देश में एक बार फिर जारी सीएए की चर्चाओं के बीच एनपीआर का मुद्दा भी जोर पकड़ने लगा है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रदेश में राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर सिर्फ 2010 के फॉर्मेट में ही लागू किया जाएगा। यानी एनपीआर के पुराने और नए फॉर्मेट पर एक बार फिर बहस छिड़ गई है। ऐसे में ये समझना जरूरी है कि दोनों फॉर्मेट में क्या अंतर है और इस पर विवाद क्यों है।
एनपीआर एक रजिस्टर है जिसमें एक गांव या ग्रामीण क्षेत्र या कस्बे या वार्ड या किसी शहर या शहरी क्षेत्र में एक वार्ड के भीतर सीमांकित क्षेत्र में सामान्य रूप से निवास करने वाले व्यक्तियों का विवरण होता है। ये पहली बार 2010 में तैयार किया गया था, जिसके बाद 2015 में इसे अपडेट किया गया था। इसके बाद 2020 में अपडेट किया गया है। सरकार के मुताबिक, एनपीआर का मकसद देश में सामान्य निवासियों का एक डेटाबेस तैयार करना है।
सरकार का कहना है कि डेटाबेस के लिए कोई दस्तावेज जमा नहीं किया जाएगा। लेकिन नए फॉर्मेट में कुछ सवाल जोड़े गए हैं, जो 2010 के फॉर्मेट में नहीं थे, इन्हीं को लेकर विवाद भी है। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनपीआर को पुराने फॉर्मेट के तहत लागू करने की बात कहते हुए ये भी बताया कि बिहार सरकार ने पहले ही केंद्र को पत्र लिखा है। पत्र में एनपीआर फॉर्म से विवादास्पद धाराओं को हटाने की मांग की गई है। नीतीश ने कहा, हमने स्पष्ट कर दिया है