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वन्यजीवों से संघर्ष रोकने के लिए दुधवा टाइगर रिजर्व में की गई कार्यशाला, दिए गए उपाय और नए सुझाव

by City Headline

लखीमपुर

घटते वन क्षेत्र में बढ़ते मानव दखल के कारण वन्यजीवों से संघर्ष रोकने को लेकर चार राज्यों के वन अधिकारियों की कार्यशाला दुधवा टाइगर रिजर्व में प्रारंभ हुई। इस कार्यशाला की आवश्यकता इसलिए भी पड़ी क्योंकि देश में 2021 में 146 बाघों की मौत हुई, जो पिछले एक दशक में सबसे ज्यादा है। अकेले लखीमपुर जिले में इस साल आधा दर्जन लोगों को बाघ ने शिकार बनाया और तीन बाघ भी मारे गए।

दुधवा व विश्व प्रकृति निधि के तत्वावधान में हो रही कार्यशाला के पहले दिन मंगलवार को महाराष्ट, बिहार के विशेषज्ञों ने अपने उपाय साझा किए और नए सुझाव भी दिए। बुधवार को उत्तराखंड के विशेषज्ञ भी रहेंगे। यूपी की प्रधान वन संरक्षक ममता संजीव दुबे ने कहा कि देश में बाघ अत्यंत कम हैं। उनकी संख्या बढ़ रही है और उसके साथ ही मानव-बाघ संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ रही है।

उन्होंने कहा कि कई क्षेत्रों में जंगल घट रहे हैं, उसकी वजह से भी मानव-बाघ में संघर्ष बढ़ा है। इस पर रोक लगाना, कम करना अत्यंत जरूरी है। विशेषज्ञों ने मानव-बाघ संघर्ष रोकने के लिए किए जा रहे प्रयासों को आपस में साझा किया और उसको प्रजेंटेशन के जरिए समझाया। कार्यशाला में बिहार के वाल्मीकि टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर नेशमनी कुमार ने कहा कि मानव बाघ संघर्ष बढऩे के कई कारण हैं, जो क्षेत्र व परिस्थितियों के अनुसार अलग अलग हैं।

इसलिए उपाय भी अलग -अलग हो सकते हैं। इसके लिए वहां के हालात का विश्लेषण कर कार्ययोजना बनाकर उसे क्रियान्वित किया जाना चाहिए। दुधवा के फील्ड डायरेक्टर संजय पाठक ने कहा कि यहां पर जंगल के किनारे गन्ने का खेत होना भी मानव-बाघ संघर्ष को बढ़ावा देता है। जिसे हम गन्ने की फसल समझते हैं, बाघ उसे जंगल समझता है और वहां पर आवाजाही कम होने के चलते उसे एक सुरक्षित ठिकाना मानने लगता हैं।

संघर्ष रोकने के लिए हमे जंगल के किनारे फसल चक्र को बदलना होगा। फसल चक्र बदल कर हम मानव-बाघ संघर्ष को कम कर सकते हैं। महाराष्ट्र के ब्रह्मपुरी पार्क के डीएफओ दीपेश मल्होत्रा ने कहा कि जंगल में बाघ का स्वभाव उसके हैबिटैट पर किए जाने वाले अतिक्रमण के रूप में दिखता है। महाराष्ट्र के जंगल बड़े शहरों के किनारे हैं, इसलिए वहां के शोर व अन्य तत्व प्रभावित करते हैं। कार्यशाला में पीलीभीत टाइगर रिजर्व सहित उप्र के वनाधिकारी शामिल रहे।

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