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दिल्ली चुनाव: नारी की योजनाएं हैं सबपर भारी? महिलाओं को लुभाने में क्यों लगी हैं राजनीतिक पार्टियां?

दिल्ली विधानसभा चुनाव में इस बार सभी राजनीतिक पार्टियां महिलाओं के लिए खास योजनाओं का ऐलान कर रही हैं। इससे चुनाव पर क्या असर पड़ेगा, महिलाओं पर इतना फोकस क्यों? जानिए वजह...

by Kajal Tiwari

दिल्ली विधानसभा चुनाव में महिलाओं पर सभी राजनीतिक पार्टियां कुछ ज्यादा ही मेहरबान हैं, इसीलिए महिला केंद्रित योजनाओं का दिल खोलकर ऐलान किया जा रहा है। लेकिन सियासी दलों के इस प्रैक्टिस पर विशेषज्ञ चुनावी नतीजों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका की गहरी स्वीकृति मानते हैं लेकिन उन्होंने महिलाओं का समर्थन पाने के लिए इस तरह के तरीकों पर निर्भरता और इसके दीर्घकालिक परिणामों को लेकर चिंता भी व्यक्त की है। बता दें कि दिल्ली में लगभग 50 प्रतिशत मतदाता महिलाएं हैं और सभी की नजरें आधी आबादी पर टिकी हैं।

भाजपा, कांग्रेस और आप ने महिलाओं से किया वादा

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में महिलाओं से कई वादे किए हैं और महिलाओं को खास प्राथमिकता दी है। जहां भाजपा ने ‘महिला समृद्धि योजना’ के तहत महिलाओं को प्रति माह 2,500 रुपये, मातृत्व लाभ के तौर पर 21,000 रुपये और रसोई गैस सिलेंडर पर 500 रुपये की सब्सिडी का वादा किया है तो वहीं आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के लिए प्रति माह 2,100 रुपये की सहायता घोषणा की है और इसी कड़ी में कांग्रेस ने भी ‘प्यारी दीदी योजना’ के तहत 2,500 रुपये नकद देने का वादा किया है।

एमपी और महाराष्ट्र में योजनाओं का असर

दिल्ली से पहले महिलाओं पर केंद्रित योजनाओं का प्रभाव मध्य प्रदेश की ‘लाडली बहन योजना’ और महाराष्ट्र की ‘लाडकी बहन योजना’ में भी साबित हो चुका है। मगर आलोचकों ने इस तरह के वादों की व्यवहार्यता पर सवाल उठाए हैं। चुनाव सुधार निकाय ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ के संस्थापक जगदीप छोक्कर ने इन योजनाओं की प्रभावशीलता पर संदेह जताते हुए कहा, “मुफ्त सुविधाएं केवल अल्पकालिक राहत प्रदान करती हैं। लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए कौशल सिखाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।”

क्या कहा विशेषज्ञों ने

छोक्कर ने कहा कि मतदाताओं को इन लाभों की कीमत का बारे में पता होना चाहिए जो अंतत: जनता की जेब से ही आती है। देश का गरीब नागरिक भी अप्रत्यक्ष रूप से टैक्स दे रहा है चाहे वह जीएसटी आवश्यक सामग्री पर हो या सेवाओं पर हो।’’ वहीं, माकपा नेता और सामाजिक कार्यकर्ता बृंदा करात ने इन वादों को दोधारी तलवार बताया। उन्होंने कहा, ऐसी योजनाएं महिलाओं को स्वतंत्र नागरिक के रूप में पहचान देती हैं, लेकिन वे अक्सर महिलाओं को केवल लाभार्थी के रूप में सीमित कर देती हैं। उन्होंने कहा कि महिलाओं को उनके अधिकारों के जरिये सशक्त बनाया जाना चाहिए।

क्या कहा महिलाओं ने

हैदरपुर की सब्जी विक्रेता शांति देवी ने कहा, “इससे स्कूल की फीस या किराया देने में मदद मिलेगी। नकद इसलिए बेहतर है क्योंकि मैं अपनी जरूरत के हिसाब से खर्च कर सकती हूं।”

मयूर विहार में घरेलू सहायिका का काम करने वाली सीमा सिंह ने सहमति जताते हुए कहा कि मुफ्त बस यात्रा से उसकी खासी बचत हुई है। उसने कहा ‘‘अगर वह नगद देते हैं तो और अधिक अच्छा होगा।’’

सरिता विहार की शिक्षिका पूजा वर्मा ने कहा, “ये योजनाएं गरीबों के लिए उपयोगी हैं, लेकिन बेहतर सड़कें, शिक्षा और बुनियादी ढांचे का क्या?”

मदनपुर खादर में रहने वाली ब्यूटिशियन अंजलि कुमारी ने कहा, “ये योजनाएं मददगार हैं, लेकिन ये हमें गरीबी से बाहर नहीं निकाल पाएंगी। हमें बेहतर नौकरियों तक पहुंच की जरूरत है।”