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इफ्तार ट्वीट विवादः सेना को अपने हर कार्य के लिए किसी की मंजूरी की जरूरत नहीं

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Guest Author- मेजर जनरल (रि.) अशोक कुमार…:- पीआरओ जम्मू के एक ट्वीट पर विवाद खड़ा हो गया है, जिसमें रमजान के पवित्र महीने के दौरान मुस्लिम व्यक्तियों के साथ इफ्तार में भाग लेने वाले सैनिकों की तस्वीरें पोस्ट की गई हैं. कुछ सोशल मीडिया हैंडल की प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप उक्त ट्वीट को हटा दिया गया है, जिसने इस विवाद को और तेज कर दिया है. उस ट्वीट को पोस्ट करना और उसके बाद उसे हटाना सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी थी या व्यक्तिगत कार्रवाई यह बात इतनी महत्वपूर्ण नहीं है जितनी भारतीय सेना की धर्मनिरपेक्ष और निर्विवाद छवि है.

हालांकि किसी की जाति, धर्म और घर का पता स्टेटिस्टिकल (सांख्यिकीय) डेटाबेस का हिस्सा बने रहते हैं लेकिन एक सैनिक की जाति और धार्मिक मान्यताएं चाहें उसकी रैंक कुछ भी हो उसके दृष्टिकोण में कभी बाधा नहीं डालती हैं. जब हम एक-दूसरे से मिलते हैं, एक-दूसरे के साथ प्रशिक्षण लेते हैं, दिन का एक बड़ा हिस्सा एक-दूसरे के साथ गुजारते हैं, मिलजुलकर रहते हैं या एक साथ लड़ते हैं चाहे वह लड़ाई आतंकवादियों के साथ हो या युद्ध में दूसरे देश के सैनिकों के साथ हो; हमारे लिए इस सच के अलावा और कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है कि हम एक सब यूनिट / यूनिट / फॉर्मेशन का हिस्सा हैं और हमारे कंधों पर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी है.

सेना में कोई हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि नहीं…

आर्मी न केवल धार्मिक एकजुटता बनाए रखने के लिए जानी जाती है बल्कि इसका सर्व धर्म स्थल सभी सैनिकों के लिए एकता का प्रतीक हैं. सभी समारोहों/धार्मिक समारोहों के दौरान प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों की मान्यताओं उनकी संस्कृति और प्रथाओं का पालन करते हैं. हमारी सेना में कोई हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि नहीं हैं बस हमारी एक ही पहचान है. एक भारतीय सैनिक जो सभी धर्मों और उनके रिवाजों का सम्मान करता है. कमांडर अपने जिन सैनिकों को कमांड करते हैं उनके धर्म को अपनाते हैं और यह स्वाभाविक रूप से हमारे वैल्यू सिस्टम का हिस्सा है. युद्ध के मैदान पर अपना खून बहाते हुए सैनिक कंधे से कंधा मिलाकर खड़े होते हैं तब वे सब एक समान ही होते हैं अलग-अलग धर्म होने के बावजूद उनमें कोई अंतर नहीं होता. आखिर में वो सभी सेना के जवान ही हैं.

न केवल सीमावर्ती क्षेत्रों में बल्कि अन्य सभी चौकियों/सैन्य स्टेशनों में भी सभी धर्मों के स्थानीय देवताओं के पुनर्निर्माण के साथ-साथ उनके धार्मिक कामों में योगदान देने में भी सेना सबसे आगे रही है. वे स्थानीय लोगों की आस्था का सम्मान करते हैं उनसे बातचीत करते हैं और उनके समारोहों में भाग लेते हैं. भारतीय सेना ‘लोगों की सेना’ है और युद्ध, आंतरिक सुरक्षा, प्राकृतिक आपदाएं या विकास के कामों उनके साथ खड़े होने पर गर्व महसूस करती है. स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपराओं का हिस्सा बनकर वे हमारे देश की विविधता और उसकी एकता का संदेश देते हैं.

सेना समभाव से प्रत्येक धर्म का सम्मान करती है

रमजान के दौरान हमारे मुस्लिम भाइयों के साथ इफ्तार के रूप में या किसी अन्य धार्मिक आयोजन में सैनिकों की भागीदारी भारतीय सेना के लोकाचार को दर्शाती है. रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है और इसमें उपवास और आत्मनिरीक्षण की रस्म होती है. सूर्योदय से पहले खाए गए खाने को सहरी कहा जाता है जबकि उपवास तोड़ने के बाद जो खाना खाते है उसे इफ्तार कहा जाता है. मुसलमानों के लिए अन्य लोगों के साथ इसमें भाग लेना बहुत स्वाभाविक बात है. इसके आयोजन में भारतीय सेना की भागीदारी किसी भी रूप में किसी अन्य धर्म के विरुद्ध नहीं है. जबकि कुछ लोगों के मन में दूसरों के सामाजिक/धार्मिक कार्यों में भाग लेने के लिए कुछ मानदंड हो सकते हैं लेकिन सेना समभाव से प्रत्येक धर्म का सम्मान करती है. किसी धार्मिक काम में उनका शरीक होना दूसरे धर्म के खिलाफ नहीं है.

हम इन मुद्दों पर अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें

सेना के लिए उन लोगों के विश्वास/सामाजिक प्रथाओं/धार्मिक प्रवृत्तियों के प्रति संवेदनशील होना भी उतना ही महत्वपूर्ण है जहां उन्हें तैनात किया गया है. किसी भी अंदरूनी झगड़े को एक साथ रह कर ही खत्म किया जा सकता है. देश के लोगों को सेना से सीखने की जरूरत है कि कैसे एक मुस्लिम कमांडिंग ऑफिसर हिंदू सैनिकों को कमांड देता है या एक हिंदू कमांडिंग ऑफिसर मुस्लिम/दूसरे धर्म के सैनिकों को कमांड देता है. सेना की इस विशेषता को पूरे देश में फैलाने की जरूरत है ताकि हम इन मुद्दों पर अपनी ऊर्जा बर्बाद न करें और एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण के लिए मिलकर काम करें जो सहानुभूति, सहिष्णुता और प्रगति के पथ पर चलते हुए मानवता का प्रतीक हो. जो लोग उस ट्वीट को अपलोड करने और फिर डिलीट करने की आलोचना कर रहे हैं वे शायद भारतीय सेना की कमांड की श्रृंखला के नियंत्रण और सोशल मीडिया से जुड़ी कार्यवाहियों से अनजान हैं. ADG सामरिक संचार भारतीय सेना के विचारों को आगे बढ़ाने का आधिकारिक मंच है PRO नहीं.

कुछ लोगों के कमेंट के आधार पर सेना को उस ट्वीट को हटाने की कोई जरूरत नहीं होती अगर इसे भारतीय सेना के किसी आधिकारिक चैनल द्वारा ट्वीट किया गया होता. एक लोकतांत्रिक व्यवस्था और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव में सेना को अपने कामों के लिए मंजूरी लेने की जरूरत नहीं है. इसके बजाय सेना को सच और विविधता में एकता के अपने मूल सिद्धांत के साथ खड़े रहना चाहिए और उसे सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करना चाहिए जैसा कि पहले से चला आ रहा है. पीआरओ जम्मू द्वारा की गई कार्रवाई हमारी सेना के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने की सच्ची भावना के बावजूद एक व्यक्तिगत कार्रवाई प्रतीत होती है. उठाया गया विवाद न तो तथ्यों पर आधारित हैं और न ही अच्छी सोच से.

(लेखक कारगिल युद्ध के अनुभवी और रक्षा विश्लेषक हैं)

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