लोकसभा चुनाव पूरे हो चुके हैं और जीते हुए सदस्यों को अब लोकसभा में सदस्यता दिलाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इंडिया ब्लॉक के नेता ने संविधान की किताब अपने हाथ में लेकर सदस्यता की शपथ ले ली हैं। उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी संविधान की किताब को माथे पर स्थापित किया। परंतु चुनाव के बाद बसपा की अध्यक्षा मायावती ने इसे नौटंकी बताया और कहा कि इस तरह की प्रदर्शनीपूर्ण गहराई के प्रदर्शन से वे असंतुष्ट हैं। इस संदर्भ में राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, उनकी इस प्रतिक्रिया का कारण यह है कि सदस्यता के दौरान संविधान की किताब को माथे पर रखने के बजाय हाथों में पकड़कर लेने की परंपरा बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान की मूल भावना के प्रति अधिक समर्पित और सम्मानीय मानी जाती है।
लोकसभा चुनाव के घोषणा से पहले, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभा में उठाई थी 400 पार की आशा की बात। उन्होंने भाजपा को 370 पार करने का लक्ष्य दिया, जबकि एनडीए के लिए 400 पार का लक्ष्य रखा था। यहां तक कि विशेषज्ञों ने भी चर्चा की थी कि इस बार ऐसा क्या है जो इन आंकड़ों को समर्थन दे सकता है। फैजाबाद से सांसद रहे लल्लू सिंह समेत अन्य ने बताया कि 400 पार का उल्लेख इसलिए किया गया, क्योंकि संविधान में बदलाव के लिए यह आवश्यक है। इन विचारों ने सोशल मीडिया पर भाजपा के नेताओं और सांसदों के बयानों को वायरल बना दिया। इससे चुनावी हवा में भारी बदलाव आया और भाजपा की बहुमत की संभावनाएं बढ़ी। सभी राज्यों में चुनाव बाईपोलर बन गए थे, जिसके चलते पश्चिम बंगाल को छोड़कर अन्य राज्यों में क्षेत्रीय दलों का प्रभाव महसूस हुआ।
उत्तर प्रदेश में चुनाव के मद्देनजर सपा और इंडिया ब्लॉक के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा देखने को मिली। सपा ने इस चुनाव में इंडिया के साथ मिलकर चुनावी लड़ाई ली, जबकि बसपा ने अपने लिए एकला रास्ता चुना। यह बाईपोलर चुनाव में बसपा के लिए एक नुकसान साबित हुआ, क्योंकि वह संविधान की भावना को उठाने वाली पार्टी के रूप में थी, लेकिन इस बार उसे काफी पीछे छूट गई। बसपा के कोर वोटर इंडिया ब्लॉक की ओर रुझान दिखा रहे थे, क्योंकि इंडिया ब्लॉक ने संविधान की रक्षा करने का नारेटिव बनाया था। चुनावी परिणाम के बाद, बसपा को अब महसूस हो रहा है कि उसका नुकसान उसके समर्थकों के बारे में था, जिन्होंने इस बार या तो भाजपा के साथ जाने का फैसला किया या फिर इंडिया ब्लॉक के साथ रहने को चुना। मायावती ने इस मामले में दोनों पक्षों को नौटंकी बताते हुए यह स्पष्ट किया है कि सत्ता और विपक्ष की इस बिखराव से बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के संविधान की मूल भावना को बदल रहे हैं। उन्होंने इसे सर्वसमाजिक और समतामूलक समाज के लिए खतरा बताया, जबकि इसे जातिगत, सांप्रदायिक और पूंजीवादी रूप में उल्लेख किया गया।