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कागज की कीमतों में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी, महंगी हुईं पुस्तकें

by City Headline

मेरठ

कोरोना काल के दौरान प्रकाशन उद्योग भी संकट से जूझता रहा। अब स्थिति सामान्य होने पर कागज की कीमत में 60 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो गई है। प्रकाशकों के अनुसार उन्हें कागज और कच्चा माल मिल भी नहीं रहा है। इसकी वजह से पुस्तकों के प्रकाशन में चुनौती है। कागज के भाव बढऩे से पुस्तकों की कीमत भी 25 से 30 प्रतिशत तक बढ़ गई है।

अगर कागज सस्ता और सुलभ नहीं हुआ तो नए सत्र में पुस्तकों की आपूर्ति नहीं हो पाएगी। महंगी पुस्तक का बोझ विद्यार्थियों पर पड़ेगा। गौरतलब है कि मेरठ जिले में स्कूल-कालेज से लेकर हर तरह की प्रतियोगी परीक्षाओं की पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। देश-विदेश में यहां से पुस्तकें भेजी जाती हैं। मेरठ में छपने वाली 120 पन्नों की पुस्तक पर पहले लागत करीब 30-40 रुपये के आसपास थी जो अब बढ़कर 60-65 रुपये तक पहुंच गई है।

नई शिक्षा नीति के तहत लेखन, लेबर, स्याही, प्लेट आदि का खर्च भी अतिरिक्त बढ़ा है। जिससे छह माह पहले जिस 120 पन्नों वाली पुस्तक की कीमत 70 रुपये थी। अब उसकी एमआरपी 160 रुपये हो गई है। इसी तरह से अन्य पुस्तकों की कीमत भी बढ़ी है। प्रकाशकों के अनुसार देश में चीन, इंडोनेशिया, अमेरिका और रूस से कागज बनाने का पल्प और कच्चा माल आयात होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कागज की कीमत बढ़ रही है। कंटेनर का माल भाड़ा बढऩे से चीन कागज की आपूर्ति नहीं कर रहा है। इसका असर मेरठ के प्रकाशन उद्योग पर भी पड़ रहा है।

प्रकाशकों की संख्या- 250 से अधिक
प्रिंटिंग प्रेस की संख्या- 150 से अधिक
प्रति वर्ष कागज व बोर्ड का उपयोग- एक लाख टन
प्रकाशन और स्टेशनरी का प्रति वर्ष टर्नओवर- 1500 करोड़ रुपये

चित्रा प्रकाशन व प्रगतिशील प्रकाशक संघ के अध्यक्ष चेयरमैन अजय रस्तोगी के अनुसार कोविड के समय पुस्तकें नहीं बिकीं। अब स्कूल-कालेज की स्थिति सामान्य हुई तो कागज की कीमत बढऩे से कापी और पुस्तक छापने की लागत बढ़ गई। हमें पाठ्यक्रम के अनुसार ही सामग्री देनी है। इसमें पृष्ठ भी कम नहीं किए जा सकते हैं। कागज समय से उपलब्ध भी नहीं है। कागज सस्ता होगा, तभी समय से पुस्तकें मिल पाएंगी।

नगीन प्रकाशन के निदेशक मोहित जैन ने बताया कि कागज और अन्य स्टेशनरी की कीमत बढऩे से प्रकाशन की लागत बढ़ गई है। इसके बावजूद पुस्तकों की गुणवत्ता कम नहीं की जा सकती है। इसकी वजह से पुस्तकों की कीमत बढ़ रही है। प्रकाशक का मुनाफा भी कम हुआ है। अगर कागज सस्ता नहीं हुआ तो नए सत्र में किताबों की कीमत और भी बढ़ सकती है। इससे बिक्री पर भी सीधा असर पड़ेगा।

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