जयपुर। अगर विश्व में अस्थमा के कारण 100 लोगों की मृत्यु होती है तो उनमें से 43 लोग भारत के होते हैं जो कि काफी बड़ा आंकड़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण अस्थमा के इलाज को लेकर फैली भ्रांतियां और जानकारी का अभाव है। यह कहना था जाने माने श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. राजाधर का। शहर के रुकमणी बिरला हॉस्पिटल द्वारा आयोजित हेल्थ टॉक शो में उन्होंने यह जानकारी दी। टॉक शो में अस्थमा के इलाज पर मुंबई के डॉ. रोहन औरंगाबादवाला व जयपुर के श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ राकेश गोदारा, डॉ. विकास पिलानिया, डॉ. जीतू सिंह, डॉ. पंकज गुलाटी और डॉ. शिवानी स्वामी ने चर्चा की।
कोलकाता मेडिकल एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर, पल्मोनोलॉजी डॉ. राजा धर ने बताया कि इनहेलर्स को लेकर लोगों में बहुत सी भ्रांतियां हैं जिसके कारण अस्थमा का इलाज सामान्य होते हुए भी मुश्किल हो रखा है। लोगों को लगता है कि इसके अंदर स्टेरॉइड्स होते हैं जिससे पूरा शरीर प्रभावित होगा जबकि इसमें बहुत ही सीमित मात्रा में स्टेरॉयड होता है जो सिर्फ फेफड़ों तक असर करता है। इसके अलावा लोग मरीज सिर्फ तकलीफ होने पर ही इनहेलर इस्तेमाल करते हैं जबकि उन्हें डॉक्टर द्वारा बताए गए तय समय में इनहेलर का इस्तेमाल करना चाहिए।
कम तीव्रता के अस्थमा वाले मरीजों में भी गंभीर लक्षण
रुकमणी बिरला हॉस्पिटल के वरिष्ठ श्वास रोग विशेषज्ञ डॉ. राकेश गोदरा ने अस्थमा के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी। उन्होंने जीना गाइडलाइन में 2022 में आए मुख्य बदलावों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि इनहलेशनल कोर्टिकोस्टीरोईड ही मुख्य इलाज है जोकि अब भी देश के अधिकांश मरीज़ों को नहीं मिल पाता है। अगर कम तीव्रता वाले अस्थमा का सही ढंग से इलाज नहीं लिया जाए तो उसमें भी मरीज को गंभीर लक्षण हो सकते है।
सही इस्तेमाल तो बेहतर तरीके से नियंत्रित हो सकता है अस्थमा
मुंबई के मेडिकवर हॉस्पिटल के पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. रोहन औरंगाबादवाला अगर इनहेलर का सही तरह से इस्तेमाल किया जाए तो अस्थमा इतना नियंत्रित हो सकता है कि नियमित रूप से इनहेलर की आवश्यकता सिर्फ जरूरत के समय तक सीमित हो सकती है। वहीं ऐसे मरीज जिन्हें गंभीर रूप से अस्थमा है, उनके लिए नई बायोलॉजिक्स दवाएं आ गई हैं जो फेफड़ों की सूजन को कम करके लक्षणों के नियंत्रित कर सकती हैं। ये दवाएं सिर्फ गंभीर मरीजों को ही दी जानी चाहिए।