अमेरिका में विदेशी प्रोफेशनल को रोकने की नीति के तहत ग्रीन कार्ड वीजा सीमित करने के नुकसान दिखने लगे हैं। प्रोफेशनल्स की कमी के चलते अमेरिकी डिफेंस और सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्री खोखली होती जा रही है। अमेरिका एक्सपर्ट्स को डर है कि कहीं टेलेंट की कमी के चलते अमेरिका, टेक्नोलॉजी की दुनिया में अपना वर्चस्व न खो दे।
ऐसे में अमेरिकी संसद, स्टेम (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स) प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए डिग्री धारकों को ग्रीन कार्ड की सीमा से छूट देने पर गंभीरता से विचार कर रही है जिससे अमेरिकी का चीन पर विज्ञान और तकनीकी का दबदबा बना रहे। 50 से अधिक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा अफसरों ने संसद को पत्र लिख है।
उन्होंने पत्र में कहा कि पेशेवरों की कमी के चलते कुछ अहम रक्षा उद्योग और सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री अरबों के निवेश के बाद अच्छा प्रदर्शन नहीं कर रही है। अमेरिकी राज्य एरिजोना में इंजीनियरों की काफी कमी है, जिसके चलते ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी अपना टारगेट पूरा नहीं कर सका। इस प्लांट पर करीब 1 लाख करोड़ रुपए का निवेश हुआ है। अमेरिकी सेमीकंडक्टर कंपनियों को काम आउटसोर्स करना पड़ रहा है।
इस कमी को पूरा करने के लिए किए जा रहे संशोधन का सबसे ज्यादा फायदा भारतीयों को मिल सकता है। भारत उन 2 देशों में से एक है, जो साइंस-टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अमेरिका को टेलेंट देता है। अमेरिकी कांग्रेस को लिखे पत्र में कहा गया है, चीन सबसे अहम तकनीकी और जियो पॉलिटिक्स प्रतियोगी है जिसका अमेरिका ने हाल के दिनों में सामना किया है। दुनिया की स्टेम प्रतिभा के बिना अमेरिका के लिए लड़ाई कठिन होगी। पत्र में कहा गया है प्रस्तावित कानून के हिस्से के रूप में स्टेम पीएचडी स्नातकों को मौजूदा ग्रीन कार्ड कैप से छूट दी जाए।
स्टेम मास्टर डिग्री स्नातकों को भी छूट दी जाए, बशर्ते वे सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग जैसे महत्वपूर्ण सुरक्षा-संबंधित उद्योगों में ही काम करें. एक्सपर्ट्स ने कहा कि यह बिल चीन के साथ प्रतिस्पर्धी बने रहने की अमेरिकी रणनीति का केंद्र होना चाहिए। स्टेम प्रतिभा के बिना राष्ट्रीय सुरक्षा लक्ष्यों को प्राप्त नहीं किया जा सकता है। अमेरिका सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में चीन से बहुत पीछे है।