आगरा
केंद्रीय विधि एवं न्याय राज्य मंत्री प्रो. एसपी सिंह बघेल व अन्य के खिलाफ एत्मादपुर में छह वर्ष पूर्व बिना अनुमति सभा करने के मामले में शनिवार को विशेष मजिस्ट्रेट एमपी/एमएलए कोर्ट में आरोप तय किए गए। एत्मादपुर थाने में दर्ज मुकदमे में आरोपितों मुस्लिम खां व अन्य की गिरफ्तारी न होने पर प्रो. बघेल ने पांच अप्रैल 2016 को कस्बे में पंचायत बुलाने का एलान किया था, जिसके बाद 11 अप्रैल को समर्थकों के साथ बिना अनुमति स्टेशन रोड स्थित नगला गंगाराम तिराहे पर सभा की, जिसमें उनके सैकड़ों समर्थक मौजूद थे। तत्कालीन थानाध्यक्ष की ओर से उक्त मामले में धारा 144 का उल्लंघन करने पर प्रो. एसपी सिंह बघेल सहित अन्य के विरुद्ध मुकदमा दर्ज किया गया था। अदालत ने नवंबर 2016 में आरोपितों को मुकदमे के विचारण के लिए तलब करने के आदेश किये थे।
मुकदमा पूर्व में विशेष न्यायाधीश एमपी/एमएलए कोर्ट के विशेष न्यायाधीश नीरज गौतम की अदालत में चल रहा था। वहीं केंद्रीय मंत्री के अधिवक्ता केके शर्मा की ओर से डिस्चार्ज प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया गया था। मजिस्ट्रेट ट्रायल मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष मजिस्ट्रेट एमपीएमएमएल को अधिकृत करने के कारण पत्रावली उनकी अदालत में स्थानांतरित हो गई थी। आरोपों से डिस्चार्ज के लिए केंद्रीय मंत्री के अधिवक्ता ने दलील दी कि वह समाज सेवक एवं जनप्रतिनिधि हैं। इस कारण समाज के प्रत्येक वर्ग की समस्याओं के समाधान को जनता के हितों के लिए उनके साथ तत्पर रहते हैं।
विरोधी लोगों ने द्वेष के चलते सत्ता पक्ष के दबाव में झूठा मुकदमा दर्ज कराया था। विवेचक द्वारा एसडीएम एत्मादपुर के बयान का हवाला देकर विभिन्न त्यौहार एवं पर्व को शांतिपूर्वक संपन्न कराने के लिए क्षेत्र में धारा 144 लागू होने की बात कहते हुए पक्ष रखा कि घटना 11 अप्रैल की है, जबकि एसडीएम एत्मादपुर का आदेश 30 अप्रैल का है, जिसके आधार पर धारा 144 लागू ही नहीं थी, तब धारा 144 का अपराध कैसे घटित हो गया। विशेष मजिस्ट्रेट एमपी/एमएलए अर्जुन की अदालत ने दोनों पक्ष की दलील सुनने के बाद अपने आदेश में कहा कि अंतिम रूप से यह विधि सम्मत नहीं है।
प्रार्थीगण ने कोई अपराध किया है या नहीं, ये विचारण की वस्तु है। मगर, इस स्तर पर पत्रावली के अवलोकन में अपराध में आरोपितों की संलिप्तता प्रथम दृष्टया प्रकट होती है। अत: आरोपितों द्वारा प्रस्तुत प्रार्थना पत्र में लिए गए आधारों का निराकरण विचारण कार्यवाही के दौरान अभियोजन व आरोपित दोनों पक्ष द्वारा प्रस्तुत किए जाने वाले साक्ष्य की समीक्षा के उपरांत ही किया जा सकता है। इस स्तर पर आरोपितों को डिस्चार्ज किए जाने का आधार पर्याप्त नहीं होने पर प्रार्थना पत्र निरस्त किया जाता है।