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वक्फ बोर्ड कैसे किसी की जमीन पर गैरकानूनी कब्जा कर लेता है? इसे तीन केस स्टडी के माध्यम से समझिए।

by Nikhil

केंद्र की मोदी सरकार वक्फ अधिनियम में बड़े बदलाव करने जा रही है। आज वक्फ बोर्ड संशोधन बिल लोकसभा में प्रस्तुत किया जाएगा। सूत्रों के अनुसार, इस बिल में वक्फ बोर्ड पर नियंत्रण लगाने के लिए 40 संशोधन प्रस्तावित किए गए हैं। दूसरी ओर, विपक्ष ने इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी के पास भेजने की मांग की है। यदि आम सहमति नहीं बनती, तो सरकार इसे सेलेक्ट कमेटी के पास भेज सकती है।

गुजरात में एक आम पैटर्न यह देखने को मिलता है कि लोग किसी की भी जमीन पर अवैध कब्जा करने के लिए उसे वक्फ बोर्ड से नोटिफाई करवा लेते हैं। देवभूमि द्वारका जिले के नवादरा गांव में स्थित हाजी मस्तान दरगाह का मामला भी ऐसा ही है। इस दरगाह के निर्माण से पहले रेवेन्यू रेकॉर्ड्स में रामी बेन भीमा और रामसी भाई भीमा के नाम पर दर्ज खेती की जमीन के एक हिस्से पर 40-50 साल पहले एक छोटी सी मजार बना दी गई थी। हालांकि, इसका विरोध भी हुआ, लेकिन श्रद्धा के नाम पर मामला दबा दिया गया। इसके बाद, एक ट्रस्ट स्थापित करके उस मजार को दरगाह में बदल दिया गया और इसे वक्फ बोर्ड से नोटिफाई करवा लिया गया।

चौंकाने वाली बात यह है कि इस जमीन को दरगाह के निर्माण से पहले नॉन-एग्रीकल्चरल लैंड में भी परिवर्तित नहीं किया गया। रेवेन्यू रेकॉर्ड्स में भी इस जमीन पर दरगाह के होने का कोई जिक्र नहीं है, फिर भी वक्फ ऐक्ट के तहत नोटिफाइड होने की वजह से इस पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। हाल ही में नवादरा गांव में प्रशासन ने बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण को ध्वस्त किया, लेकिन हाजी मस्तान की दरगाह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई क्योंकि यह वक्फ द्वारा नोटिफाइड थी। अब असली मालिक इस जमीन पर वक्फ ट्रस्ट के अवैध कब्जे को चुनौती देने के लिए प्रयासरत हैं।

गुजरात के द्वारका और जामनगर जिलों में पिछले दो सालों में एक नया ट्रेंड देखने को मिला है, जहां ट्रस्ट ने वक्फ बोर्ड द्वारा अपनी प्रॉपर्टी को जल्दी से नोटिफाई करवाने की दौड़ शुरू कर दी है। इसका कारण द्वारका में दो साल पहले हुई डिमोलिशन की कार्रवाई है। द्वारका और जामनगर जिलों में अब तक कुल 341 प्रॉपर्टी वक्फ बोर्ड के द्वारा रजिस्टर्ड हो चुकी हैं, जिनमें से 199 जामनगर और 142 द्वारका जिलों में हैं। फिलहाल, लगभग 500 ऐप्लिकेशन राज्य वक्फ बोर्ड में पेंडिंग पड़ी हुई हैं।

इसका मुख्य कारण यह है कि जहां-जहां द्वारका में डिमोलिशन की कार्रवाई हुई, वक्फ बोर्ड द्वारा नोटिफाइड प्रॉपर्टी पर बुलडोजर नहीं चलाया गया, चाहे उसकी वैधता पर सवाल उठ रहे हों। यही वजह है कि इन कोस्टल इलाकों में वक्फ बोर्ड के तहत अपनी प्रॉपर्टी को रजिस्टर्ड कराने की होड़ लग गई है।

जामनगर के दरबार गढ़ में स्थित रतन बाई मस्जिद मार्केट का मामला इस बात का उदाहरण है कि कैसे वक्फ बोर्ड में नोटिफाई होने के बाद ट्रस्ट उसका गलत फायदा उठाते हैं। रतन बाई मस्जिद में यह मार्केट करीब 100 साल से चल रही है, जहां दुकानदारों के पूर्वजों ने दुकानों को लीज पर लिया था। बाद में जुम्मा मस्जिद कमिटी के अधीन आने के बाद भी यह दुकानें इसी लीज के तहत संचालित होती रहीं। लेकिन 2013 में वक्फ ऐक्ट में संशोधन के बाद, ट्रस्ट ने पूरी प्रॉपर्टी को वक्फ बोर्ड से नोटिफाई करवा लिया और दुकानदारों को कई गुना अधिक किराया वसूलने का नोटिस भेज दिया।

वक्फ ऐक्ट लागू होने के बाद ये दुकानदार न तो सिविल प्रोसीजर कोड का सहारा ले सकते हैं और न ही रेंट ऐक्ट का। कई सालों से अपनी दुकानों को बचाने के लिए वे वक्फ ट्रिब्यूनल के चक्कर काट रहे हैं।

दुकानदारों की राय:
राजेश भाई: “हमारी दुकान बहुत पुरानी है और हम 70-80 साल से यहां दुकान चला रहे हैं। वक्फ बोर्ड का कानून हमें पसंद नहीं है। सभी दुकानदारों को 10 हजार रुपये किराये का नोटिस मिला है, जबकि हमारा किराया केवल ₹70 है। पिछले 15 साल से हम जुमा मजीत की दुकान चला रहे हैं। 40 लाख रुपये में दुकान खरीदी थी और 15 लाख मस्जिद को दिए थे। अब किराया बढ़ाकर 10 हजार रुपये कर दिया गया है और कहा जा रहा है कि दुकान खाली कर दो। हमने मस्जिद को 15 लाख रुपये दिए, उसका क्या होगा? इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई चल रही है।”

राशिद अहमद: “मैं 10-15 साल से गन्ने का जूस की दुकान चला रहा हूं। मैंने दो बार ट्रस्ट बदले हैं, लेकिन किसी ने परेशान नहीं किया, पर यह ट्रस्ट हमें काफी परेशान कर रहा है। अब वक्फ बोर्ड का कानून लागू करने की धमकी दी जा रही है। बढ़ा हुआ किराया दो वरना दुकान सील कर देंगे। पहले मेरा किराया 136 रुपये था, अब 7 हजार रुपये मांगे जा रहे हैं। नया एग्रीमेंट बनाओ, वरना दुकान खाली कर दो, ऐसा कहा जा रहा है। हमारे पिता के नाम की दुकान है, तो हमें अब यह दुकान नहीं चलाने दिया जा रहा, जबकि ऐसा कोई नियम नहीं है।”