लखनऊ
संघर्षों से लडऩे का जोश और जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी बाधा को पार किया जा सकता है। इसका जीता जागता उदाहरण है लखनऊ की डालीगंज निवासी पैरा टेबल-टेनिस खिलाड़ी प्रगति केसरवानी। उन्होंने बाएं पैर से दिव्यांग होने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और जिदंगी को बोझ नहीं समझ कर दिव्यांगता को मात देकर पढ़ाई के साथ-साथ खेल जगत में मुकाम हासिल किया।
दिव्यांगता के ताने सुनकर आंसुओं को पीने वाली इस खिलाड़ी ने पैर से दिव्यांग होने के बाद अपने हाथों को ढाल बनाई और टेबल-टेनिस में नए आयाम गढ़ रही हैं। बुधवार को जार्डन में 19 से 21 मई तक होने वाली अंतरराष्ट्रीय पैरा चैंपियनशिप की लिस्ट में अपना नाम देखा तो प्रगति की आंखों से खुशी के आंसू निकल पड़े। प्रगति के पिता अनिल केसरवानी और भाई डालीगंज में आटा-चक्की की दुकान चलाते हैं।
इसी दुकान से अनिल ने पूरे घर का खर्च और प्रगति को पढ़ाया-लिखाया। प्रगति बताती हैं कि जब वह एक वर्ष की थी तभी बाएं पैर में पोलियो हो गया था। कहा कि इंसान यदि हिम्मत और हौसले के साथ आगे बढ़े तो मंजिल उसके कदम चूमने लगती है। पढ़ाई के बाद नौकरी न मिलना व दिव्यांग होने के तानों ने उसके जीवन को झकझोर कर रख दिया था लेकिन, उसने मेहनत और उम्मीद नहीं छोड़ी तथा संघर्ष कर आगे बढ़ती गई।
बता दें कि 31 वर्षीय प्रगति ने वर्ष 2013 में बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से बीटेक किया। इसके बाद बीएचयू से ही एमटेक कर ओएनजीसी में नौकरी के लिए आवेदन किया। हालांकि मेडिकल जांच में कुछ समस्या होने के कारण नौकरी फंस गई, पर प्रगति ने हार नहीं मानी। डॉ शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय और फिर बेंगलुरु में अलग-अलग कंपनियों में कुछ माह तक काम भी किया।
इसी के साथ ही वर्ष 2017 के अंत में पढ़ाई और नौकरी को दरकिनार कर प्रगति ने केडी सिंह बाबू स्टेडियम में कोच पराग अग्रवाल से टेबल-टेनिस के गुर सीखने लगी। प्रगति ने पढ़ाई की तरह खेल में भी कड़ी मेहनत की। वर्ष 2019 से 2022 तक कई पदक प्रदेश को दिलाए। इनमें प्रमुख रूप से इंदौर में होने वाले तीन अलग-अलग मुकाबलों में तीन गोल्ड जीता। प्रगति ने बीती दो मई को हुए पैरा नेशनल टेबल-टेनिस चैंपियनशिप में एकबार फिर से गोल्ड जीता है।