वर्ष 1998 में एक नाबालिग लड़की के अपहरण के मामले में फंसे जसबीर सिंह को दिल्ली हाईकोर्ट ने दोषी करार दिए जाने के 15 वर्ष के बाद बरी कर दिया है। न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की पीठ ने यह कहते हुए निचली अदालत के वर्ष 2007 के निर्णय को रद कर दिया कि समग्र रूप से रिकार्ड पर मौजूद सुबूतों को देखते हुए अदालत इस नतीजे पर पहुंची है कि अभियोजन पक्ष अपने मामले को साबित करने में विफल रहा है।
अदालत ने पाया कि अभियोक्ता की मां और उसकी दोस्त की भी जांच नहीं की गई है। अभियोजन पक्ष के गवाहों की गवाही में विरोधाभास हैं और घटना के समय अभियोक्ता की आयु का कोई निश्चित प्रमाण भी नहीं है। ऐसे में दोषी ठहराने के नौ जनवरी 2007 और सजा सुनाने के 15 जनवरी 2007 के निचली अदालत के निर्णय को रद करते हुए अपीलकर्ता जसबीर सिंह को बरी करने का निर्देश दिया जाता है।
अधिवक्ता युद्धवीर शर्मा ने दलील दी कि उनके मुवक्किल के खिलाफ कोई मामला नहीं बनता है क्योंकि ऐसा कोई गवाह या सुबूत पेश किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि उनके मुवक्किल की अपहरण में कोई भूमिका थी। वहीं अतिरिक्त लोक अभियोजक कुसुम धल्ला ने अपील का विरोध करते हुए कहा कि निचली अदालत ने तथ्यों के आधार पर दोषी करार देना का उचित फैसला दिया है।उक्त आदेश में कोई अवैधता या गलती नहीं है।
वर्ष 1998 में एक नाबालिग लड़की के अपहरण और दुष्कर्म के मामले में नाबालिग के पिता की शिकायत पर पुलिस ने 28 सितंबर 1998 को मामला दर्ज किया था। आरोप था कि सब्जी लेने निकली नाबालिग को लेकर बस स्टैंड गया था। जहां अन्य आरोपित आनंद व केशव मिले थे। बाद में नाबालिग को केशव के मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के बेहट गांव से बरामद किया गया था। आरोप है कि केशव ने वहां नाबालिग के साथ दुष्कर्म किया था। 25 नवंबर 1998 को बेहट से लड़की बरामद की गई। निचली अदालत ने केशव को दुष्कर्म के लिए व जसबीर को अपहरण के लिए दोषी करार दिया था।