है और इसमें बहुत दर्द भी नहीं होता है। बायोप्सी कराने से शरीर में कैंसर का प्रसार नहीं बढ़ता है।
• सर्वाइकल कैंसर आनुवंशिक नहीं है, इससे बेटी या पोती को कोई खतरा नहीं होता है।
सर्वाइकल कैंसर के कारण – किसी भी कैंसर के विकास के लिए जीवनशैली और खान-पान में बदलाव बहुत महत्वपूर्ण कारक हैं। वे कैंसर कोशिकाओं के विकास और पोषण के लिए एक उर्वर क्षेत्र बनाते हैं। स्वच्छंद यौन संबंध, कम उम्र में यौन गतिविधि, जल्दी और कई बच्चों का जन्म, और धूम्रपान अन्य महत्वपूर्ण कारक हैं जो सर्वाइकल कैंसर के विकास में योगदान करते हैं।
खराब सामान्य परिस्थितियों और अस्वच्छ जीवन के मद्देनजर कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली सर्वाइकल कैंसर के खतरे को बढ़ाती है। इसलिए, शहरी भारत की तुलना में ग्रामीण भारत में सर्वाइकल कैंसर के मामले अधिक हैं।
सर्वाइकल कैंसर के लक्षण –
शुरुआती सर्वाइकल कैंसर और प्री-कैंसरस वाली महिलाओं में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते हैं। लक्षण जब वे दिखाई देते हैं:
रजोनिवृत्ति के बाद रक्तस्राव
मासिक धर्म के बीच रक्तस्राव
सेक्स के बाद खून बह रहा है
योनि से असामान्य स्राव – शायद खून के धब्बे
पेडू में दर्द