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हम केशवानंद भारती के निर्णय से प्रभावित हैं, ‘म्हाडा’ मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने यह टिप्पणी दी

by Nikhil

महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम केशवानंद भारती के फैसले से बंधे हैं। मामले की अगली सुनवाई मंगलवार को होगी। इस संबंध में कोर्ट ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि यह निर्णय पिछले ऐतिहासिक 13 न्यायाधीशों के फैसले के आधार पर लिया गया है, जिसमें संविधान के अनुच्छेद 31 सी को बरकरार रखा गया था। कोर्ट ने कहा कि इसका उद्देश्य लोगों की भलाई के लिए अधिनियमित किए गए कानूनों को बचाना था। इस मामले में नौ-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा यह टिप्पणी की गई है। वास्तव में, तीसरे दिन पीठ द्वारा विवादास्पद कानूनी मुद्दे पर बहस की गई थी, जिसमें सवाल था कि क्या निजी संपत्तियों को भी अनुच्छेद 39 (बी) के तहत ‘समुदाय के भौतिक संसाधन’ के रूप में माना जा सकता है और सार्वजनिक भलाई की पूर्ति के लिए इसे राज्य द्वारा अपने अधीन किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि हम फिर से केशवानंद भारती मामले में 13 न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के अधीन हैं।

1973 के अग्रणी केशवानंद भारती फैसले ने संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति को खत्म कर दिया था और साथ ही न्यायपालिका को किसी भी संशोधन की समीक्षा करने का अधिकार दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट में इन याचिकाओं पर हुई सुनवाई सीजेआई द्वारा प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (पीओए) सहित याचिकाकर्ताओं के वकील द्वारा दी गई दलीलों का जवाब दिया जा रहा था। पीठ की कानूनी दलीलें और टिप्पणियां इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि मुंबई के प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) सहित 16 याचिकाकर्ताओं द्वारा महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी अधिनियम (म्हाडा) के एक अध्याय का विरोध किया जा रहा है। यह प्रावधान 1986 में लाया गया था, जिसके तहत राज्य प्राधिकारियों को अधिग्रहीत भवनों और उस भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार दिया जाता है, जिस पर भवन बने हैं। म्हाडा कानून संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) के अनुसरण में बनाया गया था, जो डीपीएसपी का हिस्सा है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने क्या कहा?
राज्य सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि म्हाडा अधिनियम के प्रावधानों को संविधान के अनुच्छेद 31-सी द्वारा बचाया गया है। उन्होंने 9 न्यायाधीशों की पीठ को बताया कि एकमात्र मुद्दा यह है कि क्या अनुच्छेद 39 (बी) के तहत समुदाय के भौतिक संसाधन की अभिव्यक्ति निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को कवर करती है या नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि यह स्पष्ट है कि असंशोधित अनुच्छेद 31-सी केशवानंद भारती मामले में फैसले द्वारा बरकरार रखी गई सीमा तक वैध और लागू है। कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अब मंगलवार को होगी।

पीओए ने दी है म्हाडा के अध्याय 8-A को चुनौती 
प्रापर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (पीओए) और अन्य याचिकाकर्ताओं द्वारा म्हाडा के अध्याय 8-A को चुनौती दी गई है। कहा गया है कि यह प्रावधान मालिकों के खिलाफ भेदभाव करता है और उन्हें उनकी संपत्तियों से बेदखल करने का प्रयास करता है।  इस मामले में मुख्य याचिका पीओए द्वारा 1992 में ही दायर की गई थी। मामले को 20 फरवरी 2002 को नौ-न्यायाधीशों की पीठ के पास भेजने से पहले तीन बार पांच और सात न्यायाधीशों की पीठों के पास भेजा गया था। 2002 में नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि यह प्रश्न संविधान के अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या का है जो जनता की भलाई के लिए और समुदाय के भौतिक संसाधनों के स्वामित्व और नियंत्रण के लिए वितरण की बात करता है।

क्या है पूरा मामला 
बता दें कि मुंबई एक घनी आबादी वाला शहर है, जहां पुरानी, जीर्ण-शीर्ण इमारतें हैं, जिनमें मरम्मत के अभाव के कारण असुरक्षित होने के बावजूद किरायेदार रहते हैं। इन इमारतों की मरम्मत और पुनर्स्थापित करने के लिए महाराष्ट्र हाउसिंग एंड एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (म्हाडा) अधिनियम 1976 लाया गया था। इसके तहत इन इमारतों में रहने वालों पर एक उपकर लगाया जाता है। जिसका भुगतान मुंबई बिल्डिंग रिपेयर एंड रिकंस्ट्रक्शन बोर्ड (एमबीआरआरबी) को किया जाता है। एमबीआरआरबी द्वारा इन इमारतों की मरम्मत और पुनर्निर्माण के देखरेख का काम किया जाता है।

सीजेआई ने क्या कहा?
कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि मुंबई में इन इमारतों जैसे मामले को लें। तकनीकी रूप से, आप सही हैं कि ये निजी स्वामित्व वाली इमारतें हैं, लेकिन म्हाडा अधिनियम का कारण क्या था। अदालत ने कहा कि हम कानून की वैधता पर टिप्पणी नहीं कर रहे हैं और इसका स्वतंत्र रूप से परीक्षण किया जाएगा। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि इस अधिनियम को लाने का कारण यह था कि ये 1940 के दशक की पुरानी इमारतें हैं। मुंबई में मानसून और मौसम के कारण ये इमारतें जीर्ण-शीर्ण हो जाती हैं। मुंबई में लगभग 13,000 अधिगृहीत इमारतें हैं जिनके जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण की आवश्यकता है। हालांकि, किरायेदारों और मालिकों के बीच मतभेद के कारण इमारतों के पुनर्विकास में अक्सर देरी होती है।

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