23 जून 2023 को, पटना में ‘इंडिया’ गठबंधन की पहली बैठक हो रही थी। इस मीटिंग में बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार विपक्षी गठबंधन के सूत्रधार थे। वह विभिन्न राज्यों में घूम-घूमकर विपक्ष के कई नेताओं को एकजुट किया था। शुरूआत में ऐसा लग रहा था कि नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही अपोजीशन के सभी दल मिलकर नरेंद्र मोदी को चुनौती देंगे, लेकिन अचानक इंडिया गठबंधन उन्हें संभाल नहीं पाई और नीतीश कुमार एनडीए के हो गए। कहा जाता है कि नीतीश कुमार राहुल गांधी के रवैये से नाराज हो गए थे।
ओडिशा में बीजेडी के नवीन पटनायक और तेलंगाना में बीआरएस के चंद्रशेखर को छोड़ दें, लगभग सभी दल, जिनसे नीतीश कुमार ने मुलाकात की, वो विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल हो गए। चाहे ममता बनर्जी की टीएमसी हो या अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जो पहले के यूपीए गठबंधन में शामिल नहीं थीं, वो भी नए इंडिया अलायंस में शामिल हो गए। नीतीश ने सभी को एक सूत्र में बांधा, लेकिन कांग्रेस लीड अलायंस उन्हें अपने साथ बांधकर नहीं रख सकी। कुछ ऐसे फैसले इसके कारण बने जो कांग्रेस के रुख के कारण समय से नहीं लिए जा सके।
चुनाव से एक वक्त पहले, नीतीश ने विपक्षी इंडिया गठबंधन में शामिल होकर एनडीए के साथ सम्मिलित हो लिया। उनके इस फैसले पर काफी आलोचना हुई। कहा गया कि जिन दलों ने पहले सत्ता और नरेंद्र मोदी के खिलाफ विरोध किया था, आज उन्हें ही एनडीए की गोद में बैठना पड़ा। बिहार में नीतीश कुमार ने कई बार गठबंधन बदला, लेकिन लोगों के विश्वास को हमेशा बनाए रखने के लिए वे बिना किसी अनिश्चितता के साथ अपना निर्णय लेते हैं। नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन में कभी कच्ची गोलियां नहीं खेली गई हैं। उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में 19 साल तक कार्य करने का अनुभव है, जिससे उन्हें राजनीतिक दिशा और योग्यता में मजबूती मिली है। नीतीश कुमार की एक और विशेषता यह है कि वे समय पर समय के अनुसार अपनी रणनीति बदलते हैं। अगर इंडिया गठबंधन ने उन्हें समर्थन दिया होता, तो शायद आज उनका स्थान कुछ और होता। कांग्रेस ने नीतीश कुमार को अपने साथ नहीं रख सकी, जिससे वे एनडीए के साथ जुड़ गए।