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Home Entertainment एक्टर ने इंदिरा गांधी के खिलाफ सीधा मुकाबला किया था, और कोर्ट केस जीतकर सरकार को चुनौती दी थी। उन्होंने अपनी जीत का घमंड भी दिखाया था।

एक्टर ने इंदिरा गांधी के खिलाफ सीधा मुकाबला किया था, और कोर्ट केस जीतकर सरकार को चुनौती दी थी। उन्होंने अपनी जीत का घमंड भी दिखाया था।

by Nikhil

भारतीय सिनेमा के इतिहास में कई ऐसे अभिनेता आए हैं जिन्होंने दर्शकों को मनोरंजन के साथ-साथ समाज को भी सोचने पर मजबूर किया। लेकिन उनमें कुछ नाम होते हैं जो सिर्फ अपनी क्षमता से नहीं, बल्कि अपनी व्यक्तिगतता और दृढ़ निश्चय के कारण याद किए जाते हैं। मनोज कुमार उनमें से एक हैं। उन्होंने अपने अदाकारी के जरिए देशभक्ति की भावना को प्रकट किया और उन्होंने बॉलीवुड को देशभक्ति फिल्मों का एक नया माध्यम दिया। आज, मनोज कुमार अपना 87वां जन्मदिन मना रहे हैं, और उनकी फिल्मों के माध्यम से हमें उनके दृढ़ और साहसी एटिट्यूड के कई अनमोल किस्से सुनने को मिलते हैं। आइए, हम एक ऐसे उनके किस्से को याद करें जब वे इंदिरा गांधी के साथ तकरार करते हुए सामने आए थे, जब देश में आपातकाल घोषित किया गया था।

शुरुआती दौर में, मनोज कुमार और प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बीच सब कुछ सामंजस्यपूर्ण था। लेकिन जैसे ही इमरजेंसी घोषित हुई, तब स्थिति बदल गई और मनोज कुमार ने स्पष्ट रूप से इमरजेंसी का विरोध किया। उस समय फिल्मी कलाकारों को इमरजेंसी के विरोध में उम्रकैद भी किया गया था। मनोज कुमार की फिल्म ‘दस नंबरी’ को सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने बैन किया और उसके बाद ‘शोर’ का भी समान हाल हुआ। ‘शोर’ के निर्देशक और प्रोड्यूसर भी मनोज कुमार थे। इस फिल्म को रिलीज से पहले ही दूरदर्शन पर दिखाने के कारण सिनेमाघरों में इसकी कमाई में असर पड़ा और उसे बैन कर दिया गया।

उस समय मनोज कुमार के पास कोई और विकल्प नहीं था इसलिए उन्होंने न्यायिक स्थान पर जाकर अपनी बात रखी। वे कई हफ्तों तक अदालत में लड़ाई लड़ते रहे, और उनका परिश्रम उनके लिए फल चुका। अंततः उनके पक्ष में फैसला आया। इसी वजह से वे विशेष रूप से उपलब्ध हैं, क्योंकि वे भारत सरकार के खिलाफ कोर्ट में विजय प्राप्त कर चुके हैं। उन्हें इस केस के बाद सूचना और प्रसारण मंत्रालय से एक प्रस्ताव भी मिला था, जिसमें ‘इमरजेंसी’ पर एक फिल्म बनाने का प्रस्ताव था। लेकिन मनोज ने इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया और स्पष्ट रूप से इसे अस्वीकार कर दिया। इस फिल्म के लेखन का काम अमृता प्रीतम कर रही थी और इसे एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म के रूप में तैयार किया जाना था। जब मनोज को इस बारे में पता चला तो उन्होंने अमृता प्रीतम को भी खूब खरीखोटी सुनाई।